अनादिकाल से देवी-देवताओं एवं ऋषि मुनियों को चिरायु बनाने और उन्हें बल प्रदान करने वाला पौधा रीवा के जंगलों में होने का दावा किया गया है.
सैकड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी से विलुप्त हो चुके ’’सोमवल्ली’’ नामक इस दुर्लभ पौधे को लेकर वन विभाग का दावा है कि यह पौधा पूरी दुनिया में अब कहीं नहीं है. रीवा जिले के घने जंगल के बीच मिले इस पौधे को वन विभाग की नर्सरी में रोपित कर उस पर अनुसंधान किया जा रहा है. हजारों वर्ष पुराने इस विलुप्त पौधे के बारे में अब भले ही कहीं उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन प्राचीन ग्रन्थों एवं वेदों में इसके महत्व एवं उपयोगिता का व्यापक उल्लेख है.
प्राचीन ग्रन्थों व वेद पुराणों में सोमवल्ली पौधे के बारे में कहा गया है कि इस पौधे के सेवन से शरीर का कायाकल्प हो जाता है. देवी-देवता व ऋषि मुनि इस पौधे के रस का सेवन अपने को चिरायु बनाने एवं बल सामथ्र्य एवं समृद्धि प्राप्त करने के लिये किया करते थे. हालांकि सोमवल्ली पौधे के साथ कई अन्य दुर्लभ पौधे हैं, जिनका रस मिलाकर गुणकारी औषधियां बनाई जाती हैं, लेकिन इन पौधों के बारे में किसी को जानकारी नहीं है.{mospagebreak}रीवा के पूर्व मुख्य वन संरक्षक पीसी दुबे ने जिले के जंगल में इस पौधे को देखा और फिर उसके बारे में गहन अध्ययन किया. उन्होंने इस दौरान सैकड़ों वर्ष पुराने ग्रन्थों व वेदों का भी सहारा लिया तब इस पौधे की उपयोगिता सामने आई. दुबे ने बताया कि यह पौधा पृथ्वी से पूरी तरह विलुप्त हो चुका है. सामाजिक वानिकी रीवा की नर्सरी में लाये गये इस विलुप्त पौधे को वन विभाग द्वारा एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है. सोमवल्ली के पौधे को सुरक्षित ढंग से रोपित कर उसका संरक्षण किया जा रहा है.
उन्होंने बताया कि इस पौधे की खासियत है कि इस में पत्ते नहीं होते. यह पौधा सिर्फ डंठल के आकार में लताओं के समान है. हरे रंग के डंठल वाले इस पौधे को नर्सरी में बेहद सुरक्षित ढंग से रखा गया है, साथ ही जिले के जिस जंगल में यह पौधा मिला था, उसकी भी सुरक्षा की जा रही है.{mospagebreak}उन्होंने बताया कि सोमवल्ली पौधा सैकड़ों वर्ष विलुप्त हो चुका था, लेकिन जिले के जंगल में इसका मिलना विभाग के लिये एक बड़ी उपलब्धि है. इस पौधे को लेकर रिसर्च एवं अनुसंधान की तैयारी की जा रही है, ताकि इसके बारे में वह सभी जानकारी सामने आ सके जो अभी पता नहीं है.