बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी वसीयत भी लिखी थी जो कि आज तक खोली नहीं गयी और देश के एक बैंक में अब भी रखी हुई है. यह भी कि उसी बैंक में जिसमें जलियांवाला काण्ड के समय पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर रहे जनरल माइकल ओ डायर का भी खाता था जो उनके वापस लंदन चले जाने के बाद तक जारी रहा. जलियांवाला बाग में गोली चलाने का आदेश देने वाले ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर का खाता भी उसी बैंक में था.
जल्दी ही यह और ऐसी बहुत सी दुर्लभ जानकारियां देश के प्राचीनतम बैंको में से एक इलाहाबाद बैंक में आम जनता के लिए उपलब्ध हो जायेगी. बैंक अपने शुरुआती दिनों के लेजर (बैंक की खाता बही) और अन्य दस्तावेजों को एकत्रित करके एक आरकाइव (पूरा लेख एवं दस्तावेज संग्रहालय) की स्थापना करने जा रहा है जहां आम लोग भी जाकर उन्हें देख सकेगा.
लखनउ में तैनात इलाहाबाद बैंक के सहायक महाप्रबंधक हरिमोहन ने बताया, ‘बैंक की इस योजना का जन्म भी एक संयोग से हुआ. बैंक के पुराने दस्तावेजों की सफाई के दौरान बैंक के वर्ष 1865 और उसके आसपास के वर्षों के कुछ दुर्लभ लेजर और दस्तावेज हमारे हाथ लगे. उन्हें पलटा गया तो लगा कि बैंक का अपना संग्रहालय होना चाहिए जिसमें इसके अतीत को दिखाने वाले दस्तावेज और लेजर रखे हों.
उन्होंने बताया, ‘बैंक की पहली शाखा इलाहाबाद में वर्ष 1865 में पांच यूरोपीय लोगों ने खोली और दूसरी शाखा कलकता (कोलकाता) में खोली गयी लेकिन चूंकि कोलकाता अंग्रेजी साम्राज्य का व्यावसायिक केन्द्र था इसलिए उस शाखा को बैंक का मुख्यालय बनाया गया.{mospagebreak}
हरिमोहन ने बताया, इलाहाबाद बैंक मूलत: अंग्रेजों का बैंक था और इसकी शुरुआती शाखाएं अंग्रेजी साम्राज्य के लिए रणनीतिक और सैनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे कोलकाता, मेरठ, झांसी, लखनउ और कानपुर में खोली गयी. उन इलाकों में खोली गईं जहां अंग्रेज अधिकारियों के निवास थे और जहां से उनका राजकाज चलता था. उन्होंने बताया कि संग्रहालय की स्थापना के लिए जब देश के विभिन्न शाखाओं में उपलब्ध पुराने लेजरों और दस्तावेजों की खोजबीन और उनके एकत्रीकरण की मुहिम चली तो उनमें से एक से एक दुर्लभ जानकारियां मिलती गईं.
हरिमोहन ने बताया, दस्तावेजों की खोजबीन के दौरान हमारे हाथ लगी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की वसीयत जो एक बंद लिफाफे में अब भी बैंक की सेफ कस्टडी में रखी हुई है. उन्होंने बताया कि उपलब्ध लेजरों के अनुसार पंडित नेहरु ही नहीं बल्कि उनके पिता पंडित मोतीलाल नेहरु का भी इलाहाबाद बैंक में खाता था. उस समय बैंक में केवल अंग्रेजों और तब के राजा महाराजाओं और नवाब- तालुकेदारों के ही खाते खोले जाते थे और डिप्टी कलक्टर से नीचे के किसी आम भारतीय का खाता खोला ही नहीं जाता था.
हरिमोहन ने वर्ष 1892 का एक लेजर दिखाया जिसमें प्रदेश के कई राजाओं, महाराजाओं और तालुकेदारों के खातों में हजारों रुपये के लेन देन के ब्यौरे हैं और सुल्तानपुर अंचल के तत्कालीन राजा पट्टी के खाते में तो तीन लाख से अधिक रुपये जमा थे.{mospagebreak}
उन्होंने बताया कि जलियांवाला नरसंहार के समय पंजाब के गवर्नर रहे जनरल ओ डायर के नाम पर बैंक में 10 हजार रुपये जमा थे और बैंक में उस नरसंहार के खलनायक बिग्रेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर का भी खाता था.
बैंक के संग्रहालय के लिए दस्तावेजों को जुटाने में लगे अधिकारियों में शामिल हरिमोहन ने बताया कि दस्तावेजों की खोजबीन में पता चला कि तब इलाहाबाद बैंक के मैनेजर को एजेन्ट कहते थे वह अंग्रेज होता था और प्रशासनिक व्यवस्था में उसका पद बहुत बड़ा होता था. उन्होंने इलाहाबाद बैंक के एजेन्ट को 1899 में लिखा आगरा के जिला जज डब्लू जे डब्लू वेल्स का एक पत्र भी दिखाया जिसमें वेल्स ने स्वयं को अति आज्ञाकारी सेवक के रुप में संबोधित किया था.
हरिमोहन ने बताया कि वर्ष 1865 में इलाहाबाद बैंक के एजेन्ट का वेतन था 400 रुपये जो उस जमाने में एक बहुत भारी भरकम राशि हुआ करती थी.
उन्होंने यह भी बताया कि बैंक अंग्रेजों ओर रसूखदार लोगो के साथ कजरे का लेन देन भी करता था और ब्याज दरें भी अमूमन 9 से 13 प्रतिशत के बीच घटती बढती रहती थी.
यह बताते हुए कि बैंक के संग्रहालय के लिए भवन निर्माण का काम शीघ्र ही पूरा हो जायेगा हरिमोहन ने बताया, तब बैंक की पूरी शाखा को सालाना दो रुपये की वेतन बढोत्तरी मिलती थी जो बैंक का एजेन्ट अपने विवेक के अनुसार कर्मचारियों में वितरित करता था. किसी को पाई, दो पाई तो किसी को आना डेढ़ आना.