झीरम घाटी में सबसे बड़े नक्सली हमले में प्रदेश कांग्रेस के ज्यादातर शीर्ष नेताओं की हत्या के बाद सहानुभूति की उम्मीद पाले कांग्रेस को आदिवासी इलाकों में फायदा तो हुआ, लेकिन मैदानी इलाको में हार ने उसे लगातार तीसरी बार विपक्ष में बैठने को मजबूर कर दिया. कांग्रेस ने जिन 35 विधायकों को दोबारा मौका दिया, उनमें से 27 चुनाव हार गए. कांग्रेस के चुनाव अभियान समिति के संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी से इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता संतोष कुमार ने नतीजों के बाद रायपुर में उनसे विशेष बातचीत की. पेश हैं अंश:
सवाल- हैट्रिक हार हुई कांग्रेस की, आपकी नजर में कमी कहां रह गई?
देखिए ये जनादेश है और हम विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकार करते हैं. कमी कहां रह गई, इसकी समीक्षा पार्टी में बैठकर करेंगे. इतना हम जरूर कहना चाहेंगे कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ऐसे स्वरूप में नहीं है जैसा अन्य प्रदेशों में हुआ है. हम 39 विधायकों के साथ सशक्त और रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएंगे.
सवाल- हार की बड़ी वजह आपकी नजर में?
इसकी विवेचना करेंगे, लेकिन एक बात जो सबको दिख रही है वह है कि हमने जो अपने 35 विधायकों को रिपीट किया और चार को नहीं मिला. उन में से 27 लोग हार गए. इस 27 में से 10 भी जीत जाते तो सरकार हमारी बनती. मेरी नजर में प्रथम दृष्टया यह एक वजह है. हमारे बड़े नेताओं जिनके हार ही हम कल्पना भी नहीं कर सकते. हमारे अनुसूचित जाति के क्षेत्र में हमारी करारी हार हुई. उनमें से 10 में से हम 9 सीटें हार गए. क्यों सतनामी समाज हमसे विमुख हो गया, इसकी समीक्षा करने पर ही पता चलेगा. हमारे कुछ विधायकों ने क्षेत्र में अच्छा काम किया था उसके बाद भी जनता ने नहीं स्वीकारा.
सवाल- तो क्या टिकट बंटवारे को लेकर कमी रह गई?
टिकट बंटवारे की बात नहीं कह रहा, लेकिन एक सैद्धांतिक निर्णय लिया गया कि मौजूदा विधायकों को टिकट देना है.
सवाल- टिकट बंटवारे पर आपके और पीसीसी अध्यक्ष चरण दास मंहत के बीच खींचतान चल रही थी. आपने घर पर बोर्ड लगा दिया था कि टिकटार्थी पीसीसी अध्यक्ष के पास जाएं, क्या पीसीसी की जिम्मेदारी है?
हमारे यहां टिकट बंटवारे की प्रक्रिया है आखिर में निचले स्तर से प्रक्रिया के तहत नाम निकलते हैं और चरणवार होते हुए आखिर में केंद्रीय चुनाव समिति फैसला करती है.
सवाल- लेकिन टिकटों को लेकर पीसीसी अध्यक्ष और आपके बीच टकराव चलता रहा.
टिकट के लिए हर नेता चाहता है कि वो जिसको चाहता है उसे टिकट मिले. इसलिए टिकट बंटने तक खींचतान रहती है. लेकिन जब एक बार टिकट बंट जाता है तो सभी नेता मिलकर सोनिया जी और राहुल जी के नेतृत्व में लड़े.
सवाल- चुनाव से पहले चर्चा थी कि आप चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ में हिमाचल का फार्मूला अपनाया जाए और आपको वीरभद्र सिंह की तरह पीसीसी की कमान सौंपी जाए. आपको लगता है उस वक्त पार्टी ने निर्णय में कोई चूक की?
देखिए मैं किसी निर्णय को गलत नहीं मानता. पार्टी ने जब जैसा उचित समझ, वैसा निर्णय लिया.
सवाल- आप कहते थे कि बस्तर में सत्ताधारी पार्टी की फर्जी वोटिंग की वजह से उसे फायदा मिलता है, लेकिन इस बार तो बस्तर के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में है.
देखिए, इस बार चुनाव आयोग ने हमारे कहने पर काफी अच्छे इंतजाम किए. वीडियोग्राफी कराई, एक लाख पुलिस वाले तैनात किए गए. वहां निष्पक्ष चुनाव हुआ और जो मैं पहले कहता था वो सच साबित हुआ. इस बार निष्पक्ष चुनाव हुए तो हम अधिकतर सीटों पर जीते और जहां हारे भी हैं वहां बहुत कम अंतर से हारे. लेकिन इस बार मैदानी इलाकों में जरूर हमारी पराजय हुई. इसका मुख्य कारण रहा कि यहां हमने जिन 27 विधायकों को टिकट दिया उसमें से सिर्फ 8 जीतकर आए. अगर चार और जीतते तो सरकार हमारी बनती.
सवाल- छत्तीसगढ़ में जो नतीजे आए, आप उसको मोदी की जीत मानते हैं या रमन सिंह की?
छत्तीसगढ़ में मोदी कोई फैक्टर नहीं है. मोदी की सबसे ज्यादा सभाएं बस्तर और सरगुजा में हुई और वहां उनका सफाया हो गया. इसका मलतब साफ है कि मोदी कोई फैक्टर नहीं थे. मोदी की सभाओं में उपस्थिति 800-1000 होती थी. यहां लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस की थी. बीजेपी आदिवासी अंचल में हारी और मैदानी इलाकों में बढ़त हासिल की.
सवाल- कांग्रेस ने अपना सारा फोकस बस्तर क्षेत्र पर किया और बाकी क्षेत्र पर कम ध्यान दिया, क्या ये भी एक वजह है?
ये सही बात है कि हमलोग बस्तर में हारते थे इसलिए इस बार ज्यादा ध्यान इसी क्षेत्र पर था. एक-एक विधानसभा में मेरी चार-चार सभाएं हुईं. भक्तचरण दास की सभाएं हुई. वहां राहुल जी और सोनिया जी की भी सभाएं हुई. बस्तर इलाकों में हमने फोकस किया था, लेकिन मैदानी इलाको में ऐसा परिणाम आएगा, विशेषकर एससी की 10 सीटों में. ऐसा हमे पूर्वानुमान नहीं था क्योंकि उस समाज का आरक्षण 16 से 12 फीसदी कर दिया गया था और लोगों में क्रोध था. ये बड़ी मीमांसा की जरूरत है.
सवाल- आपको नहीं लगता है कि अब वक्त आ गया है कि अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को पुरानी पीढ़ी के नेताओं से बाहर निकलकर नए नेताओं को नेतृत्व सौंप देना चाहिए?
मैं आपसे सहमत हूं. अब समय आ गया है कि यहां नया नेतृत्व तैयार हो और अपनी जवाबदेही संभाले. खुशी की बात ये है कि इस बार विधानसभा में हमारे जो लोग चुनकर आए हैं उनमें ज्यादातर नौजवान और कम उम्र वाले हैं. अब उनका नेतृत्व विकसित हो, वो लोग अब बागडोर संभाले ये कांग्रेस के लिए अच्छा होगा.
सवाल- चार राज्यों के जो नतीजे आए हैं उससे कांग्रेस विरोधी लहर भी दिख रही है और खास तौर से दिल्ली जहां दोनों मुख्य पार्टियां बीजेपी-कांग्रेस का विकल्प है, तो लोगों ने नए विकल्प को चुना. आप किस तरह देखते हैं?
ये सही है कि चारों राज्यों में हमारी पराजय हुई है. पर दो राज्यों में बीजेपी का असर नहीं दिखाई दिया. दिल्ली में नई पार्टी का असर दिखता है और छत्तीसगढ़ में बीजेपी-कांग्रेस की जो पहले स्थिति थी उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया है. इसका मतलब मोदी फैक्टर नाम की चीज कम से कम इन दो प्रदेशों में नहीं चली. बाकी दो प्रदेशों में चली इस पर भी संदेह इसलिए होता है क्योंकि राजस्थान में वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चैहान का प्रादेशिक नेतृत्व भी सशक्त था तो उस नेतृत्व के कारण उनकी जीत हुई या मोदी की वजह से, ये निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता.
सवाल- क्या छत्तीसगढ़ में भी आप बीजेपी के प्रादेशिक नेतृत्व को सशक्त मानते हैं?
छत्तीसगढ़ में वैसी स्थिति नहीं हुई, जैसी राजस्थान-मध्य प्रदेश में हुई. यहां हमलोग बराबरी खड़े हैं. वोट फीसदी में 1 प्रतिशत का भी अंतर नहीं है.
सवाल- अब आप लोकसभा में छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के कितनी सीटें जीतने की उम्मीद रखते हैं?
आज कुछ कहना गलत होगा. लेकिन हमें लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरु कर देनी चाहिए. अतीत को भूलकर लोकसभा में ज्यादा से ज्यादा सीटें आएं इसका प्रयास करना चाहिए. बीजेपी को सत्ता में रहने का थोड़ा फायदा मिलेगा क्योंकि सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करना उन्होंने 10 साल में सीख लिया है, कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकती. इसलिए ये नुकसान तो कांग्रेस को रहेगा.