सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन करने वाला त्रावणकोर देवासन बोर्ड सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में एंट्री देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में अपने पुराने रुख से पलट गया है. बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अब वो मंदिर के गर्भगृह में हर उम्र की महिलाओं के दाखिल होने के खिलाफ नहीं है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कई पक्षों ने पुनर्विचार याचिका लगाई है जिस पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने देवासन बोर्ड की राय मांगी थी.
त्रावणकोर देवासन बोर्ड के अध्यक्ष ए पद्मकुमार ने कहा कि 28 सितंबर, 2018 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आधार पर बोर्ड ने तय किया है कि वो इस अदालत के निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करेगा. उन्होंने कहा कि देवासन बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करता है और हमारा विचार है कि कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.
उन्होंने बताया कि इससे पहले देवासन बोर्ड ने जो हलफनामा कोर्ट में दाखिल किया था उसके बाद शीर्ष अदालत का फैसला आया. हमने पहले ही कहा था कि बोर्ड फैसले को स्वीकार करेगा, लिहाजा हमने इसकी जानकारी कोर्ट को दी है. पद्मकुमार ने कहा कि बोर्ड सरकार के प्रभाव में अपना रुख तय नहीं करती. सभी पक्षों को सुनने के बाद अगर अदालत अपने पुराने फैसले से अलग राय रखती है, तो बोर्ड उस फैसले को भी मानने को बाध्य है.
पद्मकुमार ने पूछा कि पहले बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया, उनके मुखपत्र में इसे ऐतिहासिक फैसला बताया गया था. अब वे किसके दवाब में अपने स्टैंड से पलट गए? बता दें कि शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ केरल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई में बड़ा आंदोलन चला. तो दूसरी तरफ इस फैसले को लागू कराने के लिए केरल की एलडीएफ सरकार ने कई आंदोलनकारियों पर कानूनी कार्रवाई भी की.
केरल सरकार की कार्रवाई पर टिप्पणी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जनसभा में कहा था कि एलडीएफ सरकार का आचरण इतिहास में एक बेहद शर्मनाक व्यवहार के तौर पर जाना जाएगा. पीएम मोदी ने कहा था कि केरल और उसकी संस्कृति की रक्षा के लिए यदि कोई एक दल खड़ा है तो वो भारतीय जनता पार्टी है. उन्होंने कहा था कि सबरीमाला मुद्दे पर उनका रुख हमेशा से साफ रहा है और हमारी पार्टी की कार्रवाई हमारे शब्दों से मेल खाती है.
आपको बता दें कि सितंबर, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी थी. इससे पहले मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष आयुवर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पूरे केरल में हिंदुवादी संगठनों द्वारा प्रदर्शन और बंद का दौर चला. कोर्ट के फैसले के बाद अब तक प्रतिबंधित आयुवर्ग की मात्र 2 महिलाएं ही मंदिर में प्रवेश कर भगवान अयप्पा के दर्शन कर पाई हैं.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विभिन्न संगठनों ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई पूरी कर ली और सभी पुनर्विचार याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है.