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ट्रिपल तलाक के बाद शौहर को जेल तो क्या सरकार देगी गुजारा भत्ता?

सुष्मिता ने दलील दी कि केन्द्र सरकार का प्रस्तावित कानून इस मुद्दे पर चुप है. लेकिन क्या केन्द्र सरकार का यह मानना है कि महज तलाक बोलने के बाद यदि व्यक्ति को जेल भेज दिया जाता है को वह जेल जाने के बावजूद महिला और बच्चों के गुजारा भत्ते का इंतजाम करेगा.

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सुष्मिता देव
सुष्मिता देव

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केन्द्र सरकार द्वारा संसद में ट्रिपल तलाक बिल पेश किए जाने का विरोध करते हुए असम के सिलचर से कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने कहा कि ट्रिपल तलाक बिल में महिलाओं की सुरक्षा के लिए जरूरी प्रावधान नहीं किए गए हैं. सुष्मिता देव के मुताबिक प्रस्तावित कानून तलाक को एक क्रिमिनल ऑफेन्स बना देगा और तलाक देने वाले पुरुष को तत्काल प्रभाव से जेल भेज देगा. ऐसी स्थिति में महिलाओं को मिलने वाले गुजारा भत्ता पर गंभीर खतरा है.

सुष्मिता देव ने संसद में अपील किया कि केन्द्र सरकार यदि मुस्लिम महिलाओं के हित में कोई कदम उठाना चाहती है तो उसे ट्रिपल तलाक का शिकार हो रही महिलाओं के लिए एक कॉर्पस फंड तैयार करना चाहिए. क्योंकि प्रस्तावित कानून महज तीन बार तलाक का इस्तेमाल करने पर उस व्यक्ति को दोषी करार देता है और उसे जेल भेज दिया जाता है. लिहाजा, क्या कानून यह सुनिश्चित करेगा कि पुरुष को जेल भेज देने के बाद तलाक से पीड़ित महिला और परिवार को गुजारा भत्ता देने का क्या तरीका होगा.

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सुष्मिता ने दलील दी कि केन्द्र सरकार का प्रस्तावित कानून इस मुद्दे पर चुप है. लेकिन क्या केन्द्र सरकार का यह मानना है कि महज तलाक बोलने के बाद यदि व्यक्ति को जेल भेज दिया जाता है को वह जेल जाने के बावजूद महिला और बच्चों के गुजारा भत्ते का इंतजाम करेगा. अथवा क्या सरकार इस पक्ष के लिए किसी तरह का सरकारी फंड तैयार कर सकती है और ऐसी स्थिति में एक साल तक महिला को गुजारा भत्ता इस फंड के जरिए दिया जाए.

इस सवाल के साथ ही सुष्मिता देव ने केन्द्र सरकार से पूछा कि क्या ट्रिपल तलाक पर उसका प्रस्तावित कानून पहले से अलग-थलग पड़े मुस्लिम समाज को मुख्यधारा से और अलग नहीं कर देगा?    

ट्रिपल तलाक के विरोध में खास बातें

संसद में ट्रिपल तलाक बिल पेश होने के बाद बिल के पक्ष और विपक्ष में कई सवाल उठे. इनमें कुछ सांसदों ने तर्क रखा कि देश में घरेलू हिंसा एक्ट 2005 महिलाओं को पहले से वह संरक्षण दे रहा है. लिहाजा सरकार के इस नए प्रस्तावित कानून के जरिए नया कुछ नहीं दिया जाना है. मौजूदा एक्ट के तहत महिलाओं को मेंटेनेन्स, कस्टडी और कंम्पनशेषन का अधिकार पहले से मौजूद है लिहाजा किसी नए कानून की जरूरत नहीं है. वहीं यह आवाज भी उठाई गई कि प्रस्तावित कानून में मुस्लिम पुरुष को जेल में डालने का प्रावधान किया गया है. वहीं इसके साथ यह तर्क संगत नहीं है कि जेल में रहने के दौरान प्रस्तावित कानून उसकी शादी को जायज भी रख रहा है.

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