भारत ने भारतवंशी प्रीत भरारा को करारा जवाब दिया है. उन्होंने हमारी वाणिज्य दूत देवयानी खोबरागड़े को गिरफ्तार किया, तलाशी ली और हवालात में रखा. हमने अमेरिका को वियना कन्वेंशन दिखाकर इसे नाजायज़ करार दिया. अमेरिका ने हमें वहां के कानून की किताब पकड़ाई और कहा ज्यादती की जांच होगी पर बाकी सब जायज़ है.
अव्वल तो हम कुछ करते नहीं और करते हैं तो अति करते हैं. अति सर्वत्र वर्जयेत पर अति का जवाब अति तो क्या आपत्ति. अमेरिकी राजनयिकों से सारी सुविधाएं वापस लीं, उनके दूतावास के सामने से सुरक्षा घेरा हटा लिए, सबके आमदनी-खर्चे का हिसाब मांगा और त्योहारों के मौसम में ड्यूटी-फ्री दारू बंद करवा दी. अब जब आंख के बदले आंख का मामला सेटल हुआ दिखता है, तो एक नज़र इस पर मार लें कि इस बार इस क़दर ग़दर क्यों मचा. हमारे पूर्व राष्ट्रपति, रक्षा मंत्री तक के कपड़े उतार चुके अमेरिका पर इस बार ऐसे क्यों टूट पड़े कि मानों दोस्ती टूट जानी है?
नेता, वैज्ञानिक या शाहरुख खान तो आते जाते रहते हैं. वह उन पर धौंस जताते हैं, और हम बदले में आपत्ति जता देते हैं. कुछ ऐसे ही हर मामले धता बता देते हैं पर इस बार मामला नौकरशाही का था. जब मामला उनका हो तो फिर आपत्ति काफी नहीं, कड़े कदम उठाए जाते हैं. एक आईएफएस अधिकारी के साथ ऐसा बर्ताव आईएफएस अधिकारियों को तनिक ना सुहाया. चूंकि विदेश नीति के कार्यान्वयन का अधिकार उनका है, उन्होंने किया जो मर्ज़ी में आया. अमेरिका के गुरूर से अकड़ी गर्दन का मर्दन अच्छी बात है. कभी-कभार अपने गर्दन का भी सुदर्शन करना चाहिए. अमेरिका में बहुत कुछ बुरा है. जैसे कानून के सामने सब बराबर. हर आदमी तीसमार खां या कोई नहीं.
वहां सब को एअरपोर्ट पर सुरक्षा जांच से गुज़रना पड़ता है. हमारे यहां एअरपोर्ट पर सूची टंगी होती है जिसमें एक दामाद भी आते हैं जिनकी तलाशी प्रतिबंधित है. कई यूरोपीय देशों के प्रधानमंत्री अपने फ़्लैट में रहते हैं और ख़ुद गाड़ी चला कर ऑफिस जाते हैं. हमारे यहां सायरन-युक्त काफ़िला होता है. नीदरलैंड की राजकुमारी साइकिल से स्कूल जाती हैं और कभी-कभी उनके माता-पिता भी साथ जाते हैं अपनी-अपनी साइकिल पर. उरुग्वे के राष्ट्रपति को ठीक-ठाक तनख्वाह मिलती है पर वह अपने जीर्ण-शीर्ण घर में रहते हैं और 1987 मॉडल की कार चलाते हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के बेटे को शराब पीकर गाड़ी चलाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया तो नियम के अनुसार अभिभावक को थाने जाकर छुड़ाना पड़ा. टोनी ब्लेअर थाने गए, बेल बांड भरा फिर बेटा मिला.
भारत में किसी की मजाल कि कलक्टर के बेटे को हाथ लगा ले. पूछताछ कर ली तो थानाधिकारी निलंबित. यहां लालबत्ती को देखते ही सड़क की सारी बत्तियां हरी हो जाती हैं उनको क्या मालूम सड़क पर घंटों सर धुनना कैसा लगता है. आटे-दाल का भाव कैसे कुनबे के किराए पर दबाव बनाता है, सरकारी बंगलों में बैठे सरकार को पता चले भी तो कैसे. दिल्ली में काम करने वाले नॉएडा और गुडगांव में रहने की कीमत नहीं चुका पाते.
लोकसभा सदस्य लोकसभा के आस-पास बंगलों में रहते हैं, जिनकी कीमत आजकल दो सौ करोड़ से ऊपर है. सरकार उनके लॉन तक की देखभाल करती है. प्रधानमंत्री तो बहुत बड़ी हस्ती है इस बस्ती में. छोटे अधिकारी भी बंगले, गाड़ी, अर्दली और खानसामा पाता हैं. किसको कितनी सुविधा मिले ये नियम नेता और नौकरशाह मिल कर बनाते हैं, अपने लिए जितना हो सके मुफ्त की व्यवस्था रखते हैं. देश की सेवा कर रहे हैं, इसलिए लालबत्ती तो बनता है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल में हर तरफ लालबत्ती पर आपत्ति की तो कितनों के अरमानों को बत्ती लग गई. जनता के पैसे पर बंगले में रहते हैं, जनता के पैसे की गाड़ी में चलते हैं और जनता को ही लालबत्ती दिखा ललकारते हैं. जनता हट जाती है, नेता आगे बढ़ जाते हैं. इतनी इज्ज़त कि बाहर के लोग देखें तो उनकी आंखें नम हो जाएं.
अमेरिका में न्यूनतम मजदूरी का नियम लागू है, सख्ती से, सब पर. देवयानी उस का उल्लंघन कर रही थी. नौकरानी संगीता ने हिम्मत की और शिकायत लगा दी. उसके परिवार को भारत में सताया जाने लगा. जो देवयानी के साथ हुआ वह तो ज्यादती है, पर वह नौकरानी भी भारत की ही बेटी थी. गुस्सा शांत हो जाए तो अपनी सहानुभूति का एक टुकड़ा उसे भी दीजिएगा.
दो महीने पहले अमेरिका ने भारत को मामला सुलझाने को कहा. हमने कुछ नहीं किया. नौकरानी अफसर के खिलाफ शिकायत करे तो यहां कौन सुनता है. अमेरिका वालों ने देवयानी को गिरफ्तार कर लिया. पूरी तलाशी ली ताकि गिरफ्तार व्यक्ति के पास कोई ऐसा सामान ना बचे जिससे वह कस्टडी में खुद को या दूसरों को हानि पहुंचा सके. वही बर्ताव किया जो हर गिरफ्तार आम आदमी के साथ होता है. आईएफएस वीवीआइपी होता है. ये अमेरिका वालों को कौन बताए. अमरीकी कहते हैं देवयानी अपनी नौकरानी का शोषण कर रही थी. उन्हें कौन समझाए शोषण वीआइपी कल्चर का कश्मीर है. अटूट अंग.