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जम्मू-कश्मीर के हालात चिंताजनक: आडवाणी

जम्मू कश्मीर के हालात को ‘चिंताजनक’ करार देते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि राज्य प्रशासन पूरी तरह से विफल हो चुका है और संप्रग सरकार पाकिस्तान समर्थित अलगाववादियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने को है.

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जम्मू कश्मीर के हालात को ‘चिंताजनक’ करार देते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि राज्य प्रशासन पूरी तरह से विफल हो चुका है और संप्रग सरकार पाकिस्तान समर्थित अलगाववादियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने को है.

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हिंसाग्रस्त कश्मीर के हालात पर चर्चा करने के लिये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बुलायी सर्वदलीय बैठक से एक दिन पहले आडवाणी ने विवादास्पद सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) में नरमी लाने या सैनिकों को हटाने के किसी भी कदम का विरोध किया.

उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो इसके मायने ‘भारत की एकता को तोड़ने की इस्लामाबाद की रणनीति के समक्ष आत्मसमर्पण कर देने से होंगे.’

राज्य और केंद्र सरकार दोनों को आड़े हाथ लेते हुए आडवाणी ने कहा कि कश्मीर के बिगड़े हालात का कारण न सिर्फ उमर अब्दुल्ला सरकार है, बल्कि संप्रग सरकार भी असमंजस में है और ढुलमुल रवैया अपना रही है.

भाजपा की एक कार्यशाला को संबोधित करते हुए आडवाणी ने कहा, ‘हर एक बीतते दिन के साथ हमारी यह आशंका प्रबल हो जाती है कि संप्रग सरकार पाकिस्तान समर्थित अलगाववादियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने को है.’{mospagebreak}

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आडवाणी ने कहा कि कश्मीर में ‘राजनीतिक समाधान’ की बात चल रही है. उन्होंने कहा कि अलगाववादियों को उचित जवाब देने के बजाय सरकार सुरक्षा बलों को बुरा बता रही है.

एएफएसपीए में नर्मी लाने और बलों को हटाने के बारे में लगातार कहा जा रहा है. यह और कुछ नहीं, बल्कि 1947 के बाद की भारत की एकता को तोड़ने की इस्लामाबाद की रणनीति के आगे समर्पण है.

आडवाणी ने कहा, ‘पाकिस्तान के सैन्य शासक 1971 के युद्ध में मिली हार के बाद से इसी बात का सपना देख रहे हैं. यह शर्मनाक है कि कांग्रेस के एक प्रधानमंत्री ने भारत को उस युद्ध में ऐतिहासिक जीत दिलायी, वहीं दूसरी कांग्रेस सरकार कश्मीर में भारत के खिलाफ पाकिस्तान के छद्म युद्ध के आगे समर्पण करने का काम रही है.’

भाजपा नेता ने कहा कि कश्मीर को अधिकतम स्वायत्ता देने की बात हो रही है. उन्होंने कहा कि इसका अर्थ निकाला जाये तो इसके मायने जम्मू-कश्मीर को 1953 के पूर्व का दर्जा देने से होंगे.

अनुच्छेद 370 हटाने के बजाय संप्रग सरकार कश्मीर में सामूहिक रूप से हमें हासिल वषरें और दशकों के फायदे को खत्म करने की तैयारी में प्रतीत होती है. ऐसा इसलिये है क्योंकि संप्रग सरकार के पास इच्छा, दृष्टिकोण, प्रतिबद्धता और सक्षमता की कमी है.{mospagebreak}

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आडवाणी ने कहा, ‘मैं संप्रग सरकार को यह याद दिलाना चाहता हूं कि जब जम्मू कश्मीर विधानसभा ने जून 2000 में तथाकथित स्वायत्तता प्रस्ताव पारित किया था तब (केंद्र की तत्कालीन) वाजपेयी सरकार ने उसे सिरे से खारिज कर दिया था.’

उन्होंने कहा कि उस समय वाजपेयी ने टिप्पणी की थी कि प्रस्ताव को स्वीकार करने से हम पुराने दौर में लौट जायेंगे और राष्ट्र की अखंडता के साथ राज्य के लोगों की आकांक्षाओं को सुसंगत बनाने की नैसर्गिक प्रक्रिया उलट जायेगी. अगर सरकार इसे स्वीकार करती तो इससे ऐसे रूझान को बढ़ावा मिलता जो राष्ट्रीय एकता के लिये अनुकूल नहीं होता.

आडवाणी ने कहा कि हम सब सभी राज्यों को संघवाद की अवधारणा के मुताबिक वृहद शक्तियां देने के पक्षधर हैं लेकिन स्वायत्तता के नाम पर हम कश्मीर की अखंडता की प्रक्रिया को उलटने नहीं दे सकते.

कश्मीर के हालात पर अपने अलग संबोधन में पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि शांति लौटे. लेकिन शांति तब तक नहीं लौटेगी जब तक अलगाववादी मुक्त रहेंगे और सेना के हाथ बंधे रहेंगे.’

उन्होंने कहा कि भाजपा की रणनीति एकदम स्पष्ट है- सुरक्षा परिदृश्य को मजबूत करें और दुष्ट तत्वों को निरंकुश नहीं रखें. इसी के साथ, मजबूत सुरक्षा परिदृश्य में सरकार वार्ता प्रक्रिया फिर शुरू कर सकती है.

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