scorecardresearch
 

वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी...

बरसात आ गयी है. बरसात के साथ ही आएंगे भुट्टे और जामुन की खेप आकर खत्म हो चुकी है. बारिश के साथ कभी आती थीं बरसाती मछलियां और हम निकाल लिया करते थे कागज की कश्तियां...

Advertisement
X
Rainy Days
Rainy Days

गर्मी की छुट्टियों के खत्म होते ही शुरू होती है बरसात. बरसात जिसका इंतजार पूरी दुनिया कुछ इस तरह करती है जिसके आ जाने मात्र से सारी दिक्कतें-परेशानियां हवा हो जाएंगी और करे भी क्यो न. आखिर वो लू के थपेड़े, सूरज का अत्याचार सब एक झटके से गायब ही तो हो जाते हैं. बारिश जिसका इंतजार एक सामान्य नागरिक से लेकर खेतिहर-किसान किया करता है. हमारे बचपन के दिनों में हम इसका इंतजार खेती-बाड़ी के बजाय मस्ती के लिए किया करते थे. जब हम अपनी बिन पतवार की नाव लेकर चल पड़ते थे. हम उसका तब तक साथ देते जब तक कि वह किसी भारी जलप्रवाह में विलीन न हो जाता. बेरोकटोक और बेपरवाह.

Advertisement

स्कूली दिनों में हम अपनी क्लासेस में बैठकर कभी इंद्र से निवेदन किया करते तो कभी मिथकीय कहानियों को सच मानते हुए तमाम शहरों के नाम जिनके अंत में पुर लगा है की लिस्ट बनाते रहते. बादल की हल्की सी उमड़-घुमड़ को देख कर अपना पीठ थपथपाते कि जैसे सब-कुछ किसी वायुमंडलीय दबाव के बजाय हमारी ही वजह से हो रहा हो. कभी बारिश में सुने जाने वाले गीतों का कैसेट सही करते तो बारिश से पहले ही झूला बांधने लगते.

बरसात अपने साथ पके जामुन भी तो लाती थी और जो मजा जामुन पेड़ से तोड़ कर और मार कर खाने में हैं वो खरीद कर खाने में कहां?. बारिश खुद के साथ आम का नेचुरल पकाव भी तो लेकर आती है. डाल के पके आमों का स्वाद तो बस जिसने खाया है वही महसूस कर सकता है. पहली बारिश के साथ गांव के ताल-तलैयों से बाहर निकलने वाले पीले-पीले मेंढक. हम जिनके पीछे थकान की हद तक उछल-कूद करते. हर बारिश के बाद गांव के पोखर और तलैयों का मुआयना कि इस बार कितने इंच बारिश हुई है. इस बारिश का हमारी खेती पर क्या असर पड़ेगा, वगैरह-वगैरह.
बारिश खुद के साथ कई बार स्कूल बंदी की खबरें भी लेकर आता. पता चलता कि आज स्कूल में रेनी डे है. हालांकि इस मामले में हमारी किस्मत हमेशा खराब ही रही. स्कूल की टाइमिंग शुरू होने से ठीक पहले ही बारिश की झड़ी रुक जाती और फिर हमारे एक भी बहाने नहीं चलते. फिर हम जैसे ही स्कूल में पहुंचाए जाते बारिश शुरू हो जाती. हम मन ही मन इंद्र को गरियाते और अपना सा मुंह लेकर क्लास की खिड़की से बारिश को निहारते रहते.

Advertisement

बारिश खुद के साथ दाल की बेहतरीन पकौड़ी और भुट्टे लेकर आती. अब तो भुट्टे साल भर मिलते हैं मगर जब दादाजी अपने खेत से भुट्टे तोड़ कर लाते और दादी उन्हें कोयले के अंगारे पर भूना करती तो उसकी बात ही जुदा होती. बरिश तो अब भी होती है मगर अब वह पहले वाली बात कहां. वो बेफिक्री कहां. अब की पीढ़ियां तो बारिश के संपर्क में आने से ही डरती हैं. ऐसा लगता है जैसे वो कोई माटी की ढूहीं हों और बारिश में बह जाएंगी. बारिश के समय खेल के मैदान में होने के बजाय कंप्यूटर के स्क्रीन पर गेम खेला करती हैं. तो इतनी सारी बातें कहने का लब्बोलुआब ये है कि बारिश हो तो जरा खुल कर भींग लो. हो सकता है दिल के किसी कोने में जो कुछ अनकहा-अनदेखा सुलग रहा है वह बुझ जाए और आप को कुछ अच्छा-अच्छा सा लगे. बाद बाकी फील आ जाए तो धीेरे से शुक्रिया कह दीजिएगा. बड़े जतन से लिखा है...

Advertisement
Advertisement