त्रिपुरा में बीजेपी की शानदार जीत का परचम लहराने के बाद सभी की नजरें पार्टी के राज्य इंचार्ज सुनील देवधर पर हैं. 'आजतक/इंडिया टुडे' से खास बातचीत में देवधर ने कहा कि त्रिपुरा में बीजेपी की जीत कोई रातों-रात हुआ करिश्मा नहीं बल्कि बीते साढ़े तीन साल से पार्टी की ओर से की गई अथक मेहनत का नतीजा है. देवधर ने बताया कि किस तरह बीते दो साल में कॉल सेंटर्स बनाए गए, पूरे राज्य में बूथ लीडर और मोदी दूत बनाए गए.
सरकार बनाने का एजेंडा
सरकार बनाने को लेकर देवधर ने कहा कि इसका एजेंडा साफ है. नितिन गडकरी और जुआल ओराम त्रिपुरा आएंगे और पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों से मिलेंगे. वे उनकी राय जानकर पार्टी आलाकमान को इससे अवगत कराएंगे. 8 या 10 मार्च को शपथ ग्रहण समारोह हो सकता है. लेकिन ये प्रधानमंत्री से वक्त मिलने पर निर्भर करेगा. प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित रहेंगे. देवधर के मुताबिक देश भर के तमाम बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के भी शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद रहने की उम्मीद है.
त्रिपुरा का नया मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर देवधर ने कहा कि IPFT ने अपनी राय जताई है लेकिन अंतिम फैसला विधायकों की ओर से लिया जाएगा कि कौन विधायक दल का नेता होगा. बिप्लव देव का नाम मुख्यमंत्री की दौड़ में आगे होने पर देवधर ने कहा कि पार्टी का संसदीय बोर्ड नाम तय करेगा.
हिंसा का अंतदेवधर ने कहा कि बीजेपी, सीपीआई(एम) समेत सभी पार्टियों के कार्यकर्ताओं से उनकी अपील है कि राज्य में कहीं भी हिंसक टकराव की स्थिति ना आने दें. बीजेपी राजनीतिक अपराधों के सख्त खिलाफ है क्योंकि राज्य ने बीते 25 साल में बहुत हिंसा को देखा है. अब ऐसी घटनाओं के लिए जगह नहीं है. हमने त्रिपुरा के लोगों से वादा किया है कि राज्य में हिंसक घटनाएं बंद कराएंगे.
सड़कों के नाम बदलने पर
देवधर ने कहा कि त्रिपुरा में कुछ सड़कों का नाम निश्चित रूप से बदला जाएगा. जैसे कि मार्क्स एंगेल्स सारणी का नाम बदला जाएगा. अभी नया नाम तय नहीं लेकिन निश्चित रूप से ये बदला जाएगा. चुनाव प्रचार के वक्त भी हर माणिक सरकार से कहते थे कि आपके मेंटर नृपेन चक्रवर्ती असली मार्क्सवादी सीएम थे और उनका योगदान अहम था लेकिन उन्हें भुला दिया गया. इसलिए हम कुछ सड़कों का नाम अवश्य बदलेंगे. राज्य में लेनिन और स्टालिन की अब कोई जरूरत नहीं है. जल्दी ही नाम बदले जाएंगे.
एक साल से मछली ना खाने का प्रण
देवधर के मुताबिक उन्हें बंगाली मछली बहुत पंसद है और ये त्रिपुरा में बहुत खाई जाती है. बीते साल सावन के महीने में धार्मिक कारणों से मैंने इसे खाना छोड़ा था. मानसून में मछली खाना छोड़ने के साथ ही मैंने प्रण लिया था कि राज्य में लेफ्ट की शिकस्त के बाद ही मैं दोबारा मछली खाऊंगा. उस वक्त विरोधियों ने उपहास किया था कि इस साल ऐसा नहीं होगा और फिर मुझे 5-6 साल तक मछली खाना नसीब नहीं होगा. मैं अपने प्रण पर गंभीर था, साथ ही आश्वस्त था कि 2018 में ही लेफ्ट त्रिपुरा की सत्ता से बाहर होगा. त्रिपुरा में लेफ्ट की शिकस्त के बाद मैंने 4 मार्च को मछली खाई.
सबसे बड़ी चुनौती क्या रही?
इस सवाल के जवाब में देवधर ने कहा कि अच्छे लोगों को ढूंढना और उन्हें प्रशिक्षित करना बड़ी चुनौती था. राज्य में आदिवासियों के साथ काम करने से मुझे काफी खुशी मिली. ये बड़ी चुनौती थी. हमारे कई युवा विधायक हैं जो पार्टी में पदाधिकारी भी हैं. 32,000 ऐसे युवा पार्टी से जुड़े जो पहले किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े थे और अब हमारे लिए दिन रात काम कर रहे हैं. त्रिपुरा में ये बीजेपी का नया चेहरा है. त्रिपुरा का भविष्य इन्हीं के हाथों में है.
देवधर के मुताबिक जब त्रिपुरा में हमने काम शुरू किया तो बहुत योजनाबद्ध ढंग से आगे बढ़े और आज हम राज्य की सत्ता में है. हमने पहले राज्य स्तरीय नेतृत्व को खड़ा किया और फिर राज्य भर में मोर्चा बनाए. अब ये मोर्चा जिला स्तर पर मौजूद हैं. मोर्चा बनाने के बाद हमने राज्य की प्रत्येक विधानसभा सीट पर फोकस किया, जिसे हम मंडल भी कहते हैं. पहले पार्टी के सिर्फ 30 मंडल ही सक्रिय थे, बाकी सभी कागजी महत्व ही रखते थे. हमने पहले सभी 60 मंडलों को पूरी तरह सक्रिय किया. हमने बूथ लेवल पर भी मोर्चा बनाए. 'एक बूथ, 10 यूथ' का नारा दिया. 3200 बूथ के लिए 32000 युवाओं ने समर्पण भावना से काम किया.
इसी तरह त्रिपुरा में महिला मोर्चा रैली में 25,000 उत्साही महिलाओं ने हिस्सा लिया. हर बूथ पर दस महिला कार्यकर्ताओं ने भी घर-घर जाकर लोगों तक पार्टी का संदेश पहुंचाया. इसी तरह आदिवासी मोर्चा, एससी मोर्चा, अल्पसंख्यक मोर्चा, किसान मोर्चा भी बूथ लेवल पर ही गठित किए गए. पांच बूथ को मिलाकर एक शक्ति केंद्र बनाया गया. कुल मिलाकर 600 शक्ति केंद्र बनाए गए जिनका एक-एक प्रभारी नियुक्त किया गया. इन शक्ति केंद्रों की नियमित बैठकें हुईं.
बीजेपी कार्यकर्ताओं का रिपोर्ट कार्ड
देवधर ने बताया कि हर गुरुवार को बूथ लेवल की पार्टी बैठकें होती थीं. फिर शुक्रवार को मंडल, शनिवार को जिला और रविवार को सभी जिलों की अगरतला में बैठक होती थी. ये बैठक मेरे और त्रिपुरा बीजेपी अध्यक्ष बिप्लव देव की अगुआई में होती थी. जहां ताजा स्थिति का जायजा लिया जाता था. साथ ही कॉल सेंटर्स चलाए जाते रहे. देखा जाता है कि संगठन की बैठकों में हर कोई अपनी अच्छी अच्छी बातें ही ऊपर के नेताओं तक पहुंचाता है. लेकिन फिर इसकी पुष्टि कॉल सेंटर्स के जरिए कराई जाती थी. जहां भी खामियां दिखतीं, उन्हें दूर किया जाता.
देवधर ने बताया कि त्रिपुरा में मोदी-दूत योजना अमल में लाई गई. इसमें युवा मोदी की तस्वीरों वाली कमीजें, टोपियां पहन कर चलते थे साथ ही वो पोस्टरों और पर्चों के जरिए लोगों तक केंद्र में मोदी सरकार की उपलब्धियों को बताते थे. साथ ही माणिक सरकार के नेतृत्व वाली लेफ्ट सरकार से विभिन्न मुद्दों को लेकर सवाल करते थे. पार्टी की मुहिम के दौरान कई विषम स्थितियों का भी सामना करना पड़ा. एक बार मैं रैली से लौट रहा था तो मेरी कार के टायर्स के नट बोल्ट तक खोल दिए गए थे. उस वक्त मेरी जान भी जा सकती थी. ये अपने आप में ही बताता है कि राज्य में लेफ्ट की ओर से कितनी असहिष्णुता दिखाई गई.