केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह से कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर उनके मंत्रालय की ओर से दिए गए आदेश पर सवाल किया गया तो उन्होंने अजब जवाब दिया. उनसे पूछा गया था कि एटॉमिक एनर्जी डिपार्टमेंट से यौन उत्पीड़न की शिकायतें सबसे ज्यादा (कुल 15) क्यों आईं? इस पर डॉ सिंह ने कहा कि वो नहीं जानते कि एटॉमिक एनर्जी डिपार्टमेंट से इतनी शिकायतें आने की वजह क्या है लेकिन इतना निश्चित है कि इसका एटॉमिक एनर्जी से कोई लेनादेना नहीं होगा. और ना ही उस जगह पर ज्यादा एटॉमिक एनर्जी बह रही होगी.
डॉ सिंह प्रभारी मंत्री के नाते कार्मिक, जन शिकायत और पेंशन मंत्रालय को लेकर साल के अंत में होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे.
कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न की शिकायतें कम दर्ज किए जाने संबंधी सवाल पर डॉ सिंह ने कहा, 'हम नोडल मंत्रालय हैं, हम कानून बनाते हैं और दूसरे मंत्रालयों को उसे लागू करने के लिए कहते हैं. दूसरे मंत्रालय इसे लागू करते हैं. हमने यौन उत्पीड़न कानून को ज्यादा कारगर बनाने के लिए पूरी कोशिश की है.'
डॉ सिंह ने कहा कि वो इस पर सहमत हैं और मंत्रालयों से कहेंगे की वो ऐसे मामलों को रिपोर्ट करें. यहां तक तो सब सही था लेकिन जब डॉ सिंह से पूछा गया कि आठ मंत्रालयों ने ऐसे मामलों को रिपोर्ट किया है लेकिन उनमें सबसे ज्यादा मामले एटॉमिक एनर्जी डिपार्टमेंट से क्यों आए तो डॉ सिंह ने विचित्र जवाब दिया.
डॉ सिंह ने कहा, 'हम देखेंगे कि अगर वहां से सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं तो ऐसा क्यों है. मैं इतना निश्चित हूं कि इसका एटॉमिक एनर्जी से कोई लेनादेना नहीं है. ना ही उस जगह पर अधिक एटॉमिक एनर्जी बह रही होगी. लेकिन निश्चित रूप से ये जानना हमारा कर्तव्य है कि ऐसा क्यों है. ऐसा किसी भी मंत्रालय के साथ हो, हम ऐसा ही करेंगे.'
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सचिव ने माना कि कई मंत्रालय है जो अपनी सालाना रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न के मामलों को रिपोर्ट नहीं करते. सचिव ने कहा कि हम इस मामले को देखेंगे, महिला और बाल कल्याण मंत्रालय भी इसे देख रहा है. कुछ दिन पहले सरकार ने कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न पीड़ितों को संरक्षण देने के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी किए थे.
शिकायतों की जांच पूरी होने की समयसीमा 30 दिन
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की ओर से जारी आदेश के मुताबिक केंद्र ने ऐसी शिकायतों पर जांच पूरी करने की समयसीमा को घटा कर 30 दिन कर दिया है.
पीड़ितों को संरक्षण
विभागों को ये भी आदेश दिया गया है कि वो सुनिश्चित करे कि किसी भी शिकायतकर्ता को प्रताड़ित ना किया जाए. साथ ही जो शिकायतें सही पाई जाएं उन मामलों में शिकायत करने वाली महिलाओं का समुचित ध्यान रखा जाए. ऐसा पांच वर्ष के लिए किया जाए जिससे कि बदले की कार्रवाई की संभावना को खत्म किया जा सके.
आरोपी के तहत पोस्टिंग नहीं
केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने इस दिशा में एक कदम और उठाया. विभाग के निदेशक मुकेश चतुर्वेदी की ओर से जारी नोट में कहा गया है कि यौन उत्पीड़न मामले में शिकायतकर्ता की पोस्टिंग उस व्यक्ति के मातहत नहीं की जाएगी जिसके खिलाफ शिकायत है. ऐसे किसी भी व्यक्ति के तहत पोस्टिंग नहीं होगी जहां उत्पीड़न के अंदेशे की तार्किक वजह मौजूद हो.
नोट में ये भी कहा गया है कि किसी भी उत्पीड़न मामले में शिकायतकर्ता की ओर से सीधे मंत्रालय के सचिव के सामने अपनी बात रखी जा सकती है. ऐसे मामलों को संवेदनशीलता से देखा जाएगा. साथ ही फैसला भी 15 दिन में लिया जाएगा.
यौन उत्पीड़न मामलों की कम रिपोर्टिंग
यहां ये गौर करने लायक है कि अमूमन यौन उत्पीड़न मामलों की कम रिपोर्टिंग होती है. सूत्रों ने बताया कि पिछले वित्त वर्ष में केवल 8 मंत्रालयों ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों के आंकड़े दिए. एटॉमिक एनर्जी डिपार्टमेंट ने सबसे ज्यादा 15 मामलों को रिपोर्ट किया. ऐसे मामलों की पूरी जानकारी और उन पर क्या कार्रवाई की गई, इसका पूरा रिकॉर्ड रखे जाने के साथ उनका उल्लेख मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट में करना जरूरी है.