उत्तराखंड में बादल फटे, बारिश हुई और नदियां उफनीं. नतीजतन हजारों लापता, अरबों का नुकसान और सैकड़ों में मौत. हर बीतते दिन के साथ बाढ़ का पानी घट रहा है और मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है. ऐसे में सवाल पूछा जा रहा है कि इस आपदा का जिम्मेदार कौन है. कोई उत्तराखंड में हो रहे अंधाधुंध निर्माण को जिम्मेदार ठहरा रहा है, तो कोई बांध और हाइड्रो पावर परियोजनाओं को. इन सबके बीच देश के आला सैन्य शोध संस्थान ने कहा है कि अगर इस पहाड़ी राज्य में वेदर राडार लगे होते, तो समय से काफी पहले सूचना मिल जाती कि भारी बारिश होने की आशंका है. ऐसा होने पर लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया जा सकता था और कुछ दूसरे फौरी उपाय भी किए जा सकते थे.
हमारे सहयोगी चैनल हेडलाइंस टुडे से इस बारे में बात की डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) के नए चीफ और रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अविनाश चंदर ने. उन्होंने कहा कि इस संकट के समय में लोकल लेवल पर सेंसर लगाए जाने की जरूरत समझ आ गई है. ये सेंसर मौसम में हो रहे बारीक बदलावों को पकड़ सकते हैं और बादल फटने जैसी दुर्घटनाओं के बारे में भी समय रहते संकेत दे सकते हैं. फिलहाल हम जिस सैटेलाइट इमेज के सहारे मौसम का अनुमान लगाते हैं, वह इस तरह के मामलों में नाकाफी साबित हो रहा है. उनके द्वारा जो डेटा दिया जाता है, उससे क्षेत्र विशेष की स्थिति के विश्लेषण में मदद नहीं मिलती है.
इसरो की चूक भी पड़ी भारी
गौरतलब है कि इससे पहले नेशनल इंस्टिट्यूट ऑप डिजास्टर मैनेजमेंट (एनआईडीएम) के एक अधिकारी ने भी इसरो की चूक को लेकर बात की थी. उनके मुताबिक अगर इसरो अपना विश्लेषण ठीक से करता, तो समय रहते चेतावनी मिल जाती. एनआईडीएम के जियो हेजार्ड डिपार्टमेंट के हेड चंदन घोष के मुताबिक केदारनाथ झील में बर्फ बढ़ने की जानकारी इसरो को देनी थी, मगर ऐसा नहीं हुआ.