{mosimage}ठीक एक साल पहले मुंबई पर हुआ था सबसे बड़ा आतंकवादी हमला. पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियों ने मुंबई में छोड़े थे खौफ के 10 निशान. होटल ताज, ओबेरॉय, सीएसटी, लियोपोल्ड कैफे, नरीमन हाउस समेत 10 जगहों पर आतंकियों ने खेला था खूनी खेल. दहशतगर्दों ने जो खूनी खेल खेला था, उसके जख्म आज भी कई लोगों के दिलों में मौजूद हैं.
मुंबई की शान ताज पर 26 नवंबर, 2008 को हुआ था सबसे बड़ा आतंकवादी हमला. मेहमानों से गुलजार रहने वाला ताज 39 लोगों का कत्लगाह बन गया था. ताज की हेरिटेज इमारत में आतंकवादी अब्दुल रहमान बड़ा, अबू नसीर, अबू शोएब और अबू उमर ने जमकर कोहराम मचाया था. ताज के गुंबदों को आग के हवाले कर दिया गया था और एके 47 से गोलियां दागकर पूरे होटल को तहस नहस कर दिया था. डायनिंग एरिया भी बुरी तरह नष्ट हो गया, तो ग्रेनेड ब्लास्ट से पूल साइड वाला हिस्सा भी नेस्तनाबूत हो गया. ग्राउंड फ्लोर पर स्थित हॉर्बर हॉल को भी आखिरी बचे आतंकियों ने गोलियां बरसाकर तहस नहस कर दिया.
ताज की छठी मंज़िल को आतंकियों ने अपना गढ़ बनाया हुआ था. यहां के सारे कमरों में आतंकियों ने लाशों के ढेर लगा दिए थे. कमरों में लगी नायाब पेंटिंग्स, फर्निचर, साज़ोसामान सब जला कर राख कर दिए थे. जहां हमेशा रंगीनियां रहती थीं, वहां लाशें बिछी थीं. जो दीवारें पेंटिग्स से सजी थीं, वहां गोलियों और खून के निशान थे. लेकिन, कहते हैं ना ताज कभी गिरते नहीं. ताज कभी मरते नहीं. खौफनाक हमलों के बाद ताज एक बार फिर उठ खड़ा है.
ताज के एक-एक जख्म पर बारीकी से मरहम लगाया गया. दीवारें जो बर्बाद हो गईं थीं, उन्हें ठीक किया गया. सीढ़ियों पर जो तबाही मची थी, उन घावों के निशान भी मिटाए गए. आतंक ने जो अंधेरगर्दी मचाई थी, उसे फिर से रोशन किया गया.
ताज पर हमला मुंबई की शान पर हमला था, लेकिन आतंकियों ने सबसे ज्यादा कत्लेआम किया था सीएसटी में. अबू इस्माइल और कसाब ने सीएसटी पर अंधाधुंध गोलीबारी की. ट्रेन का इंतजार कर रहे 57 लोगों की जिंदगी का सफर यहीं खत्म हो गया. यह है दहशत का दूसरा निशान. मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर 26 नवंबर, 2008 की रात खौफनाक हमला हुआ था. सबसे खूंखार आतंकवादी अबू इस्माइल और उसका साथी अजमल आमिर कसाब एतिहासिक रेलवे स्टेशन वीटी पर अंधाधुंध गोलियां बरसाता जा रहा था. {mospagebreak}गोलियों से बचने के लिए सीएसटी पर भगदड़ मची हुई थी. दोनों दहशतगर्द घंटे भर गोलियां चलाते रहे, लेकिन वहां उन्हें कोई रोकने वाला नहीं था.
मरने वालों का आंकड़ा और बढ़ जाता अगर दोनों आतंकी सीएसटी छोड़ गिरगांव चौपाटी का रुख नहीं करते. इसी दौरान गिरगांव चौपाटी पर अबू इस्माइल मारा गया और कसाब पकड़ा गया. 26/11 के एक साल बीत चुका है. ट्रेन के पहियों की तरह सीएसटी में जिंदगी रफ्तार पकड़ चुकी है.
आतंकी बेखौफ थे और पूरी तैयारी के साथ आए थे. नरीमन हाउस पर यहूदी परिवार पर हमला उसी का हिस्सा था. यहां 5 निर्दोष लोगों की जान गई, लेकिन इसकी दहशत दुनियाभर में पहुंची. पूरी दक्षिण मुंबई में मौत की दहशत ने अपना जाल बिछा दिया था. नरीमन हाउस में गोलियों की बौछार और हैंडग्रेनेड के धमाकों से पूरा कुलाबा गूंज रहा था. वहां जबर्दस्त फायरिंग चल रही थी. बिल्डिंग से बम फेंके जा रहे थे.
सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि यह इमारत कहीं से भी आतंकियों की हिटलिस्ट में नहीं थी. दरअसल इस इमारत में यहूदी धार्मिक संगठन चलता था, इसीलिए आतंकियों ने इसे अपना निशाना बनाया. दो आतंकी यहां 26 नवंबर की रात घुसे थे. पूरी रात व 27 नवंबर के पूरे दिन और रात वे रह-रहकर गोलियां चलाते रहे. जब भी बाहर सुरक्षा बल की तरफ से कोई हलचल होती, तो ग्रेनेड फेंक देते. इसकी पूरी निगरानी पाकिस्तान में बैठे उनके आका कर रहे थे.
आखिरकार 28 नवंबर की सुबह एनएसजी कमांडो ने मोर्चा खोल दिया. हेलिकॉप्टर से उतरकर कमांडो नरीमन हाउस में दाखिल हुए और दोनों आतंकियों को मार गिराया. हालांकि तब तक आतंकी नरीमन हाउस में 5 लोगों को मौत की नींद सुला चुके थे. इस मारकाट में नन्हा मोसे आश्चर्यजनक तरीके से बच गया.
नरीमन हाउस को आतंकियों ने जो जख्म दिए वो आज भी मौजूद हैं. 26/11 की बरसी पर जब उसे मीडियावालों के लिए खोला गया, तो हमले की याद ताजा हो गई. फर्श, दीवार, छत कोई भी जगह नहीं बची थी, जहां गोलियों के निशान ना हों.
26/11 हमले के बाद लियोपोल्ड कैफे दहशत की पूरी कहानी बयां कर रहा था. ताज से बिल्कुल सटे लियोपोल्ड कैफे 26 नवंबर, 2008 की रात 40-45 मेहमानों से भरा हुआ था. रात करीब साढ़े नौ बजे 2 आतंकियों ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी. आतंकवादी बेरहमी से गोलियां बरसा रहे थे. पूरा कैफे खून से लाल हो गया. 9 लोग इस हमले में जान गवां बैठे. गोलियां बरसाकर दोनों आतंकी भाग निकले. 26/11 की याद में य़हां आज भी गोलियों के निशानों को सुरक्षित रखा गया है. यह बताने के लिए आतंक के उस मंजर को भूलना नहीं है, क्योंकि इसी से मिलेगा लड़ने का जज्बा.{mospagebreak}मुंबई खौफ की गिरफ्त में थी. ओबेराय होटेल में आतंकियों ने जमकर खूनखराबा किया. कुल 34 लोग यहां मारे गए. इससे पहले आतंकी ताज से सटे लियोपोल्ड कैफे में दहशतगर्दी मचा चुके थे. यहां जब आतंकी हमला हुआ था, उस वक्त करीब 40 मेहमान वहां मौजूद थे. हमले में 9 लोग मारे गए और ये तबाही हमलावरों ने मचाई थी सिर्फ कुछ मिनटों में. 26 नवंबर, 2008 की वो रात आज भी डराती है. याद दिलाती है कि उस खौफनाक मंजर की, कि कैसे 2 आतंकियों ने मुंबई के 3 बड़े इलाकों को दहला दिया था.
पहले तो कामा अस्पताल के पास 3 पुलिस अफसरों की हत्या कर दी, फिर मेट्रो सिनेमा के पास से पुलिस की ही गाड़ी उड़ा ली और फिर गिरगांव चौपाटी के पास भी मचाया कोहराम.
मुंबई दहल रही थी. आतंकवादियों का एक गुट कामा अस्पताल में घुसा हुआ था. काली रात और काले इरादों के साथ मुंबई में 10 आतंकियों ने कोहराम मचाया. रात के 11 बजकर 25 मिनट हुए थे. आतंकवादियों के खात्मे के लिए आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे पुलिस बल के साथ कामा अस्पताल पहुंच गए. थोड़ी देर में ही एडिश्नल कमिश्नर ईस्ट रीजन अशोक काम्टे और इंस्पेक्टर विजय सालस्कर भी करकरे की मदद के लिए कामा अस्पताल पहुंच गए. फिर शुरू हुई दोनों तरफ से बेहिसाब गोलीबारी.
बाहर इस तरह पुलिस का घेरा बनता देखकर अंदर के आतंकवादी बौखला गए. वो इधर-उधर गोलियां चलाते हुए भागने लगे. भागते-भागते आतंकी कामा अस्पताल के पिछले गेट की तरफ आ गए. काम्टे और सालस्कर ने भी इनका पीछा किया. एके-47 से लैस आतंकवादी ताबड़तोड़ गोलियां बरसा रहे थे. इन्हीं गोलियों से करकरे, काम्टे और सालस्कर शहीद हो गए.
हैरान करनेवाली बात यह है कि गोलियां बरसाते हुए 2 आतंकवादी मेट्रो सिनेमा के पास आ गए. ये थे अबू इस्माइल और अजमल कसाब. फिर इन्होंने वहीं से पुलिस की गाड़ी छीनी और उसपर सवार होकर गोलियां बरसाते हुए भागने लगे. ये दोनों आतंकवादी तबाही बरसाते हुए भागे जा रहे थे, लेकिन गिरगांव के पास एएसआई तुकाराम ओंबले ने अपनी जान देकर इनमें से एक कसाब को जिंदा दबोच लिया.
ओबेरॉय होटल में दहशत मचाने से पहले आतंकियों ने मध्य मुंबई के मझगांव में टैक्सी ब्लास्ट किया था. इसमें 3 लोग मारे गए थे. उसी क्रम में दहशतगर्दों ने विले पार्ले में भी टैक्सी उड़ाई थी, जहां 2 लोग मारे गए थे. आतंकवादियों ने उस रात मुंबई को तबाह करने की हर साजिश रची थी. उन्होंने तबाही मचाई भी. एक साल बाद मुंबई के लिए वो यादें जरूर डराने वाली हैं, लेकिन यह जज्बा है, जो हर डर पर भारी है.