जेएनयू छात्र उमर खालिद और गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी के खिलाफ पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगांव हिंसा को लेकर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया है. पुलिस का आरोप है कि उमर खालिद और जिग्नेश मेवाणी ने 31 दिसंबर को आयोजित एक कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण दिया और इसी वजह से 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की.
जिग्नेश मेवाणी इस मामले में प्रेसवार्ता कर अपनी स्थिति साफ कर चुके हैं, लेकिन उमर खालिद की तरफ से कोई बयान अभी तक नहीं आया था. aajtak.in ने अपने यूट्यूब लाइव में उमर खालिद से भीमा कोरेगांव, दलित राजनीति सहित विभिन्न मुद्दों पर बात की.
भीमा कोरेगांव की हिंसा में अपनी भूमिका पर सफाई देते हुए उमर खालिद ने कहा कि 'सबसे पहली बात तो मैं वहां गया ही नहीं था जहां हिंसा हुई. मैं पुणे के पास आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने गया था और ऐसा नहीं है कि उस कार्यक्रम में शामिल होने वाला मैं कोई अकेला व्यक्ति था. मेरे साथ कई और लोग थे. सोनी सोरी थीं, प्रकाश अंबेडकर थे, जिग्नेश थे, रोहित वेमुला की मां थीं और भी लोग थे लेकिन पुलिस ने मुझे और जिग्नेश को ही फ्रेम किया. फिर मीडिया ने मुझे ज़्यादा फ्रेम किया. अब तो हंसी आती है जब लोग कहते हैं कि मेरे भाषण से हिंसा फैली क्योंकि मेरा भाषण यूट्यूब पर मौजूद है. कोई भी ये भाषण सुनकर निष्कर्ष निकाल सकता है कि मेरा भाषण कितना भड़काऊ है.'
उमर खालिद और उनके साथियों पर आरोप लगता है कि वो किसी भी तरह के आंदोलन में पहुंचकर उसे हाईजैक कर लेते हैं और उसे सरकार विरोधी आंदोलन की शक्ल दे देते हैं, इस पर उमर खालिद ने कहा कि आंदोलन कोई प्लेन या ट्रेन थोड़े ही है कि कोई उसे हाईजैक कर ले. हम तो सुनने-सुनाने जाते हैं. ऐसा करना कोई गुनाह तो नहीं है. फिर आंदोलन जनता का होता है, मंच पर बैठे कुछ वक्ताओं का नहीं.
'रही बात सारी चर्चा खुद की तरफ मोड़ लेने का तो मेरी ऐसी कोई मंशा रहती नहीं है. ये तो मेरे नाम की वजह से मीडिया का प्रेम है. मैं वाकई ऐसा नहीं चाहता लेकिन हो जाता है. वहां मराठा संगठन, दलित संगठन, किसान संगठन, नर्मदा बचाओ आंदोलन, महिल संगठन, लेफ्ट के संगठन सभी वहां मौजूद थे. यलगार परिषद की कांफ्रेंस दलितों की कांफ्रेंस नहीं थी.'
मुस्लिम कट्टरता पर क्या बोले
उमर से जब पूछा गया कि आप मुस्लिम कट्टरता के खिलाफ नहीं बोलते तो उनका जवाब था कि हम लगातार बोलते हैं लेकिन मीडिया दिखाता नहीं. कुछ समय पहले की बात है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुझे और शेहला रशीद को एक सेमिनार में बोलने जाना था. शेहला के किसी बयान पर वहां के छात्र नाराज हो गए और उन्होंने उसका कार्यक्रम रद्द कर दिया. तब मैंने खुलकर बोला था और यहां तक कि मैंने कहा था कि अगर जाएंगे तो दोनों, नहीं तो कोई नहीं. हम किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं हैं. हम उस कट्टर मानसिकता के खिलाफ हैं. चाहे वो इधर हो या उधर. मुझको बार-बार धर्म से जोड़कर देखा जाता है. मैंने खुद को इतना ज्यादा मुसलमान कभी महसूस नहीं किया. मैं लेफ्टिस्ट हूं, धर्म में विश्वास ही नहीं करता लेकिन मुझे भविष्य का जाकिर नाईक तक बता दिया जाता है. मुझे पाक से जोड़ दिया जाता है.
जाकिर नाईक जैसे लोगों पर उमर खालिद ने कहा कि पिछले 10-20 साल में हमारे देश में स्वयंभू बाबाओं का कल्चर शुरू हुआ है. ये हर धर्म में हैं. लोग बदहाल हैं और जब उन्हें अपने मौजूदा सिस्टम से न्याय की उम्मीद नहीं रहती तो वो भगवान में विश्वास करने लगते हैं और इन बाबाओं का कारोबार फलने-फूलने लगता है. ये आर्थिक नीतियों से जुड़ा मसला है. पहले न तो जाकिर नाईक जैसे लोग थे और न राम रहीम जैसे. देश की उन्नति के लिए जरूरी है कि वैज्ञानिक माहौल विकसित हो. तर्कप्रधान समाज हो.
ट्रिपल तलाक पर भी बोले उमर
ट्रिपल तलाक पर भी उमर खालिद ने अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला है वो बहुत ही वाजिब है. मैं इसके सख्त खिलाफ हूं. जिन मुस्लिम महिलाओं ने इसके लिए संघर्ष किया ये उनकी जीत है. वो बधाई की पात्र हैं. हां इसके इर्द-गिर्द जो राजनीति हो रही है उसे मैं गलत मानता हूं. ऐसा लगता है कि सरकार का मकसद अब कुछ और हो गया है.
उमर खालिद से जब उनके खिलाफ जेएनयू कांड को लेकर दर्ज केस के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वो केस आज भी वहीं है जहां पहले दिन था. एफआईआर तो हुई लेकिन अब तक पुलिस ने चार्जशीट पेश नहीं की. मैं चाहता हूं कि चार्जशीट पेश हो ताकि कोर्ट में उन्हें हमारे ऊपर आरोप साबित करने पड़ें लेकिन सरकार वो भी नहीं कर पाई. सिर्फ हमारे बारे में धारणा बनाई जा रही है कि हम देशद्रोही हैं. अगर हम हैं तो हमें केस चलाकर सजा क्यों नहीं दी जाती.