जेल जहां आकर अक्सर रास्ते बंद हो जाते हैं, जिंदगी रुक जाती हैस सपने बिखर जाते हैं. उस जेल में एक छात्र ने तैयारी कर आईआईटी की मंजिल पाई है. पिता को हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. बेटा अपने पिता के साथ कोटा सेंट्रल जेल की खुली जेल में रहकर आईआईटी की तैयारी की और अब आईआईटी में उसका चयन भी हो गया है.
बेटे की कामयाबी से पिता गदगद
बेटे पीयूष के लिए खुली जेल में समस्याएं और कठिनाइयां अपने सजायाफ्ता कैदी पिता से कम नहीं थी, लेकिन जुनून था जिसके आगे हर कठिनाई और हर परेशानी हार गई. पिता की जिद थी कि मेरे बेटे की पहचान कैदी के बेटे की नहीं होगी और बेटे ने अपने पिता का सपना पूरा किया. पीयूष की उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि उसने पिता के साथ जेल की 8 फीट लंबे-चौड़े कमरे में रहकर ही पढ़ाई की. बेटे की पढ़ाई में कोई कमी न रह जाए इसलिए पिता जेल में दिनभर मजदूरी करता था और शाम 6 बजे से रात 2 बजे तक कोठरी के बाहर ही बैठा रहता था ताकि कमरे में बेटा सुकून से आईआईटी की तैयारी कर पाए. रिजल्ट आया तो बेटे की 453वीं रैंक आई.
हत्या के आरोप में पिता को सजा
चेचट के डांकिया गांव के निवासी फूलचंद मीणा सरकारी टीचर थे. 2001 में हत्या के मामले में फूलचंद, उनके भाई और 3 भांजे को आरोपी बनाया गया. फूलचंद सहित 5 लोगों को 2007 में आजीवन कारावास की सजा हो गई. जेल में फूलचंद से जब भी उनकी पत्नी मिलने आती वो उससे बेटे पीयूष की पढ़ाई पर ध्यान देने को बात कहते. इस दौरान अच्छे व्यवहार के चलते फूलचंद को कोटा की खुली जेल में रखा गया. इसके बाद उन्होंने पत्नी और बेटे को अपने पास ही बुला लिया. पढ़ाई में पैसे की कमी आए इसलिए फूलचंद ने जेल में ही मजदूरी करनी शुरू कर दी.
जेल की कोठरी में ही पढ़ाई करता था पीयूष
कोटा के बड़े कोचिंग में पढ़ाने लायक पैसे नहीं थे. लेकिन मजदूरी के पैसे से ही एक ट्यूशन जरूर करा दिया. पीयूष ने जेल की कोठरी में ही रहकर सालभर पढ़ाई की और पहली बार में ही सफलता हासिल की. फूलचंद कहते हैं, 'सालों बाद अब मैं अपने छोटे से कमरे में सो रहा हूं, क्योंकि बेटा अब कमरे में तैयारी नहीं करता. भगवान भी अजीब रंग दिखाता है. सालों पहले सबकुछ छीन लिया था और अब लगता है कि जो कभी नहीं सोचा था वो सब मिल गया'.
जेल प्रशासन का भी मिला सहयोग
पीयूष का कहना है कि पिता से ही इंजीनियरिंग की तैयारी करने का हौसला मिला. जेल में पिता जी ने केवल पढ़ाई पर ध्यान देने की सलाह दी, पढ़ाई के चलते पीयूष सालभर तक किसी रिश्तेदार के यहां नहीं गया. जेल प्रशासन भी पीयूष की तारीफ करते नहीं थक रहा है. कोटा सेंट्रल जेल के सुपरिटेंडेंट शंकर सिंह का कहना है कि जेल में अच्छे व्यवहार की वजह से हमने इसके पिता को खुली जेल में रखा था.