क्या देश में सूखे के हालात पैदा होने लगे हैं? क्या देश में खाने पीने की चीजों का भयानक संकट खड़ा होने जा रहा है? अगर मौजूदा संकेतों की मानें तो यही महसूस हो रहा है क्योंकि देश में जिस तरह से खाने पीने की चीजों के दाम आसमान चढ़ते जा रहे हैं.
झारखंड और मणिपुर के कई जिले सूखाग्रस्त घोषित
मॉनसून कमजोर पड़ता जा रहा है, मणिपुर और झारखंड के कईं जिले सूखा प्रभावित घोषित कर दिए गए हैं. उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में अच्छी बारिश का किसान अब तक इंतजार कर रहे हैं, पंजाब हरियाणा और राजस्थान में हालात कोई बेहतर नहीं हैं. इस सबसे लग रहा है कि बाजार को इस साल कमजोर मानसून के बाद कोई उम्मीद नहीं बची है, खेतों में काम करने वाले किसान परेशान हैं, अगले साल की फसलों का इंतजाम कहां से होगा.
बीज हो रहे हैं खराब
सरकार तो कहती है कि साल भर से ज्यादा वक्त तक के लिए अनाज के भंडार देश मेँ भरे पड़े हैं. लेकिन मुश्किल ये नहीं है, मुश्किल तो इस साल किसानों और मध्य वर्ग की है. मानसून कमजोर रहा तो किसान के पास इस साल कमाई का कोई जरिया नहीं बचेगा क्योंकि मानसून की उम्मीद में देश के बड़े इलाकों में किसानों में बुआई की तैयारी तो की, लेकिन बारिश के बगैर वो बीज भी अब खराब होने लगा है.
किसान की फसल कम हुई या खराब हुई तो उसके लिए भी संकट खड़ा हो जाएगा. ऐसे में अगर खाद्यान्न का भी संकट खड़ा हुआ तो फिर बाजार में रोजाना की चीजों के दाम आसमान छूते चले जाएंगे, जिसकी मार से ना तो मध्य वर्ग और ना ही उच्च मध्य वर्ग बच पाएगा.
अल नीनो का है प्रभाव
दरअसल ये हालात पैदा हुआ मानसून में कमजोरी से. इस वक्त तक तो पूरे देश में जोरदार बरसात हो जाया करती है, लेकिन इस बार उत्तर भारत, पश्चिम और पूर्वी राज्यों में लोग बारिश को तरस गए हैं. एकाध दिन अच्छी बरसात को छोड़कर इस बार इंद्र देवता ने भारत पर मेहरबानी दिखाई ही नहीं.
पानी-पानी के लिए रुलाया मॉनसून ने
सबसे भयानक हाल उत्तर प्रदेश में है, जहां इस बार 76 फीसदी बरसात कम हुई है. पंजाब के खेत भी इस बार प्यासे रह गए हैं, जहां 69 फीसदी कम बरसात हुई है. उत्तराखंड और और हिमाचल प्रदेश में भी अब तक औसत से 66 फीसदी कम बारिश हुई है. हरियाणा और दिल्ली में बारिश में करीब 57 फीसदी कमी दर्ज की गई है.
यानी कुल मिलाकर पूरे उत्तर भारत पर नजर डालें, तो यहां औसत से 46 फीसदी कम बारिश हुई. मध्य भारत, जिसमें मध्यप्रदेश, गुजरात के अलावा महाराष्ट्र उड़ीसा जैसे राज्य हैं, वहां भी 44 फीसदी बारिश कम हुई है. पूर्वी हिस्सों में भी बारिश करीब 35 फीसदी कम हुई है. दक्षिण भारत में 21 फीसदी बारिश कम हुई है.
बिजली संकट भी गहराया
देश भर में मानसून कमजोर पड़ता दिख रहा है, खेती पर तो इसका नतीजा है ही, देश के शहरों में पहुंचने वाली बिजली पर भी इसका बुरा असर पड़ने लगा है. नतीजा उद्योगों को अपने उत्पादन में ना चाहते हुए भी कहीं कहीं कटौती करनी पड़ी है. वजह बिजली की सप्लाई हो ही नहीं रहीं, क्योंकि बिजली जिन बांधों पर पैदा होती है, वहां पानी का लेवल दिन पर दिन घटता जा रहा है.
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, मानसून इस बार कमजोर क्यों पड़ा है. जानकार इसकी एक बड़ी वजह अल नीनो को मानते हैं. अल नीनो दुनिया भर के मौसम में बदलाव की वजह से बनता है. अमूमन ये हर चार साल में बनता है, लेकिन इसका फर्क कब और कितना पड़ता है, ये अल नीनो की मजबूती से ही तय होता है.
क्या है अल नीनो
आइए जरा समझें कि ये अल नीनो है क्या. जब प्रशांत महासागर की सतह पर हवाओं का तापमान सामान्य से बढने लगता है, तो दक्षिण अमेरिकी देशों की तरफ से एशिया की तरफ बहने वाली हवाओं की रफ्तार बदल जाती है, नतीजा एशिया और ऑस्ट्रेलिया में कमजोर मानसून. ऑस्ट्रेलियाई मौसम विभाग ने भी अल नीनो की आशंका जताई है. यानी इस बार भारत समेत एशिया के कईं देशों और ऑस्ट्रेलिया तक में बारिश कम होगी, और दुनिया के ये हिस्सा मंदी के इस दौर में अल नीनो की मार भी झेलने को मजबूर होगा.