त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में मतदान कम क्या हुआ, राजनीतिक पंडितों से राजनेता तक तरह-तरह के मायने निकाल रहे हैं. सीपीएम दावा कर रही है कि पार्टी फिर सत्ता में आएगी. वहीं बीजेपी ताल ठोक रही है कि पार्टी पहली बार त्रिपुरा की सत्ता का स्वाद चखेगी. जाहिर है कि चुनाव परिणाम से पहले सारी पार्टियां जीत का दावा करती हैं.
रविवार को हुए त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में 78.56 फीसदी मतदान हुआ है, जो पिछले विधानसभा चुनाव के 91.82 फीसदी मतदान से करीब 13 फीसदी कम हुआ है. राज्य की विधानसभा की कुल 60 सीटों में से 59 पर शांतिपूर्ण मतदान हुआ. इस बार हुए कम वोटिंग के सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं. माना जा रहा है कि इस बार के नतीजे कुछ अप्रत्याशित हो सकते हैं.
पर्वतीय प्रदेश त्रिपुरा की फिजा बदली हुआ नजर आई. इस बार के चुनाव में त्रिपुरा में दो दलों के बीच स्पर्धा है और सीपीएम ढाई दशक से सत्ता में हैं, जबकि बीजेपी तेजी से पूर्वोत्तर में सक्रियता के साथ अपनी पैठ बना रही है. बीजेपी विकास के मुद्दे को लेकर उतरी थी. राज्य की सत्ता पर 25 साल से आसीन वाममोर्चा के लिए इस बार चुनावी जंग आसान नहीं है.
बीजेपी ने पूर्वोत्तर में अपने पैर पसारने के मकसद से त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी. इतना ही नहीं चुनाव आयोग की ओर से भी सख्त रवैया अपनाने के चलते माना जा रहा है कि इस बार वोटिंग कम हुई है. त्रिपुरा की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वाले लोगों को भी लगता है कि कम वोटिंग इस बार के चुनाव नतीजे चौंका सकते हैं.
ये जरूरी नहीं है कि मतदान कम होने से राज्य में सत्तासीन पार्टी की हार होती है और मतदान ज्यादा होने से विपक्ष की जीत होती है. मतदान कम होने पर भी जीत सकते हैं और मतदान ज्यादा होने पर भी फतह कर सकते हैं. यही मापदंड हार के लिए भी लागू हो सकता है. हालांकि एक बात साफ है कि 13 फीसदी मतदान कम होने की वजह से सियासी फिजा में बड़ा उलटफेर हो सकता है.
पिछले दो दशकों से त्रिपुरा की कमान संभाले हुए मुख्यमंत्री माणिक सरकार को पहली बार बीजेपी से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है. हालांकि मुख्यमंत्री माणिक सरकार स्वच्छ और ईमानदार छवि के लिए जाने जाते हैं, लेकिन बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग पिछले कुछ समय से जिस प्रकार से जमीनी स्तर पर सक्रीय होकर चुनाव प्रचार किया, वो सीपीएम के लिए नुकसान का सबब बन सकता है.
त्रिपुरा में मतदान कम होने की कई वजहें हो सकती है. फिलहाल मतदान कम होने की पहली वजह ये है कि वोटर्स में पिछले विधानसभा चुनाव के तुलना में उत्साह का कम होना. दूसरी वजह ये भी मानी जा रही है कि चुनाव आयोग के सख्त रवैए से वोटिंग कम हुई है.
सीपीएम के कैडर पर बीजेपी आरोप लगाती रही है वो बूथ पर गुंडई करके फर्जी वोट डलवाने का काम करते हैं. ऐसे में अगर बीजेपी के आरोप सही माने तो वोटिंग कम होना सीपीएम के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है. दूसरी तरफ बीजेपी लोकलुभावन वादे के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी. बीजेपी ने त्रिपुरा में युवाओं के लिए मुफ्त स्मार्टफोन, महिलाओं के लिए मुफ्त में ग्रेजुएशन तक की शिक्षा, रोजगार, कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने जैसे वादे किए हैं. ये ऐसा पहलू होता हैं जो नतीजों को काफी हद तक प्रभावित करते हैं.
माणिक सरकार को पिछले चुनाव में करीब पचास फीसदी वोट मिला हो और उसके प्रति जनता में असंतोष की कोई ऐसी लहर भी न हो तो फिर उसको सत्ता से बाहर करना आसान नहीं होगा. प्रदेश सरकार ने भी कई काम किए हैं और उनके भी अपने वादे हैं.
पूर्वोत्तर के राज्यों में त्रिपुरा अपेक्षाकृत शांत प्रदेश रहा है, लेकिन पिछले दिनों यहां जो दुष्कर्म और हत्या की घटनाओं से कानून-व्यवस्था को लेकर लोगों में असंतोष है, जिससे वे व्यवस्था परिवर्तन के लिए वोट डाल सकते हैं. पर जिस तरह से वोटिंग कम हुई है. वो माणिक सरकार के लिए संतोष की बात रही है.
सियासी समीकरण
2013 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ सीपीएम को 48.11 फीसदी मतों के साथ 49 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस 36.53 फीसदी मतों के साथ 10 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर थी. एक सीट सीपीआई के खाते में गई थी. बीजेपी और इस चुनाव में उसकी प्रबल सहयोगी इंडिजीनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) को 1.57 फीसदी और 0.46 फीसदी मत मिले थे और दोनों को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी.