सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कावेरी नदी से तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ने के विरोध में कर्नाटक के एक हजार से ज्यादा संगठनों ने शुक्रवार को राज्य में बंद का आह्वान किया है. इससे कर्नाटक के दक्षिणी भाग में जनजीवन प्रभावित हुआ है् राज्य में बंद के दौरान कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए 14 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं. कोर्ट ने कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए कावेरी नदी से 10 दिनों तक 15 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया है. इसके बाद कर्नाटक में लगातार तीन दिनों से बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन जारी हैं. सिनेमाघरों ने तमिल फिल्मों का प्रदर्शन रोक दिया है. आज से तमिल चैनलों के प्रसारण पर भी पाबंदी लगा दी गई है.
कर्नाटक में राज्यव्यापी बंद आह्वान तो एक हजार से ज्यादा संगठनों ने किया है लेकिन इसके पीछे एक शख्स का दिमाग काम कर रहा है. यह शख्स है 67 साल का वाटल नागराज. विरोध-प्रदर्शनों के लिए जमीन तैयार करने में नागराज का कोई सानी नहीं है. इसके इशारे पर हर साल 200 से 250 विरोध-प्रदर्शन होते हैं. यह अबतक 2000 बार सफलतापूर्वक बंद आयोजित करा चुका है. इस तरह यह शख्स कर्नाटक में दशकों से हो रहे विरोध-प्रदर्शनों का मास्टरमाइंड है.
नागराज कन्नड़ समर्थक संगठनों के फेडरेशन कन्नड़ पारा ओक्कुटा का नेता है. चाहे फिल्मों को लेकर हो या किसानों के मुद्दे या फिर भाषा को लेकर लड़ाई हो या आम लोगों से जुड़ी दूसरी समस्याएं, नागराज हर मुद्दे को उठाने के लिए बंद और प्रदर्शन करता है. इस चक्कर में इसके खिलाफ करीब 350 मुकदमे दर्ज हैं. हालांकि, इनसे इसे कोई फर्क नहीं पड़ता.
नागराज तेज तर्रार शख्स है. इससे आसानी से मिला जा सकता है. बावजूद इसके लिए यह एक हाईप्रोफाइल हस्ती भी है. अगर इसने अपने कॅरियर के शुरुआत में किसी सियासी दल का दामन थाम लिया होता तो आज इसकी पहचान कुछ और ही होती. बावजूद इसके यह उन राजनेताओं में है जिन्होंने मशहूर चामराजनगर जैसी विधानसभा क्षेत्र का तीन बार नेतृत्व किया है. यह बेंगलुरु से भी दो बार विधायक रह चुका है.
एक मामूली परिवार में पैदा होने वाला नागराज 1964 में बेंगलुरु शहर का पार्षद बना. उस वक्त निजलिंगप्पा कर्नाटक के सीएम थे. वो चाहते थे कि नागराज कांग्रेस ज्वाइन कर ले लेकिन इसने ऐसा नहीं किया और एक्टिविज्म की राह अपनाई. अगर वो उस वक्त सियासत की दुनिया में कदम रख देता तो मुमकिन था कि वो राज्य का सीएम भी बना जाता. उसे इस बात का कोई अफसोस भी नहीं है कि उसने शुरू में ही पॉलिटिक्स क्यों नहीं ज्वाइन किया. उसे संतोष है कि उसके एक इशारे में राज्यभर की जनता सड़कों पर उतर जाती है.
साल 2009 की बात है जब नागराज ने राजभवन के सामने पेशाब करने की योजना बनाई थी. हालांकि पुलिस ने उसकी इस योजना पर पानी फेर दिया. चार साल बाद यानी 2013 में उसने राजभवन के सामने धरना दिया. वह एक चारपाई पर लेटा था और इसके चारों तरफ इंडियन स्टाइल के टॉयलेट्स थे. वो कर्नाटक में पब्लिक टॉयलेट्स की जरूरत को लेकर धरने पर बैठा था. उसने चुनौती दी कि जब तक बेंगलुरु में 15 हजार सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण नहीं किया जाता है, उसका धरना खत्म नहीं होगा.
एक बार बस के किराये में बढ़ोतरी के खिलाफ वो बेंगलुरु के मेन बस स्टैंड में भैंस पर सवार होकर पहुंच गया था. एक बार पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी के खिलाफ बैलगाड़ी पर सवार होकर विधानभवन पहुंच गया तो एक बार बलात्कार की घटनाओं के खिलाफ बुरका पहने विरोध-प्रदर्शन करता. इन सभी के अलावा इसने गर्मी के दिनों में बिजली कटौती, कावेरी विवाद, महादायी और कलासा-बांडुरी मुद्दों को भी नागराज कर्नाटक में विरोध प्रदर्शन करता रहा है.
2009 में जब हिंदुत्व समर्थक गुटों ने वैलेंटाइंस डे पर पाबंदी लगाए जाने की मांग तो नागराज युवाओं के पक्ष में खड़ा हो गया. यह सेंट्रल बेंगलुरु में एमजी रोड पर रथ लेकर प्रेमी जोड़ों के पक्ष में खुद उतर गया और 'प्यार के दुश्मनों' को कड़ी चेतावनी दी. बीते जुलाई में जब रजनीकांत की फिल्म 'कबाली' के लिए तमिलनाडु से लेकर कर्नाटक की जनता दीवानी हुई जा रही थी तो उस वक्त इसने फिल्म का यह कहते हुए विरोध किया यह कन्नड़ फिल्म नहीं है और इस वजह से इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया जाना चाहिए.
नागराज खुद एक ब्रांड स्पेशलिस्ट, पीआर औ मीडिया रिलेशन एक्सपर्ट है. तमिलनाडु हमेशा उसके निशाने पर रहता है. चाहे वो सीमावर्ती जंगलों का मामला हो या फिर कावेरी के जल बंटवारे का मामला. इसे पता है कि कब-कब और किन-किन मुद्दों को उठाने से उसे लोकप्रियता मिलेगी.
1960 में जब 21 साल के नागराज ने खुद को कन्नड़ अधिकारों के रहनुमा के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रहा था तो उसकी राह आसान नहीं थी. मैसूर से करीब घंटे भर की दूरी पर स्थित वतालू गांव से ताल्लुक रखने वाले नागराज ने शुरू में मैसूर, चामराजनगर और बेंगलुरु जिलों में विरोध-प्रदर्शनों की नींव रखनी शुरू की. लेकिन देखते देखते इसका असर राज्य के अधिकतर हिस्से में दिखने लगा. मांड्या और हासन जिलों में इसके एक इशारे पर सर्मथक बंद को कामयाब करा देते.
उस वक्त चूंकि राज्य के गठन को महज 4 साल ही हुए थे. नागराज ने कर्नाटक के भावनात्मक पहलू 'कन्नड़' को छुआ और स्थानीय जनता की अस्मिता की लड़ाई लड़ने का फैसला किया. नागराज के विरोध-प्रदर्शन किसी समस्या के व्यंग्यात्मक लहजे पर आधारित होते हैं. राजनेता और प्रबुद्ध वर्ग नागराज के विरोध-प्रदर्शन के तरीके को पसंद नहीं करते. इसने जे एच पटेल, एस एम कृष्णा और हाल में सिद्धरमैया जैसे मुख्यमंत्रियों को अपने विधानसभा क्षेत्र चामराजनगर में आने की चुनौती दी लेकिन किसी ने उसकी चुनौती नहीं स्वीकार की. ऐसा कहा जाता है कि कोई सीएम रहते अगर चामराजनगर विधानसभा क्षेत्र का दौरा करता है तो उसकी सत्ता चली जाती है.