दिल्ली की एक विशेष अदालत ने द्रमुक सांसद कनिमोझी की जमानत याचिका पर तब अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जब सीबीआई ने यह कहते हुए इसका विरोध किया कि पर्दे के पीछे से कलेंगनर टीवी का वास्तव में नियंत्रण वही कर रही हैं.
गौरतलब है कि कलेंगनर टीवी को डाइनेमिक्स बलवा समूह से 200 करोड़ रुपये मिले हैं.
विशेष न्यायाधीश ओपी सैनी ने कहा कि वह कनिमोझी और कलेंगनर टीवी के प्रबंध निदेशक शरद कुमार की जमानत याचिका पर अपना फैसला 14 मई को सुनाएंगे. यह फैसला विधानसभा चुनावों का परिणाम आने के एक दिन बाद आएगा.
सीबीआई की तरफ से विशेष लोक अभियोजक यू यू ललित ने कहा, ‘कलेंगनर टीवी का नियंत्रण भले ही शरद कुमार कर रहे हों लेकिन पर्दे के पीछे से जो व्यक्ति कलेंगनर टीवी में सबकुछ का नियंत्रण कर रहा है वो है यह महिला (कनिमोई).’ 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उनकी भूमिका के लिए विशेष अदालत द्वारा सम्मन जारी किए जाने के बाद कल अदालत में हाजिर होते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की 43 वर्षीय पुत्री ने जमानत देने की मांग थी. उन्होंने महिला और सांसद होने के आधार पर जमानत देने की मांग की थी.
उन्होंने 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले का दोष पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा पर मढ़ने की कोशिश की थी. कलेंगनर टीवी के प्रबंध निदेशक शरद कुमार भी उनके साथ अदालत में पेश हुए थे और जमानत याचिका दी थी.
सीबीआई ने विशेष न्यायाधीश सैनी से कहा कि टीवी चैनल में बहुलांश कनिमोई और उनके परिवार के लोगों के पास है. सीबीआई ने कहा कि बलवा द्वारा 200 करोड़ रुपये दिए जाने में कनिमोई की संलिप्तता को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं.
ललित ने अदालत से दोनों के प्रति कोई नरम रवैया नहीं अपनाए जाने का अनुरोध करते हुए कहा कि 200 करोड़ रुपये के लेन-देन में कनिमोझी और शरद कुमार की संलिप्तता साफ तौर पर स्थापित होती है.
उन्होंने इस मामले के अन्य आरोपियों की तरह इन दोनों को भी न्यायिक हिरासत में भेजने की मांग की.
जांच एजेंसी ने कहा कि टीवी चैनल में द्रमुक परिवार की 80 फीसदी हिस्सेदारी है और वित्तीय लेन-देन से संबंधित सारे फैसले के बारे में उन्हें निश्चित तौर पर जानकारी होगी.
सीबीआई ने कहा कि द्रमुक प्रमुख करुणानिधि की पत्नी दयालु अम्मल की कंपनी में 60 फीसदी हिस्सेदारी है लेकिन वह इसके संचालन में सक्रिय रूप से शामिल नहीं हैं. इस काम में कनिमोई और शरद कुमार शामिल हैं.
ललित ने कहा, ‘किसी कंपनी में अगर किसी परिवार की 80 फीसदी हिस्सेदारी है तो यह सोचना असंभव है कि परिवार के सदस्यों के अलावा कोई और कंपनी को चला सकता है.’