बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना... चीन में ये कहावत भले ही प्रचलित ना हो. लेकिन दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा से बौखलाया चीन इस कहावत का सटीक उदाहरण जरूर बन गया है. अब हम एक एक करके चीन के मन में दलाई लामा से नफरत और अरुणाचल प्रदेश को लेकर लालच की वजह के बारे में बताते हैं. लेकिन सबसे पहले आपको बताते हैं कि 81 साल के बुजुर्ग दलाई लामा से चीन इतना चिढ़ता क्यों है?
दरअसल चीन और दलाई लामा के बीच दुश्मनी का इतिहास ही चीन और तिब्बत के रिश्तों का इतिहास है.
1. इतिहास के पन्नों को पलटने पर पता चलता है कि 12वीं सदी तक तिब्बत एक आज़ाद देश था, जो भारत और चीन के बीच बफर स्टेट यानी विवादित जगह बना हुआ था.तब से लेकर अबतक चीन दलाई लामा को अपना दुश्मन और तिब्बत का अलगाववादी नेता घोषित करता आया है.
तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा से चीन की चिढ़ के बारे में शायद ही अब आपके मन में कोई सवाल बाकी रह गया हो. लेकिन अब अगर आप ये सोच रहे हैं कि चीन को दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश जाने पर ही इतना ऐतराज क्यों है तो इस सवाल का जवाब भी चीन की दादागीरी वाली चाल में छिपा है.
दरअसल बात ये है कि चीन अरुणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर अपना दावा करता है. मुख्य तौर पर अरुणाचल प्रदेश के तवांग को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है. चीन कहता है कि 15वीं शताब्दी के दलाई लामा का जन्म तवांग में हुआ था, इसलिए तवांग तिब्बत का हिस्सा है.
लेकिन सच ये है कि 1914 में आजाद तिब्बत के प्रतिनिधियों ने शिमला में हुई बैठक में तवांग के इलाके को भारत को सौंप दिया था. चीन ने 1959 में तिब्बत पर कब्जा जमाने और दलाई लामा के भारत भागकर आने तक इस मुद्दे पर कोई ऐतराज नहीं जताया था. लेकिन 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद चीन ने तवांग सहित पूरे अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा कर लिया था. हालांकि बाद में वो अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन बॉर्डर लाइन, जिसे मैकमोहन रेखा कहते हैं. उससे पीछे लौट गया था. तब से अबतक इस विवाद को सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच अब तक 15 बार बातचीत भी हो चुकी है. लेकिन ये बेनतीजा ही साबित हुई हैं.