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मणिपुर में एक नौकरशाह ने संवारी लोगों की जिंदगी

नौकरशाहों को मणिपुर के तौसेम में तैनात सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) से सीख लेनी चाहिए. भारत के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में गिने जाने वाले मणिपुर के तौसेम प्रखंड के निवासियों के चेहरे पर अब परेशानियों की लकीरों की जगह मुस्कान है.

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नौकरशाहों को मणिपुर के तौसेम में तैनात सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) से सीख लेनी चाहिए. भारत के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में गिने जाने वाले मणिपुर के तौसेम प्रखंड के निवासियों के चेहरे पर अब परेशानियों की लकीरों की जगह मुस्कान है.

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परिवर्तन का हरकारा बने एसडीएम आर्मस्ट्रांग पेम के कार्यों की बदौलत ऐसा संभव हुआ. आर्मस्ट्रांग ने यहां के निवासियों की बेहद अहम जरूरत मोटर-कारों के दौड़ने लायक सड़क निजी प्रयासों की बदौलत उपलब्ध कराई है.

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बिना सरकारी सहायता के बीते फरवरी में 100 किलोमीटर लंबी 'पीपुल्स रोड' लोगों को समर्पित कर चुके आर्मस्ट्रांग को लोग 'चमत्कारी पुरुष' मानते हैं. तौसेम के एसडीएम 28 वर्षीय आर्मस्ट्रांग पेम मूल रूप से तमेंगलांग जिले के हैं, जो नागालैंड के जेमे जनजाति से आने वाले पहले आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारी हैं.

वर्ष 2009 बैच के आईएएस आर्मस्ट्रांग के मुताबिक, तौसेम से 50 किमी दूर तमेंगलांग आने के लिए लोगों को नदियों को पार करना पड़ता था, घंटों पैदल चलना पड़ता था. लोगों की परेशानियों को देखकर उनसे रहा नहीं गया.

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पेम ने बताया, 'आईएएस की परीक्षा देने के बाद, मैं कुछ समय के लिए तमेंगलांग आया. मैंने अपने बचपन में यहां की कठिनाइयों को देखा था, इसलिए मैंने मणिपुर के 31 गांवों को पैदल घूमने और वहां के लोगों का जीवन जानने का फैसला किया, ताकि मैं उनकी परेशानियों को समझ सकूं.'

उन्होंने बताया, टवर्ष 2012 में मैं तौसेम का एसडीएम बना. मैंने कई गांवों का दौरा किया और देखा कि कैसे लोग चावल की बोरी अपनी पीठ पर लाद कर लाते थे, घंटों पैदल चलते थे और मरीजों को बांस के बने चौकोर स्ट्रेचर पर लाद कर ले जाते थे. ऐसा मोटर दौड़ने लायक सड़कों के अभाव की वजह से था. जब मैंने ग्रामीणों से पूछा कि वे क्या चाहते हैं, उनकी एक मात्र इच्छा बेहतर सड़क की थी.'

आर्मस्ट्रांग के मुताबिक, 'उन्होंने धन जुटाने के लिए सरकार से संपर्क साधा लेकिन संसाधनों के अभाव में उन्हें निराश होना पड़ा. उन्होंने कहा, 'लेकिन मैं वास्तव में ग्रामीणों की परेशानियों से व्यथित था; इसलिए मैंने अगस्त 2012 में सोशल साइट फेसबुक के जरिए धन जुटाने का फैसला किया.'

उन्होंने कहा, 'जनकल्याण हेतु धन जुटाने का कार्य मेरे घर से शुरू हुआ, मैंने 5 लाख रुपये दिए और दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापक मेरे भाई ने एक लाख रुपये दिए। यहां तक कि मेरी मां ने भी पिता के एक माह का पेंशन पांच हजार रुपये दान किया.'

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आर्मस्ट्रांग ने बताया, 'एक रात अमेरिकावासी एक नागरिक ने 2,500 डॉलर सड़क निर्माण के लिए देने की इच्छा जताई. अगले दिन न्यूयार्क में रहने वाले एक सज्जन सिख नागरिक ने कहा कि वह 3,000 डॉलर देंगे.'

उन्होंने कहा कि इस तरह बहुत कम समय में हमने सड़क निर्माण के लिए 40 लाख रुपये जुटा लिए. इसके अलावा उन्होंने स्थानीय ठेकेदारों और लोगों से भी यथासंभव मदद देने की गुजारिश की.

यह पूछे जाने पर कि उनका अगला कदम क्या होगा, पेम ने कहा, 'करने को बहुत सारी चीजें हैं. उनमें से एक सड़क का 10 किलोमीटर और विस्तार करना है.' उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, '..लेकिन मेरी मां कहती हैं सड़कें बनाना बंद करो और पहले अपना घर बनाओ.'

स्थानीय किसान जिंगक्युलक ने कहा, 'हमारे संतरे सड़कों के अभाव में सड़ जाते थे लेकिन 'पीपुल्स रोड' ने हमें धन कमाने का मौका मुहैया कराया है.' तौसेम के निवासी इरम ने कहा, 'वह एक बहुत ही उदार ह्रदय अधिकारी हैं. मुझे लगता है कि उनके जैसा आईएएस अधिकारी भविष्य में मिलना बेहद मुश्किल है.'

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