केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक साथ तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने वाले ऑर्डिनेंस (अध्यादेश) को बुधवार को मंजूरी दी है. बुधवार रात ही राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए. इस अध्यादेश से यह साफ होता है कि बीजेपी आने वाले विधानसभा चुनावों में ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं के वोट हासिल करने की दिशा में गंभीरता से काम कर रही है.
बीजेपी असल में मुस्लिम मतों के विभाजन की रणनीति पर काम कर रही है. इस अध्यादेश के द्वारा यह कोशिश है कि मुस्लिम मतों को पुरुष-महिला में बांट दिया जाए और मुस्लिम महिलाओं के मतों को अपने पाले में कर लिया जाए.
यह भी साफ है कि इस अध्यादेश से लोकसभा चुनाव से ज्यादा विधानसभा चुनाव के दौरान वोट हासिल करने का लक्ष्य है. इसकी वजह यह है कि ट्रिपल तलाक अध्यादेश की समय अवधि छह महीने ही होगी. इसके पहले ही मोदी सरकार को मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल 2017 को पारित कराना होगा.
इस सरकार के कार्यकाल में अब संसद का अंतिम एक ही प्रभावी सत्र बचा है जिसकी शुरुआत नवंबर या दिसंबर में हो सकती है. यह बिल लोकसभा द्वारा पारित हो चुका है और राज्यसभा में लंबित है.
संसद का मॉनसून सत्र 18 जुलाई को शुरू हुआ था और 10 अगस्त को खत्म हुआ था. इसके बाद मोदी सरकार ने अध्यादेश लाने के लिए करीब डेढ़ महीने का इंतजार किया.
अगले कुछ महीनों में ही पांच राज्यों एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होंगे. तेलंगाना में मुस्लिमों की बड़ी जनसंख्या है. लेकिन वहां विधानसभा चुनाव संभवत: लोकसभा के साथ ही कराए जाएं.
ट्रिपल तलाक पर ऑर्डिनेंस से यह लग रहा है कि बीजेपी खासकर विधानसभा वाले चार राज्यों की मुस्लिम महिलाओं को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है. लेकिन केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसकी वजह कुछ और बताई. कैबिनेट मीटिंग के बाद मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि बेहद जरूरी होने और तात्कालिक आवश्यकता की वजह से ऐसा करने को मजबूर हुई.
उन्होंने कहा कि जनवरी 2017 से इस साल 13 सितंबर तक ट्रिपल तलाक के 430 मामले सरकार की नोटिस में आए हैं. सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल तलाक पर निर्णय के बाद भी 201 मामले सामने आए हैं. उन्होंने दावा किया मुस्लिम महिलाएं इससे काफी कठिनाई का सामना कर रही हैं, खासकर यूपी में जहां जनवरी 2017 से अब तक ट्रिपल तलाक के 246 मामले सामने आए हैं.
अब यह सोचना होगा कि सरकार के लिए क्या इतनी तात्कालिकता और मजबूरी थी, कि वह दो महीने और इंतजार नहीं कर सकती थी. अभी यह तय भी नहीं है कि शीत सत्र में ट्रिपल तलाक बिल पारित हो पाएगा भी या नहीं.
अगर विधानसभा चुनावों में ऑर्डिनेंस का हथियार कामयाब रहा, तो फिर लोकसभा चुनावों में भी सरकार निश्चित रूप से यह दोहराएगी.