अमेरिका के नीति-नियंताओं ने जो राह पकड़ी है, उसे देखकर आश्चर्य होता है. सिर्फ बीते 30 वर्षों पर ही नजर डालें-रोनाल्ड रीगन, बिल क्लिंटन और अब...बराक ओबामा. ये शब्दों के जरिए ऐसा सम्मोहन पैदा करते हैं, जो हर तरह के लोगों को बांधने में सक्षम हो. अपने भारत दौरे पर बराक ओबाम ने ठीक ऐसा ही किया. वे उचित स्थान पर सटीक बातें बोलते हैं. वे मुंबई में धनकुबेरों के सामने पैसे की भाषा बोलते हैं, तो देश की राजधानी में राजनेताओं के सामने दर्शन बघारते नजर आते हैं.
ओबामा इन राजनेताओं की कमजोरियों से भलीभांति वाकिफ हैं, जिन्होंने पिछले 50 सालों में अपने किसी बड़े नायक को भुलाया नहीं है. यही वजह रही कि उन्होंने भाषण में महात्मा गांधी, बाबासाहब अंबेडकर और स्वामी विवेकानंद का जिक्र किया और बदले में खूब वाहवाही लूटी. संसद का भव्य सेंट्रल हॉल तालियों से गूंज उठा. उन्होंने उन आलोचकों को गलत साबित किया, जिन्होंने पहले कहा था कि ओबामा देश को देंगे तो कुछ नहीं, पर ले जाएंगे सबकुछ. चलिए, यह बात भी एक हद तक ठीक ही है.
ओबामा भारत से करोड़ों डॉलर का सौदा अमेरिका ले जा रहे हैं. इससे वहां हजारों भर्तियां पैदा होंगी. इसके बदले में अमेरिका ने सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए भारत का समर्थन किया है. यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे मनमोहन सिंह अपने देश में भुनाने में समक्ष होंगे. जहां तक आतंकवाद का सवाल है, ओबामा ने पाकिस्तान को महज हल्की धमकी ही दी है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को आतंकियों के लिए 'जन्नत' साबित होने से बचना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि मुंबई हमले के सूत्रधारों पर जल्द कार्रवाई होनी चाहिए. यहां कुछ बातें हमें निराश करती हैं. {mospagebreak}ओबामा ने पाकिस्तान को यह संकेत देने से इनकार कर दिया कि उसे अमेरिका से आर्थिक मदद तभी मिल सकेगी, जब वह अपने यहां से आतंकी कैंपों का सफाया कर दे.
अगर समग्र रूप से देखें, तो ओबामा का यह दौरा उससे कहीं ज्यादा बेहतर साबित हुआ, जैसी पहले उम्मीद की जा रही थी. पूरा दौरा गर्मजोशी से भरा रहा, जिसमें दोनों ही पक्ष परस्पर लाभ की आकांक्षा से एक-दूसरे के करीब आते दिखे. पर यह उत्साह इस आशा के साथ जुड़ी हुई है कि ओबामा का दौरा महज बयानों का पुलिंदा या सिर्फ एक राजकीय उत्सव बनकर न रह जाए.