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सैन्य शासक जिसने पाकिस्तान को बनाया कट्टर, कश्मीर में बोए आतंक के बीज

पाकिस्तान में शरिया कानून लागू कर उसे धार्मिक कट्टरता की आग में झोंकने वाले और घाटी में ऑपरेशन टोपैक (Operation Topac ) चलाकर कश्मीर में आतंकवाद के बीज बोने वाले जनरल जिया उल हक का आज सोमवार को जन्मदिन है. तरक्की के रास्ते की जगह आतंकवाद की खूनी डगर पर चलकर पाकिस्तान बदहाली के जिस मोड़ पर पहुंचा है, वहां तक लाने में जिया उल हक की नीतियां जिम्मेदार बताई जाती हैं.

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1924 में जालंधर में पैदा हुआ था पाकिस्तान का यह सैन्य तानाशाह.(फाइल फोटो)
1924 में जालंधर में पैदा हुआ था पाकिस्तान का यह सैन्य तानाशाह.(फाइल फोटो)

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जब तीन-तीन युद्धों के बाद भी कश्मीर पर मुंह की खानी पड़ी तो पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल जिया उल हक ने खतरनाक साजिशों का नया जाल बुना. यह साजिश थी ऑपरेशन टोपैक (Operation Topac) की. इसके पीछे पाकिस्तान के नापाक इरादे थे. जिया उल हक का मानना था कि जो काम (कश्मीर पर कब्जा) पाकिस्तान 1947-48, 1965 और 1971 के युद्धों से नहीं कर सका, उसे घाटी में धार्मिक कट्टरपंथ, आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देकर आसानी से कर सकता है.

इसी सिलसिले में पाकिस्तान में सेना प्रमुख से राष्ट्रपति बने जनरल जनरल जिया उल हक ने 1988 में एक बैठक बुलाई. इस बैठक में चुने हुए कोर कमांडर, आईएसआई अफसर और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेताओं के सामने जिया उल हक ने ऑपरेशन टोपैक का खाका पेश किया. पूरे कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा जमाने वाले मकसद के साथ शुरू हुई इस बैठक में ऑपरेशन टोपैक के बारे में बताते हुए जनरल जिया उल हक ने कहा था," कश्मीर को आजाद कराने की योजनाओं में हमने अतीत में  गलतियां की हैं, यह कि हमने सीधे-सीधे सैनिक हस्तक्षेप के चलते कश्मीर को भारत से अलग कराना चाहा और मात खा गए. भविष्य में इन गलतियों से सबक लेते हुए सेना के अंतिम विकल्प को सुरक्षित रखेंगे.

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जिया उल हक ने यह भी कहा था,"हमें लड़ाई के ऐसे तरीके अपनाने चाहिए, जिसे कश्मीर समझ और संभाल सके. दूसरे शब्दों में सैनिक कार्रवाई के अलावा अन्य साधनों का शारीरिक तथा नैतिक इस्तेमाल, जिससे शत्रु का मानसिक बल खत्म हो जाए, उसकी राजनीतिक क्षमता को हानि पहुंचे और विश्व के सामने उसे दमनकारी के रूप में प्रदर्शित किया जा सके." इन बातों का जिक्र जम्मू-कश्मीर के हालात पर वहां के पूर्व राज्यपाल जगमोहन की किताब 'दहकते अंगारे' और बाबूराम-राम सूरत पांडेय की लिखी किताब 'राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध' में है.

आज (12 अगस्त) ही के दिन 1924 में पैदा हुए जनरल जिया उल हक ने कश्मीर में ऑपरेशन टोपैक के जरिए आतंकवाद और अलगाववाद के जो बीज बोया था, उसकी कीमत दोनों देशों को चुकानी पड़ रही है. जनरल जिया उल हक पाकिस्तान को न केवल धार्मिक कट्टरता की आग में झोंक दिया बल्कि कश्मीर को भी सुलगाने का काम किया. अपने शासनकाल में कट्टरता के जो कांटे उन्होंने बोए, वही आज पाकिस्तान के पैरों में चुभ रहे हैं. पाकिस्तान तरक्की की राह से मुड़कर आतंकवाद के रास्ते पर चल पड़ा है.

पाकिस्तान के समाचार पत्र डॉन की पत्रकार रीमा अब्बासी ने 2016 में जयपुर साहित्य उत्सव के दौरान बताया था कि जनरल जिया उल हक ने 1973 में जो संवैधानिक प्रावधान किए थे, उनका खामियाजा देश को अगले 40 वर्षों तक भुगतना पड़ा. उन्होंने यह व्यवस्था की कि कोई भी गैर मुस्लिम व्यक्ति देश का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा. यह देश को धार्मिक कट्टरता की ओर झोंकने वाला बड़ा सांकेतिक कदम था. बकौल रीमा अब्बासी," जनरल जिया उल हक के कार्यकाल के दौरान समाचार पत्रों के कार्यालयों में सैनिक तैनात रहते थे जो अखबार के छपने से पहले जांच करते थे कि कोई सरकार विरोधी खबर तो नहीं छप रही है."

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क्या था ऑपरेशन टोपैक

इस योजना का नाम राजकुमार टोपैक समरू के नाम पर रखा गया. इसकी वजह यहा कि उन्होंने 18वीं शताब्दी में उरुग्बे में स्पेनी शासन के खिलाफ अपरंपरागत युद्ध का संचालन किया था. दरअसल, पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक ने भारत के खिलाफ K-2 ( खालिस्तान, कश्मीर और ऑपरेशन टोपैक) युद्ध नीति लागू की थी. ऑपरेशन टोपैक के तहत घाटी और पंजाब में समानांतर आतंकवाद के बीज बोना था. पहले चरण के तहत घाटी में व्यापक पैमाने पर आतंकियों की घुसपैठ कराई गई. उधर पंजाब के सिख युवाओं को खालिस्तान के सपने दिखाकर उन्हें भी अलगाववाद और आतंकवाद के रास्ते पर ले जाने के लिए ट्रेनिंग पाकिस्तान ने शुरू कराई.

पाकिस्तान चाहता था कि पंजाब और घाटी दो-दो मोर्चों पर आतंकवाद से जूझने पर भारत को अस्थिर करने में आसानी होगी. ऑपरेशन टोपैक के जरिए सिख और कश्मीरी अलगाववादियों के बीच समन्वय स्थापित करने की नीति बनी. इसके तहत अलगाववादियों को पाकिस्तान में प्रशिक्षण, पैसा और हथियार दिए जाने की व्यवस्था हुई. नतीजा रहा कि कश्मीर में आतंकवाद ने भयंकर रूप ले लिया. ऑपरेशन टोपैक योजना के तहत विद्रोही गतिविधियों के लिए अलगाववादियों को तमाम सरकारी और गैर सरकारी सस्थानों में भी प्रवेश कराया गया. ऑपरेशन टोपैक के तहत ढाई लाख कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार कर उन्हें घरों से भगा दिया गया.

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पाकिस्तान में लागू किया शरिया कानून, तालिबान बनने में की मदद

जनरल जिया उल हक जैसे-जैसे सेना में ऊंचाइयां हासिल करते गए, वैसे-वैसे उनमें धर्म को लेकर कट्टरता बढ़ती गई. जब तख्तापलट के बाद जिया उल हक ने राष्ट्रपति पद संभाला तो संविधान को ठुकराते हुए शरिया कानून को लागू किया था. जिससे पाकिस्तान धार्मिक कट्टरता की राह पर चल पड़ा. आज पाकिस्तान बदहाली के जिस मोड़ पर है, वहां तक पहुंचाने में जनरल जिया उल हक की नीतियां जिम्मेदार बताई जाती हैं.

अपने पूरे कार्यकाल के दौरान जिया उल हक अमेरिका के 'यसमैन' बने रहे. अमेरिका के सहयोग से जनरल जिया उल हक ने अफगानिस्‍तान में छिड़े युद्ध के दौरान सोवियत रूस को वहां से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया था. जिससे उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उदय हुआ. स्थानीय कट्टरपंथी तत्व हावी हो गए और नतीजा तालिबान के रूप में एक नई चुनौती दुनिया के सामने आई.

जिसने सेना प्रमुख बनाया, उसी को फांसी दे दी

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने ही जनरल जिया उल को चीफ ऑफ ऑर्मी स्टाफ बनाया था. मगर उसी जनरल जिया उल हक ने मौका मिलते ही 5 जुलाई 1977 को न केवल जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्तापलट कर सैन्य शासन लागू कर दिया, बल्कि उन्हें जेल भेजकर बाद में फांसी पर भी लटका दिया. जिया ने तख्तापलट के पीछे तर्क देते हुए कहा था कि जुल्फिकार अली भुट्टो के कार्यकाल में पाकिस्तान के हालात खराब हो चले थे, लिहाजा सैन्य शासन जरूरी था.

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दिल्ली में की थी पढ़ाई, प्लेन क्रैश में हुई मौत

जनरल जिया उल हक का जन्म 12 अगस्‍त 1924 को पंजाब के जालंधर में हुआ था. दिल्ली के मशहूर सेंट स्टीफंस कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की थी. बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. जुलाई 1977 से अगस्त 1988 तक जिया उल हक ने बतौर राष्ट्रपति पाकिस्तान पर शासन किया. मगर 17 अगस्त 1988 को पाकिस्तान के बहावलपुर में एक प्लेन क्रैश के दौरान जिया उल हक की मौत हो गई थी. उस हादसे में 31 लोगों की मौत हुई थी. करीब 11 वर्षों तक राष्ट्रपति रहने वाले जनरल जिया उल हक पाकिस्तान में सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाले राष्ट्रपति रहे हैं.

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