आज 22 अप्रैल है और इस दिन पूरी दुनिया में Earth Day मनाया जा रहा है. Earth Day हैशटैग के साथ ट्विटर और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ट्रेंड भी कर रहा है. दुनिया भर से बड़ी-बड़ी हस्तियां इस दिन और अधिक परेशान दिख रही हैं. कुछ और कागद कारे किए जा रहे हैं, लेकिन इस सब का हासिल निल बट्टे सन्नाटा ही होने वाला है.
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब कहते थे कि धरती सबकी जरूरतें पूरा कर सकती है पर किसी एक शख्स का भी लालच पूरा नहीं कर सकती तो इसे सिर्फ तर्क के आधार पर रखने के बजाय हालात पर ध्यान रख कर सोचें. आंखों के सामने की धुंध छटती नजर आएगी. इस एक वाक्य में इतना कुछ है कि आगे कुछ कहने-लिखने की संभावना ही नहीं बचती, लेकिन कुछ-न-कुछ तो कहना ही है.
आज-कल महाराष्ट्र फिर से सुर्खियों में है. वैसे तो महाराष्ट्र हमेशा ही सुर्खियों में रहता है, लेकिन इन दिनों वहां के मराठवाड़ा-विदर्भ इलाके या फिर कहें कि पूरे महाराष्ट्र में अकाल जैसी स्थिति तारी है. तिस पर से राज्य सरकार में मंत्री व कभी किसान नेता के तौर पर मशहूर गोपीनाथ मुंडे की पुत्री पंकजा मुंडे ने महाराष्ट्र के लातुर नामक जगह से सेल्फी वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा की हैं. वे वहां सूखा प्रभावित इलाके का दौरा करने गईं थीं.
इससे पहले महाराष्ट्र के ही एक और नेता एकनाथ खड़से सूखा प्रभावित इलाके के दौरे पर गए थे. जाहिर है कि जितने बड़े नेता उतना बड़ा तामझाम. एकनाथ भी हेलिकॉप्टर से गए थे और उस हेलिकॉप्टर के उतरने और उड़ान भरने पर वहां धूल न उड़े इसलिए वहां हजारों लीटर पानी छिड़का गया था. अब इन्हें कौन समझाए कि एक तो वैसे ही पानी की कमी है, धरती कराह रही है, किसान बिलबिला रहा है और ये नेता-मंत्री उनका दुख साझा करने के बजाय और दर्द दे रहे हैं.
एक और वाकया थोड़ा पहले का है और तब महाराष्ट्र सरकार में ही तब के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने एक विवादास्पद बयान दिया था. जब महाराष्ट्र के किसानों व विपक्षी पार्टियों ने उनसे राज्य में पटवन के लिए न मिलने वाले पानी की गुहार लगाई तो उन्होंने आश्वासन व ढाढ़सी शब्दों के बजाय कहा था, "अगर बांध में पानी नहीं हैं तो, क्या वे नहर में पेशाब करके पानी भर दें?" अब बताइए भला, कोई ऐसे भी बेगैरत हो सकता है क्या? अव्वल तो अपनी जिम्मेदारियों से भागना और ऊपर से ऐसे कृत्य और बयान. क्या दुनिया के सबसे बड़े और बेहतरीन लोकतंत्र में नेताओं और मंत्रियों को यह शोभा देता है.
ऐसा भी नहीं है कि यह सिर्फ महाराष्ट्र की कहानी है. देश की राजधानी से महज दो-चार घंटे की दूरी पर बसे कई राज्यों में भी स्थितियां भयावह हैं. बुंदेलखंड तब ही सुर्खियों में होता है जब वहां कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता या फिर राज्य का मुख्यमंत्री दौरे पर रहता है. दौरे होते रहते हैं. गाड़ियां धूल उड़ाती रहती हैं और स्थितियां जस की तस बनी रहती हैं, इसलिए ही तो हम कहते हैं कि इस Earth Day थोड़ी शर्म बोते हैं. हो सकता है शर्म की फसल बड़ी होकर इन नेताओं को भी दिखे और वे भी इन्हें देख कर शर्मिंदा हो जाएं.