कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तेलंगाना राष्ट्र समिति के कांग्रेस पार्टी में विलय की संभावना जताई है. जबकि टीआरएस ने ही इस दावे पर सवाल उठा दिए हैं. हालांकि दिग्विजय सिंह ने विलय संबंधी बयान पर ज्यादा कुछ तो नहीं कहा लेकिन तेलंगाना राष्ट्र समिति कांग्रेस से गठबंधन के पक्ष में है ना कि विलय के.
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि विलय के बजाय गठबंधन के तहत चुनाव लड़ें तो दोनों ही पार्टियों को ज्यादा फायदा होगा. गौर करने वाली बात है कि लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस की नजर तेलंगाना पर है. पार्टी जानती है कि आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद उसके लिए सीमांध्र में चुनाव जीत पाना बेहद ही मुश्किल होगा. हालांकि अलग तेलंगाना का वादा पूरा करके उसने इस क्षेत्र में चुनाव जीतने की संभावना बढ़ा दी है.
दूसरी ओर, टीआरएस लंबे समय से अलग तेलंगाना राज्य के लिए लड़ती रही है. ऐसे में वह हर हाल में के चंद्रशेखर राव की पार्टी का अपने में विलय चाहती है ताकि पार्टी को ज्यादा सीटें मिल सके. कांग्रेस के मुताबिक, तेलंगाना राज्य के गठन से पहले टीआरएस ने यह वादा किया था कि अगर केंद्र सरकार ऐसा करती है तो वह कांग्रेस में ही शामिल हो जाएगी. हालांकि विलय के बयान पर टीआरएस नेताओं की भौंह तन जाने से यह साफ है कि के चंद्रशेखर राव की पार्टी ऐन मौके पर कांग्रेस को ठेंगा भी दिखा सकती है.
टीआरएस नेता टी हरीश कुमार ने कहा, 'हम अपनी रणनीति पर पार्टी के पोलितब्यूरो की बैठक में चर्चा करेंगे. अगले दो दिनों तक पार्टी के सभी नेताओं से इस मसले पर विचार-विमर्श किया जाएगा.'
टीआरएस समर्थक कांग्रेस में विलय को लेकर कई शर्तें रख सकते हैं. जिसमें के चंद्रेशेखर राव को तेलंगाना का पहला मुख्यमंत्री बनाने की मांग भी हो सकती है. हालांकि पार्टी का गठन एक ही मकसद से हुआ था, अलग तेलंगाना राज्य. अब जब इस प्रस्ताव पर संसद की मुहर लग चुकी है तो कई नेताओं को मानना है कि पार्टी को इस राज्य के विकास के लिए काम करना चाहिए.
आंध्र प्रदेश के विभाजन की अधिसूचना इस सप्ताह के अंत तक जारी होने की संभावना है. ऐसे में पार्टी अगले हफ्ते तक ही अपनी रणनीति साफ करेगी. शायद, चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव के अधिसूचना जारी करने से पहले.