भारतीय जनता पार्टी ने त्रिपुरा में वाम दलों का किला ध्वस्त करते हुए शनिवार को आए तीन विधानसभा चुनावों के परिणामों में पूर्वोत्तर में अपना विजय अभियान जारी रखा. त्रिपुरा में भाजपा को अजेय बहुत मिलने के बाद सरकार बनना तय है. त्रिपुरा की 35 सीटों पर खिला कमल खिला है. माकपा को 16 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है.
त्रिपुरा में भाजपा और इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) गठबंधन को 59 सीटों में से 43 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी की झोली में 35 सीटें आईं जबकि आईपीएफटी आठ सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही. इस गठबंधन ने प्रदेश की सभी सुरक्षित 20 जनजातीय विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की है.
त्रिपुरा में बीजेपी को 2013 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 1.5 फीसदी वोट मिले थे और 50 में 49 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. जबकि इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को 43 फीसदी वोट मिले हैं.
वहीं, वाम मोर्चे को 2013 के चुनाव में कुल 50 सीटें मिली थीं. माकपा और भाकपा गठबंधन को 44 फीसदी से अधिक वोट मिले हैं, जो पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में लगभग छह फीसदी कम है. माकपा को अकेले 42.7 फीसदी वोट मिले हैं.
मुख्यमंत्री माणिक सरकार धनपुर सीट पर विजयी हुए हैं. वह पिछले 20 साल से प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में 10 विधानसभा क्षेत्र में जीत मिली थी, लेकिन इस बार पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाई.
प्रदेश के 60 सदस्यीय विधानसभा की 59 सीटों पर 18 फरवरी को मतदान हुए थे, जहां 48.1 फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया था. जनजातीय सुरक्षित सीट चारीलम में 12 मार्च को मतदान होगा. यहां माकपा उम्मीदवार नारायण देबबर्मा का निधन हो जाने से मतदान नहीं हो पाया था.
त्रिपुरा पर लेफ्ट का कब्जा
त्रिपुरा में 1978 के बाद से लेफ्ट पार्टी सिर्फ एक बार 1988-93 के दौरान सत्ता से दूर रही थी. बाकी सभी विधानसभा चुनावों में लेफ्ट का कब्जा रहा है. पिछले पांच चुनावों में लेफ्ट ही वहां पर जीत दर्ज करती आई है.
राज्य में कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है. वहीं बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ा है. नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से बीजेपी ने नॉर्थ ईस्ट के क्षेत्रों पर फोकस किया है. इसके अलावा आरएसएस लगातार पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में सक्रिय है.