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उत्तराखंड की त्रासदी पर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से सवाल जवाब

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा आई है. हजारों के मरने की आशंका है. राहत काम में देरी हो रही है और लोग राज्य सरकार पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं. इन सबके बीच हमारे सहयोगी चैनल हेडलाइंस टुडे के मैनेजिंग एडिटर राहुल कंवल ने बात की उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से. इस दौरान बहुगुणा बार बार राज्य के विकास के लिए निर्माण को जरूरी बताते रहे और पार्टी आलाकमान को सहयोग के लिए शुक्रिया कहना नहीं भूले. देखें क्या हैं सवालों के घेरे में खड़े सीएम के जवाबः

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विजय बहुगुणा
विजय बहुगुणा

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा आई है. हजारों के मरने की आशंका है. राहत काम में देरी हो रही है और लोग राज्य सरकार पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं. इन सबके बीच हमारे सहयोगी चैनल हेडलाइंस टुडे के मैनेजिंग एडिटर राहुल कंवल ने बात की उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से. इस दौरान बहुगुणा बार बार राज्य के विकास के लिए निर्माण को जरूरी बताते रहे और पार्टी आलाकमान को सहयोग के लिए शुक्रिया कहना नहीं भूले. देखें क्या हैं सवालों के घेरे में खड़े सीएम के जवाबः

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सवालः पूरे देश की निगाहें उत्तराखंड पर हैं. इस भयानक त्रासदी के चलते. क्या हालात हैं इस समय यहां?
जवाबः ये हिमालयन सूनामी है. इससे तीन चौथाई राज्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है. हमारे यहां ट्रांसपोर्ट या तो बाई रोड है या बाई एयर. लेकिन ज्यादा एयरोड्रम नहीं हैं. ज्यादातर लोग सड़क से ही आते जाते हैं. इस आपदा के चलते 500 सड़कें बेकार हो गईं. 200 से ज्यादा पुल टूट गए. केदारनाथ में प्रकृति का कोप रहा. बादल फटा और झील का पानी भी घाटी में उमड़ आया. केदारनाथ के आगे 20 किलोमीटर के स्ट्रैच में गौरीनाथ तक सब नष्ट हो गया.

बहुत लोग मरे हैं. उनका अभी सही सही आंकड़ा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि सब मलबे में दबा है. अगर सेना वहां पैदल पहुंचती है और फीडबैक देती है, तभी सही सही संख्या बताई जा सकती है.

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सवालः ये तो हुई मृतकों की बात, मगर जो जीवित हैं, उन्हें बचाने में देरी क्यों हो रही है.
जवाबः हमें पता है कि कई जगह लोग बचे हैं, फंसे हैं. लेकिन समझना होगा कि ये ऐसी जगहें हैं, जहां हेलिकॉप्टर नहीं जा सकते. कभी हैलीपैड न होने की वजह से, तो कभी खराब मौसम के चलते. यहां पर सेना के जनरलों की निगरानी में बचाव काम चल रहा है. हमारा सबका पहला मिशन ही है जीवित लोगों को बचाना. ऐसे ज्यादातर लोग केदार नाथ की घाटी में है. गौरीकुंड में भी ऐसे ही हालात हैं. वहां भी 17-18 हजार लोग फंसे हुए हैं. बद्रीनाथ और गगरिया का भी यही हाल है.

बचाव के लिए राज्य सरकार ने भी 12 हेलिकॉप्टर किराये पर लिए हैं. मगर यह समझना होगा कि एक बार में एक एयर एरिया में एक निश्चित संख्या में ही हेलिकॉप्टर उड़ सकते हैं. मैं तो एयरफोर्स और सिविलियन अधिकारियों को बधाई दूंगा कि वे तमाम मुश्किलों के बाद भी हेलिकॉप्टर लैंड कर रहे हैं. बहुत छोटे और मुश्किल हिस्सों में लैंड कर रहे हैं. मगर ये बहुत बड़ी समस्या है. पूरे देश के लोग यहां हैं. चिंतित हैं. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं. हमारा बस यही कहना है कि जो सुरक्षित जगहों पर हैं. वे परेशान न हों. हम सब कुछ करेंगे उन्हें बचाने के लिए.

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सवालः सरकार कह रही है कि कुछ सौ मरे. विपक्षी कह रहे हैं कि मौत का आंकड़ा हजारों में है...
जवाबः देखिए, जब तक ग्राउंड से फीडबैक नहीं आता, मैं क्लियर आंकड़ा नहीं दे सकता. मेरी चिंता फंसे हुए लोगों को बचाने की है. उन्हीं खाना पहुंचाने की है. ये बहुत बड़ी कवायद है.सब कुछ सेना की मदद से हो रहा है. पूरी राज्य सरकार इसमें जुटी है. जहां रोड ब्लॉक है. वहां हम वैकल्पिक रूट बना रहे हैं. ट्रैफिक डायवर्ट किया जा रहा है. कुछ वक्त लगेगा. सेंट्रल गवर्नमेंट हमारी मदद कर रही है. मनमोहन सिंह और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने दयालुता दिखाई है मदद देने में.सबका साझा प्रयास चल रहा है, ताकि फंसे हुए लोगों को बचाया जा सके.

सवालः हमने हमने कई लोगों से बात की. लोग परेशान हैं. हैरान हैं. उन्हें लग रहा है कि मदद देर से आ रही है. खाना औऱ पानी नहीं है. राज्य सरकार कुछ नहीं कर रही...
जवाबः मैं लोगों की चिंताओं की प्रशंसा करता हूं. यहां मुश्किल है. ये पहाड़ी एरिया है, मैदान नहीं. इसलिए दिक्कत आ रही है. सड़कें बची नहीं हैं. सिर्फ हवाई रास्ते से ही हम खाना पानी दे सकते हैं. चॉपर उड़ाने की भी लिमिट है. कुछ देर तो लगेगी ही. मैं लोकल लोगों से अपील कर रहा हूं कि वे आगे आएं और फंसे हुए टूरिस्ट की मदद करें. हमने हर गेस्ट हाउस पर फ्री लॉजिंग और फूडिंग की व्यवस्था की है. ट्रांसपोर्ट फ्री है.बाई रोड या बाई ट्रेन हम लोगों को वापस भेज रहे हैं. हमें पैसों या संसाधनों की दिक्कत नहीं है. दिक्कत ये है कि इसे पहुंचाएं कैसे. डिलीवर कैसे करें. आर्मी की मदद से हम यही कर रहे हैं.

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सवालः यह भी कहा जा रहा है कि इस आपदा की वजह लोग हैं. नदी के किनारों पर लगातार निर्माण हो रहा है. ऐसे में जब बारिश होती है, तो नदी अपना पाट नहीं बढ़ा पाती और विनाश होने लगता है.
जवाबः ये भी चीजों को देखने का एक तरीका है. मगर प्रैक्टिकल बात ये है कि अगर देहरादून में एक दिन में 330 मिमी बारिश हुई, तो ये मैन मेड कैसे है. केदारनाथ में बादल फटा, तो ये मैनमेड कैसे हैं. नदियों के किनारे उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग सदियों से बसे हैं. यहां मसला रिवर बेड का है. कोर्ट के आदेशों के चलते माइनिंग पर रोक लगी हुई है. ऐसे में बोल्डर आकर नदी में लगातार गिर रहे हैं. दूसरा मटीरियल आ रहा है इसमें. हम इन्हें उठा नहीं सकते. इससे धीमे धीमे नदी का तल ऊपर आ रहा है. पानी इसी के चलते तट तोड़कर बाहर बह रहा है.

मैं मानता हूं कि नदी किनारे निर्माण नहीं होना चाहिए. मैं पर्यावरण विरोधी नहीं हूं. लेकिन यह भी समझिए कि इस राज्य में 70 फीसदी जंगल हैं. उन्हें छेड़ नहीं सकते. बचा सिर्फ पानी. अगर इनका इस्तेमाल हाइड्रो पावर पैदा करने में नहीं करेंगे. तो कैसे चलेगा. और ये जो प्रोजेक्ट चल रहे हैं. इन्हें केंद्र सरकार के मंत्रालयों से अनुमति मिली है. हमें पर्यावरण के साथ साथ यहां के लोगों का विकास भी देखना है. वर्ना लोग उस हालात में भी गुस्सा होंगे. हमारी अर्थव्यवस्था टूरिज्म और हाइड्रो पावर पर निर्भर है. टूरिज्म के लिए निर्माण होगा, तभी निवेश आएगा. इन सबके बीच पर्यावरण का भी ख्याल रखा जाएगा.

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सवालः ये बताइए कि राज्य में स्थित सामान्य कब तक हो पाएगी?
जवाबः आर्कियोलॉजिकल सर्वे वाले केदारनाथ मंदिर को देखेंगे. उन्हें अनुमान लगाना है कि कितना निर्माण करवाना होगा. इसमें जो भी खर्च आएगा, राज्य सरकार उठाएगी. मेरा अनुमान है कि हम दो हफ्ते में सभी बचे हुए लोगों को सुरक्षित वापस निकाल लेंगे. इसके लिए सड़क नेटवर्क के अलावा हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल होगा. बाकी देखना होगा कि गांवों को, पानी की लाइन को, बिजली के स्ट्रक्चर को. सड़कों को कितना नुकसान हुआ है. इसके बारे में ठीक ठाक कुछ कहा नहीं जा सकता, पर इतना तय है कि बहुत टाइम लगेगा.

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