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'इस्लाम में 1400 साल पहले से ही बैन है ट्रिपल तलाक'

वन सीटिंग ट्रिपल तलाक को जो खत्म किया है, वह कोई नया काम नहीं है, बल्कि इस्लाम  तो 1400 साल पहले ही इसे बैन कर चुका है.ऐसे में कोर्ट का फैसला इस्लाम के हक में है.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

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सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को खत्म कर दिया है. कोर्ट के फैसले को लेकर मुस्लिम समाज में कई तरह के सवाल हैं. कुरान हदीश की रोशनी में कोर्ट का फैसला कहां तक जायज है. इसका मुस्लिम समाज पर क्या प्रभाव पढ़ेगा. अब अगर कोई शख्स अपनी पत्नी को ट्रिपल तलाक देता है तो ऐसी स्थिति में उसके लिए क्या रास्ते होंगे. ऐसे तमाम सवालों के जवाब के लिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के इस्लामिक स्टडीज को प्रोफेसर जुनैद हारिस से aajtak.in ने बात की.

इस्लाम के हक में फैसला

प्रोफेसर जुनैद हारिस कहते हैं-सुप्रीम कोर्ट ने वन सीटिंग ट्रिपल तलाक को जो खत्म किया है, वह कोई नया काम नहीं है, बल्कि इस्लाम  तो 1400 साल पहले ही इसे बैन कर चुका है.ऐसे में कोर्ट का फैसला इस्लाम के हक में है.  वन सींटिंग ट्रिपल तलाक कुरान, हदीश सहित सभी के नजदीक हराम है.  इसके बावजूद मुसलमानों में हनफी मसलक (विचारधारा) के लोग अस्वीकार्य मानते हुए भी उनका मत है कि अगर किसी ने वन सीटिंग ट्रिपल तलाक दे दिया है तो गलत किया, पर तलाक हो जाएगा.

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मुसलमानों के पास दंड देने का प्रावधान नहीं

जुनैद हारिस कहते हैं- ट्रिपल तलाक देने वाले शख्स को हनफी मसलक भी दंड देने की इजाजत देता है. लेकिन भारत में मुसलमानों के पास दंड देने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है. दंड देने का अधिकार सिर्फ यहां कोर्ट को हैं. ऐसे में मै समझता हूं कि कोर्ट और सरकार हनफी मसलक के विद्धानों के साथ बैठकर दंड का प्रावधान निर्धारित कर उसे लागू करती.

हनफी मसलक पर पढ़ेगा प्रभाव

जुनैद कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव सबसे ज्यादा हनफी मसलक पर पढ़ेगा. दरअसल हिंदुस्तान में हनफी विचारधारा के मानने वाले लोगी की बड़ी आबादी है. इसी विचाराधारा में ट्रिपल तलाक के मामले ज्यादा है. कोर्ट का फैसला उन मुसलमानों के लिए हैं ज्यादा महत्व रखता है, जो अपने मामले को कोर्ट के जरिए हल कराते हैं. वहीं दूसरी ओर ये फैसला उनके लिए महत्व नहीं रखता, जो अपने मामले मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत हल कराते हैं.

जागरुकता अभियान चलाना होगा

उनका कहा है कि दुनिया के तमाम देशों में ट्रिपल तलाक बैन है. इसके बावजूद वहां ट्रिपल तलाक आज भी हो रहे हैं. चाहे पाकिस्तान का मामला हो या फिर बंगलादेश का. ऐसे में भारत में अब इसे कोर्ट ने खत्म कर दिया है, लेकिन इसमें कमी तभी आएगी जब मुसलमानों के बीच जागरुकता अभियान चलाया जाए. हम उम्मीद करते हैं कि इसका राजनीतिक करण नहीं किया जाना चाहिए. वरना इसका भी हश्र उसी तरह होगा जैसे बाकी चीजों को कोर्ट ने तो बैन किया है, लेकिन वह राजनीतिक करण की भेंट चढ़ गई.  

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अब तलाक के मामले कोर्ट में ज्यादा बढ़ेगें

हारिस कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बाद अब अगर किसी मुस्लिम महिला को कोई ट्रिपल तलाक देता है, तो अब उस महिला के ऊपर निर्भर करेगा कि वह कोर्ट जाती है या फिर शरायी लिहाज से अपने मसले को हल करती है. ये विकल्प पहले भी था. लेकिन अब तलाक के मामले कोर्ट में ज्यादा जायेंगे.

जिन महिलाओं ने लड़ी लड़ाई उन्हें क्या मिला

 जुनैद हारिस कहते हैं- जिन पीड़ित महिलाओं ने वन सीटिंग ट्रिपल तलाक के खिलाफ पूरी लड़ाई लड़ी हैं अब देखना है कि सरकार उनके लिए क्या करती है. उनका तलाक हुए लंबा समय हो चुका है. ऐसे में उनमें से कुछ के शौहरों की शादियां हो चुकी हैं, तो कुछ के मर चुके होंगे. इतना ही नहीं कोर्ट में जाने से उनके बीच दुश्मनी की खाई और गहरी हो चुकी हैं. ऐसे में सरकार उनके पुनरुत्थान के लिए कदम उठाए.

 

 

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