अगर आप गूगल पर सर्च करें तो आपको पता चलेगा कि दुनिया में होने वाली अधिकांश हिंसक घटनाएं इस्लाम के नाम पर हो रही हैं. इससे यहां पर कुछ सवाल उठते हैं जो जल्द जवाब मांगते हैं-
1. ऐसे कितने इस्लामिक देश हैं जिन्होंने गाजा हमले की तरह पेशावर हमले, पेरिस गोली कांड और बोकोहरम के नरसंहार की हमेशा निंदा की हो?
2. फ्रेंच पत्रिका चार्ली एब्दो के पत्रकारों और कार्टूनिस्टों की हत्या के बाद बहुत से इस्लामी साइबर ग्रुप सामने आए, जिन्होंने स्लोगन दिया- मैं मुस्लिम हूं, चार्ली नहीं. ऐसे में भारत और उसके बाहर ऐसे कितने मुस्लिम संगठन या बुद्धिजीवी हैं जिन्होंने इसके विरुद्ध जाने का माद्दा दिखाया?
3. फ्रेंच स्कूलों में पढ़ने वाले मुस्लिम बच्चों ने उनके माता-पिता के कहने पर चार्ली एब्दो हमले में मारे गए लोगों के लिए 2 मिनट का मौन रखने से इनकार कर दिया. ऐसे में इस्लाम को शांति का मजहब बताने वाले कितने संगठनों ने बच्चों के मन में इस तरह का जहर न घोलने की बात उठाई?
4. क्या कोई गैर-मुस्लिम अपनी धार्मिक पुस्तक के मुताबिक राज कायम कराने के लिए बच्चों का कत्ल करता है?
5. पिछले पांच वर्षों में इस्लाम के नाम पर मारे गए लोगों की संख्या की तुलना किसी और धर्म के नाम पर मारे गए लोगों से की जा सकती है?
6. इस्लामी देशों में लोकतांत्रिक कितने हैं?
7. कितने मुस्लिम बहुल देश हैं जो इस्लामिक न होकर लोकतांत्रिक हैं?
8. कितनी बार इस्लाम में सुधार के लिए अंदरूनी तौर पर आवाजें उठी हैं?
9. क्या वो सुधार समय की कसौटी पर खरा उतरा?
10. क्या इस्लामी समाज में आधुनिक मध्यम वर्ग के मूल्यों से तालमेल बैठाने की क्षमता है?
(डॉ. चंद्रकांत प्रसाद सिंह के ब्लॉग U & ME से साभार. यह लेखक के निजी विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं कि इंडिया टुडे ग्रुप इससे सहमत हो.)