पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के बाद देश के विभिन्न राजनीतिक दलों ने सिंहासन के फाइनल यानी लोकसभा चुनाव के लिए सियासी गोलबंदी तेज कर दी है. तेलंगाना विधानसभा चुनाव में दो- तिहाई बहुमत से सत्ता में वापसी करने वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) अब 'फेडरल फ्रंट' के नाम पर अपने लिए राष्ट्रीय राजनीति में संभावनाएं तलाश रहे हैं. केसीआर ने इस अभियान के तहत एक विशेष विमान किराए पर लिया है जिससे वे तमाम राज्यों का दौरा कर वहां के क्षेत्रीय दलों के मुखिया और मुख्यमंत्रियों से मुलाकात कर रहे हैं.
इसी क्रम में तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने पहली मुलाकात ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल (बीजेडी) के प्रमुख नवीन पटनायक से की. मुलाकात के बाद दोनों ही नेता केंद्र में गैर- कांग्रेस और गैर- बीजेपी विकल्प देने के लिए क्षेत्रीय दलों की एकजुटता की इच्छा जताई. नवीन पटनायक से मुलाकात के बाद केसीआर का अगला पड़ाव था पश्चिम बंगाल जहां वे मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की मुखिया ममता बनर्जी से मिले. ममता से मुलाकात के बाद केसीआर ने कहा कि यह छोटा काम नहीं है और आगे भी इस तरह की चर्चा जारी रहेगी.
ममता ने शुरू की कवायद फिर खींचे पांव
अब केसीआर का अगला पड़ाव राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली होगा, जहां वे समाजवादी पार्टी (एसपी) के मुखिया अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती से मुलाकात करेंगे. 'फेडरल फ्रंट' की बात करें तो ममता बनर्जी ने सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय दलों की बड़ी भूमिका की वकालत की थी. इसी क्रम में टीएमसी प्रमुख ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार, आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और जनता दल युनाईटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की थी.
जिसके बाद इसी साल अगस्त के महीने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने दिल्ली में कांग्रेस समेत विपक्ष के आला नेताओं से मुलाकात की और उन्हें अपनी बंगाल में होने वाली बड़ी रैली के लिए निमंत्रण दिया. दरअसल ममता बनर्जी केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ बन रहे गठबंधन की धुरी बनना चाहती थीं. लेकिन वे जान चुकी थीं कि अलग-अलग क्षेत्रीय दलों के राज्य में अलग परिस्थिति है जिसके अनुरूप वे अपने नफे नुकसान को देखते हुए गठबंधन करेंगे. इसीलिए ममता ने अपनी रैली में कांग्रेस को भी आमंत्रित किया. माना जा रहा है कि ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ जा सकती हैं.
दक्षिण के बड़े राज्यों में गठबंधन
हाल के सियासी घटनाक्रमों में ध्यान दें तो क्षेत्रीय दलों की सरकार वाले राज्य आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के मुखिया चंद्रबाबू नायडू ने तेलंगाना में कांग्रेस के साथ मिलकर टीआरएस के खिलाफ चुनाव लड़ा. संसद में टीडीपी द्वारा लाए अविश्वास प्रस्ताव का भी टीआरएस ने समर्थन नहीं किया, लिहाजा टीडीपी के साथ गठबंधन की संभावना ना के बराबर है. इसी तरह तमिलनाडु में मुख्य विपक्षी दल द्रविण मुनेत्र कणगम (डीएमके) के मुखिया एमके स्टालिन पहले से ही विपक्ष के प्रधानमंत्री के तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव दे चुके हैं. वहीं राज्य में सत्ताधारी एआईएडीएमके की बीजेपी से नजदीकी किसी से छिपी नहीं है. वहीं कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल (एस) की गठबंधन सरकार है और यह तय माना जा रहा है कि दोनों लोकसभा का चुनाव साथ लड़ेंगे.
पश्चिम और उत्तर भारत के राज्यों में गठबंधन
बिहार की बात करें तो प्रदेश के तमाम क्षेत्रीय दल पहले ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के बीच बंट चुके हैं. जहां जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) एनडीए के खेमे में हैं तो वहीं राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) हिंदुस्तान आवाम मोर्चा यूपीए में है. वहीं उत्तर प्रदेश की बात करें तो वहां एसपी, बीएसपी, राष्ट्रीय लोक दल और कांग्रेस के बीच गठबंधन की बात चल रही है. कमोबेश ऐसे ही हालात महाराष्ट्र में हैं जहां एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन तय हो चुका है. तो वहीं शिवसेना तमाम नाराजगी के बावजूद एनडीए का हिस्सा रहेगी ऐसा माना जा रहा है. वहीं पंजाब में आकाली दल पहले से ही एनडीए का हिस्सा है.
ऐसी परिस्थिति में जब सीटों के लिहाज से देश की राजनीति की दशा और दिशा तय करने वाले बड़े राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक में गठबंधन पहले ही तय हो चुके हैं, तब बीजेपी के खिलाफ बन रहे इस महागठबंधन के समानांतर फेडरल फ्रंट की कवायद अंतत: बीजेपी को फायदा पहुंचाएगी या कांग्रेस को, या फिर स्वयं केसीआर को?