उस दिन तकरीबन बारह या एक बज रहे होंगे. मैं दफ्तर में काम कर रही थी कि अचानक आतंकी नवेद के पकड़े जाने की खबर आई. मेरे घर से फोन आया तो मैंने कहा- मैं अभी बहुत बिजी हूं. आतंकी पकड़ा गया है, बाद में बात करती हूं. फोन पर ही फट से सवाल दागा गया कि कौन आतंकी-कैसा आतंकी. मैंने कहा अरे जम्मू कश्मीर के उधमपुर से नवेद पकड़ा गया है. गांव वालों ने पकड़वा दिया. एक तो मर गया, दूसरे को जिंदा पकड़ लिया गया. तभी आवाज आई चलो-चलो बाकी बात घर पर आकर करते हैं. जब घर पहुंची तो सुनने को मिला- अरे तुम कैसे बात करती हो फोन पर. किसने कहा था आतंकी के बारे में बताने को. कहीं तुम्हारा फोन टेप हो रहा होगा तो?
तब मुझे थोड़ा एहसास हुआ कि हो सकता हो मेरा फोन टेप हो रहा हो. मैं तो फोन पर बड़ी ही नॉर्मल बात कर रही थी. फिर लगा आखिर मैं ही क्यों, क्योंकि मैं मुस्लिम हूं, शायद इसलिए ये डर मेरे घर वालों या मेरी पूरी कम्युनिटी में बैठा है. भारत आज अपनी आजादी की 69वीं सालगिरह मना रहा है पर लगता है कि इस देश में कुछ ही लोगों को ये आजादी नसीब हुई है.
अरे इतना जोर से मत हंसो, धीरे नहीं हंस सकती क्या... इस तरह की लाइनें सुनने की आदत सी हो गई है, यकीन मानिए अब अगर तेज हंसने पर कोई टोके नहीं तो लगता है मैं कहीं अकेले तो नहीं हंस रही थी. क्या मुझे खुलकर हंसने बोलने की आजादी नहीं....
मुझे याद है कई साल पहले जब मैं मास कॉम के एंट्रेंस की तैयारी कर रही थी. मुझसे घर पर कहा गया हमने बहुत सोचा लेकिन तुम ये कोर्स नहीं कर सकती. ये कोर्स लड़कियों के लिए नहीं बना है, देर रात घर से बाहर रहना, राजनीति और नेताओं की बात करना, रात भर दफ्तर में काम करना हम तो चलो करने भी दें लेकिन जिससे तुम्हारी शादी होगी वो नहीं करने देगा, बेहतर होगा कि तुम टीचिंग की लाइन में जाओ. शादी के बाद कोई परेशानी नहीं होगी, अपने पति और बच्चों का ख्याल रख सकोगी, घर पर रहोगी, पूरा समय दे पाओगी और क्या चाहिए.
इस चर्चा के बाद मेरे मन में दो सवाल उठे क्या मैं अपनी पसंद का पेशा चुनने के लिए आजाद नहीं हूं. क्या शादी का मतलब ही सिर्फ बेड़ियां होता है. आखिर जिन कामों को करने की अपेक्षा मुझसे की जा रही है वो मेरे जीवनसाथी से क्यों नहीं की जा रही. आखिर उम्र भर हम दोनों को साथ रहना है तो सिर्फ मुझे ही क्यूं उसे भी मेरा ख्याल रखना चाहिए. अगर कभी काम के चलते उसे देर से आने की आजादी है तो मुझे क्यों नहीं. बच्चे पालने से लेकर घर चलाने की सारी जिम्मेदारी मेरे ही सिर क्यों मढ़ी जा रही हैं. मुझे लगता है हम तो आजाद हो गए लेकिन समाज की सोच अब भी बेड़ियों से बाहर नहीं निकल सकी है.
''आजादी खयालों में नहीं जज्बों में है जरूरी, तभी तो हो सकेगी देश की हर कमी पूरी...
अंग्रेजों से तो आजाद हो गए हम, अब छोटी सोच से भी आजादी है जरूरी.''