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3 तलाक बिल पर आज संसद में आर-पार, सेलेक्ट कमेटी में भेजने से क्यों बच रही सरकार?

संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में ऐतिहासिक 3 तलाक बिल पास करवाने के लिए सरकार के पास आखिरी दिन है. विपक्ष बिल को जिस प्रवर समिति को भेजने की बात कह रही है, आखिर सरकार उससे बच क्यों रही है.

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तीन तलाक बिल पर राज्यसभा में जारी है हंगामा
तीन तलाक बिल पर राज्यसभा में जारी है हंगामा

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शीतकालीन सत्र में तीन तलाक बिल पास करवाने के लिए सरकार के पास आज आखिरी मौका है, देखना दिलचस्प होगा कि सरकार आज अपने इस प्रयास में कामयाब हो पाती है या नहीं.

लोकसभा में बहुमत के दम पर सरकार ने आसानी से बिल पास करा लिया, लेकिन राज्यसभा में सरकार अल्पमत में है और उसे बिल पास कराने के लिए विपक्षी दलों की मदद चाहिए, जिस कांग्रेस ने लोकसभा में बिल को लेकर कुछ नहीं कहा, अब वही राज्यसभा में अपनी ताकत दिखा रही है और अन्य दलों के साथ बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग कर रही है.

सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि बिल को सेलेक्‍ट कमेटी (प्रवर समिति) के पास नहीं भेजा जा सकता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर रखा है और कोर्ट के जजों ने छह महीने के लिए तीन तलाक पर रोक लगाई थी और वो अवधि 22 फरवरी को पूरी हो रही है. जबकि विपक्ष का कहना है कि 6 महीने की अवधि बिल पास होने की तारीख से मानी जाएगी.

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सरकार के समिति से डरने की वजह

आखिर विपक्ष मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 बिल को जिस प्रवर समिति के पास भेजने की मांग कर रही है उससे सरकार इतनी डरी क्यों हैं और वहां भेजे जाने से क्यों बच रही है?

संसद में 2 तरह की कमिटियों यानी संसदीय समितियां काम करती हैं जिनका गठन सरकारी कामकाज पर प्रभावी नियंत्रण बनाए रखने के लिए भी किया जाता है.

संसदीय समितियां दो तरह की होती हैं, तदर्थ और स्थायी. तदर्थ समिति का गठन किसी खास मामले या उद्देश्य के लिए किया जाता है, उसका अस्तित्व तभी तक कायम रहता है, जब तक वह इस मामले में अपना काम पूरा कर रिपोर्ट सदन को सौंप नहीं दे. जबकि स्थायी समिति का काम फिक्स होता है. लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति, विशेषाधिकार समिति और सरकारी आश्वासन समिति जैसी कई तरह की स्थायी समितियां होती हैं. विभागीय आधारित 24 तरह की स्थायी समितियां होती हैं जिसमें 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा के सदस्य होते हैं. हर समिति में सदस्यों की संख्या अलग-अलग होती है. इसके अलावा अन्य तरह की स्थायी समिति भी होती हैं.

प्रवर समिति और संयुक्त समिति के रूप में तदर्थ समिति दो प्रकार की होती हैं, इन दोनों ही समितियों का कार्य सदन में पेश बिल (विधेयकों) पर विचार करना होता है, लेकिन जरूरी नहीं कि सदन की ओर से इन दोनों समितियों के पास सभी विधेयकों पर विचार के लिए भेजा ही जाए.

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प्रवर समिति भेजे गए बिल के सभी मामलों पर गंभीरता से विचार करती है. विचार के बाद समिति किसी भी मामले पर अपने सुझाव दे सकती है. यह समिति बिल से संबंधित संगठनों, विशेषज्ञों और अन्य लोगों से उनकी राय ले सकती है. बिल पर गहन विचार-विमर्श के बाद प्रवर समिति अपने संशोधनों और सुझावों के साथ सदन को रिपोर्ट सौंपती है. अगर समिति का कोई सदस्य संबंधित बिल पर असहमत होता है तो उसकी असहमति भी रिपोर्ट के साथ भेजी जा सकती है.

सरकार को मालूम है कि प्रवर समिति में विपक्ष हावी रहेगा और उसकी ओर से जो संशोधन दिए जाएंगे उसे मनवाने पर भी जोर देगी. मजबूरन सरकार को राज्यसभा के संशोधनों को मान लेती है, तो उस सूरत में बिल को फिर से लोकसभा में भेजना होगा. ऐसे में बिल का जल्द पास होने की संभावना जाती रहेगी, जबकि सुप्रीम कोर्ट की ओर यह मियाद 22 फरवरी को खत्म हो रही है.

दोनों सदनों में बिल का पास होना जरूरी

अगर तीन तलाक से जुड़ा यह बिल विपक्ष प्रवर समिति के पास भिजवाने को लेकर अडी रही तो सरकार इसे संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में पारित नहीं करवा सकेगी. वैसे भी शीत सत्र में आज आखिरी दिन है. किसी भी बिल को कानून का रूप लेने के लिए इसे दोनों सदनों से पास करवाना जरूरी होता है.

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28 दिसंबर को लोकसभा में यह बिल पेश किया गया जो 7 घंटे तक चली लंबी बहस के बाद पास हो गया था. बहस के बाद कई संशोधन भी पेश किए गए, लेकिन सदन में सब खारिज कर दिए गए.

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