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मोदी के नेतृत्व में अगला लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर भिड़े उद्धव और पासवान

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को लेकर एनडीए सरकार के ही दो सहयोगी रामविलास पासवान और उद्धव ठाकरे आपस में भिड़ गए हैं...

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एनडीए के सहयोगी हैं रामविलास पासवान और उद्धव ठाकरे
एनडीए के सहयोगी हैं रामविलास पासवान और उद्धव ठाकरे

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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को लेकर एनडीए सरकार के ही दो सहयोगी रामविलास पासवान और उद्धव ठाकरे आपस में भिड़ गए हैं. दरअसल शिवसेना प्रमुख ठाकरे ने पीएम मोदी के ही नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ने को लेकर NDA की बैठक में सर्वसम्मति से मंजूर हुए प्रस्ताव का अचानक विरोध किया है, जिस पर लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के अध्यक्ष पासवान ने आपत्ति जताई है.

केंद्रीय मंत्री पासवान का कहना है कि उद्धव ठाकरे इस प्रस्ताव पर बेवजह विवाद खड़ा कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2019 का चुनाव लड़ने को लेकर एनडीए के सभी घटक दलों की मौजूदगी में ही प्रस्ताव पारित किया गया था. एनडीए में 33 पार्टियां बीजेपी की सहयोगी हैं और उद्धव ठाकरे सहित उस बैठक में शामिल सभी नेताओं ने एक स्वर में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी.

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उद्धव ठाकरे पर तंज कसते हुए पासवान कहते हैं, 'क्या उद्धव जी बच्चे हैं, जो यह प्रस्ताव रखे जाने के वक्त पर आपत्ति नहीं कर पाए. उन्हें प्रस्ताव पारित होने के एक महीने बाद आखिर इसकी याद क्यों आई. (बैठक में) भीतर कुछ और तथा बाहर में कुछ और नहीं बोलना चाहिए.'

पासवान साथ ही कहते हैं, 'हम दोनों की विचारधाराओं में भारी अंतर है, लेकिन फिर भी एनडीए का घटक होने के नाते में मैं उनकी (उद्धव) इज्जत करता हूं. हम दोनों अलग-अलग पार्टियों में होकर भी बीजेपी के साथ सरकार में है. नरेंद्र मोदी हमारे नेता हैं और हमें उनमें विश्वास व्यक्त करना चाहिए. इसलिए लोक जनशक्ति पार्टी ने कहा था कि जिस तरह से जनता का विश्वास नरेंद्र मोदी के प्रति है, वह इस बात का द्योतक है कि नरेंद्र मोदी 2019 में ही नहीं, बल्कि 2024 में भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे.'

दरअसल यह सारा विवाद सामना में छपे उस लेख से उपजा, जिसमें उद्धव ने कहा कि एनडीए की बैठक में जो प्रस्ताव पारित हुआ था, उसमें नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात पासवान ने जबरदस्ती जुड़वाई थी. उद्धव ने कहा, 'पासवान ने जबरन लिखवाया कि 2019 में मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे. चुनाव में अभी 2 साल बाकी हैं. ऐसे में अपने नेतृत्व को थोपने की इतनी जल्दबाज़ी क्यों? ऐसे फैसले शिवसेना को कदापि मंजूर नहीं.'

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इस पर पासवान कहते हैं, 'मुझे नहीं पता कि वह क्या कह रहे हैं. यह खबर आई कि जबरदस्ती लिखवाया गया है. मुझे ताज्जुब है मैं इतना पावरफुल हो गया हूं कि सभी पार्टियों के अध्यक्षों की मौजूदगी के बावजूद मैंने जबरदस्ती लिखवा लिया. यह बात सरासर गलत है.'

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