मेरा नाम प्रिया है और आज मैं आपके साथ क्रिसमस से जुड़े अपने अनुभव को साझा करना चाहती हूं. मैं 25 साल की हो चुकी हूं और कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने में महज एक साल ही बाकी है.
यह बात तब की है मैं जब स्कूल में थी. हर साल 25 दिसंबर को हमारे स्कूल में सांताक्लॉज सभी से मिलने आते थे. तब मुझे टॉफी, चॉकलेट और गिफ्ट मिलते. दूसरों की तरह 25 दिसंबर का मुझे इंतजार भी रहता था. लेकिन जब मैं बड़ी हो गई और स्कूल खत्म हुआ तब कोई सांताक्लॉज नहीं आता. वक्त बीता और मैं समझदार हो गई लेकिन सांता का इंतजार करने की आदत नहीं गई. जबकि अब तो मैं इस सच को भी जान गई थी कि कौन से अकंल स्कूल में सांता बनकर आते थे. फिर भी मुझे सांता से मिलने का बहुत दिल होता था.
एक दिन मैंने यह बात अपने पापा को बताई कि पापा मुझे सांता से मिलना है, मुझे भी गिफ्ट चाहिए. मैं बड़ी हो गई तो क्या अब कोई सांता नहीं आएगा. पापा शायद मेरी बात बिना कहे ही समझ गए थे, तभी उन्होंने कहा कि बेटा क्या चाहिए ? चॉकलेट, टॉफी, गिफ्ट? मैं चुप रही और फिर कहा कि नहीं, अब तो बड़ा गिफ्ट चाहिए. मैं बच्ची नहीं जो टॉफी और खिलौनाें से खेलूं.
पापा मेरी बात सुनकर बहुत जोर से हंसे और बोले 'अगर इतनी बड़ी हो गई हो तो ये क्यों नहीं समझा कि सांता का मतलब खुशियां बांटना है. वो अपनी झोली में खुशियां लेकर आता है. आज अगर तुम्हें लगता है कि सांता नहीं आया तो तुम बन जाओ सांता और दूसरों को बांटो खुशियां.'
उनकी बात मैं ध्यान से सुनती रही और फिर पूछा कि पापा अब मैं क्या टोपी लगाकर लाल कपड़ों में घूमती रहूं ? फिर पापा ने कहा 'अरे बेटा! हर वो इंसान सांता होता है जो दूसरों को खुशियां दें. इस बात को समझो, कपड़ों से कभी किसी की पहचान नहीं होती है.'
उनकी यह सीख मुझे आज भी याद है और इस बात को तकरीबन 5 साल बीत गए हैं. सच कहूं तो आज भी मुझे क्रिसमस का इंतजार होता है क्योंकि अब दूसरों को गिफ्ट मैं देती हूं. मेरी ओर से आप सबको भी Merry Christmas!
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