दिल्ली मेट्रो के लिए 2010 बहुत महत्वपूर्ण रहा और इसकी महत्वाकांक्षी दूसरे चरण की परियोजना लगभग पूरी हो गई. राष्ट्रमंडल खेलों के सारे आयोजन स्थलों को इसने अपने जाल में बांध तो लिया लेकिन वक्त के पाबंद होने की इसकी छवि तकनीकी खराबी के कारण बिगड़ गई.
दिल्ली मेट्रो के नाम इस साल की एक और उपलब्धि रही और देश के पहले स्टैण्टर्ड गॉज की शुरूआत इसने अप्रैल में मुंडका से इंद्रलोक तक की. दिल्ली मेट्रो के मुखिया ई श्रीधरन को पांचवीं बार सेवा विस्तार मिला. उन्होंने 1997 में दिल्ली मेट्रो में प्रबंध निदेशक का कार्य संभाला था.
हालांकि हादसे के प्लेटफॉर्म पर 2009 की भांति मेट्रों रुकी नहीं लेकिन तकनीकी समस्याओं ने दिल्ली की इस धड़कन को कई बार अटकाया और मेट्रो अधिकारियों को पानी पिलाया. इन समस्याओं ने लाखों यात्रियों के मन में मेट्रो की छवि को थोड़ा ठेस पहुंचायी. मेट्रो ने सफाई दी कि दुनिया भर में भूमिगत रेलवे को ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
दिल्ली मेट्रो ने इस साल 70 किलोमीटर पटरियां अपने खाते में जोड़ी और गुड़गांव से दिल्ली की दूरी कम कर दी. महिलाओं को दिल्ली मेट्रो ने अलग डिब्बे का तोहफा 2 अक्तूबर से दिया और शुरू-शुरू में इसपर चढ़ने वाले मर्दों की हजामत भी खूब हुई. राष्ट्रमंडल खेलों की समय सीमा को पूरा नहीं कर पाने के तीन महीनों के बाद भी तेज गति वाली एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन और सरिता विहार से बदरपुर तक का मेट्रोमार्ग अब तक जनता के लिए खुल नहीं पाया है.
हालांकि दक्षिण और पश्चिम दिल्ली के बीच के फासले को मेट्रो ने पाट दिया और दूर दराज के इन जगहों और गुड़गांव जाना बेहद आसान हो गया. 2010 में मेट्रो के मुखिया श्रीधरन की बाइपास सर्जरी हुई लेकिन इस सर्जरी के केवल 40 दिन बाद ही 78 साल के इंजीनियर काम पर वापस लौट आए.
तकनीकी गतिरोधों से कभी कोसों दूर रहने वाली मेट्रो के लिए देर से चलना और रास्ते में रु जाना आम हो गया है. नवंबर में गुड़गांव के रूट पर ऐसी ही गड़बड़ी के बाद श्रीधरन ने एक समिति का गठन किया. मेट्रो ट्रेनों की संख्या में भी इस साल 100 से ज्यादा का इजाफा हुआ और उनकी संख्या 80 से बढकर 185 हो गई. मेट्रो पर चढ़ने वालों की संख्या भी 16 लाख के पास पहुंच गई.