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समग्र वार्ता पर लौटने का कोई मतलब नहीं: एनएसए

समग्र वार्ता फिर से शुरू करने के लिए पाकिस्तान के लगातार आग्रह के बावजूद भारत ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि उसी प्रक्रिया पर लौटने का कोई मतलब नहीं है और हमें इतिहास से सीख लेनी होगी.

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समग्र वार्ता फिर से शुरू करने के लिए पाकिस्तान के लगातार आग्रह के बावजूद भारत ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि उसी प्रक्रिया पर लौटने का कोई मतलब नहीं है और हमें इतिहास से सीख लेनी होगी.

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राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने कहा कि हाल ही में विदेश सचिव स्तर की वार्ता यह पता लगाने के मकसद से हुई थी कि वार्ता को आगे बढ़ाया जा सकता है या नहीं. मेनन ने कहा, ‘समग्र वार्ता, जो कि 26/11 के दौरान खत्म हो गयी, उस पर वापस लौटने की बात हमारे दिमाग में आने का स्पष्ट तौर पर कोई मतलब नहीं है.’

एक सवाल के जवाब में मेनन ने कहा, ‘हमें इतिहास से सीखना होगा, हमारे साथ क्या हुआ, क्या हो रहा है। इसलिए हम बातचीत कर रहे हैं. इसलिए उस (विदेश सचिव स्तर की) वार्ता का पूरा केंद्र बिंदु यह तलाशना था कि क्या संभव है और हम इसके साथ कहां तक जा सकते हैं.’

मेनन के बयान को महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि पाकिस्तान समग्र वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए लगातार दबाव बना रहा है. मुंबई हमलों के बाद इस पर रोक लग गयी थी. 26/11 के साजिशकर्ताओं और आतंकी समूहों के खिलाफ पाकिस्तान की ओर से कार्रवाई नहीं होने की पृष्ठभूमि में 25 फरवरी को हुई भारत-पाक वार्ता के सवाल पर मेनन ने कहा कि वह नतीजों के बारे में बताने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन दोनों विदेश सचिवों की बातचीत के पहले दौर के बाद यह देखा गया कि भविष्य में बातचीत कहां ले जायी जा सकती है.

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उन्होंने कहा, ‘भारत और पाकिस्तान ने एक दौर की बातचीत की. हमने एक दूसरे से बातचीत की और हमने कहा कि हम क्या सोचते हैं, हम क्या चाहेंगे. देखते हैं कि हम इसे कहां ले जा सकते हैं.’

अफगानिस्तान में भारतीयों पर निशाना साधकर किये गये हालिया हमलों के मद्देनजर भारत द्वारा अपनी मौजूदगी घटाने या बढ़ाने के सवाल पर एनएसए ने कहा, ‘भारत अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र बहाली में मदद के साथ अफगान जनता की सहयोगी परियोजनाओं का निर्माण करता रहेगा और वहां के मौजूदा माहौल में इन्हें करने के रास्ते तलाशेगा.’ उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई कटौती नहीं की जाएगी.

मेनन ने कहा, ‘अफगानिस्तान में हम जो कर रहे हैं, वह अफगान जनता की आकांक्षा की प्रतिक्रिया के तौर पर है.’ भारत में एक सामरिक संस्कृति नहीं होने के दावों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले कुछ साल में एक सामरिक सोच ने आकार लिया है लेकिन उन्होंने कहा कि विवेकपूर्ण सोच जरूरी है.

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