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देश में बेरोजगारी दर 2016 से अब तक के रिकॉर्ड स्तर पर: CMIE

एक थिंक टैंक CMIE के मुता‍बिक फरवरी में बेरोजगारी की दर बढ़कर सितंबर, 2016 के बाद के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. चुनाव का सामना करने जा रहे मोदी सरकार के लिए यह आंकड़ा तकलीफदेह हो सकता है. सरकार पहले से ही इस मोर्चे पर विपक्ष की आलोचना का सामना कर रही है.

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फरवरी में बढ़ी बेरोजगारी (फाइल फाेटो: रायटर्स)
फरवरी में बढ़ी बेरोजगारी (फाइल फाेटो: रायटर्स)

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आम चुनाव से कुछ दिनों पहले ही सरकार के लिए एक तकलीफदेह खबर आई है. देश में बेरोजगारी की दर साल 2016 के बाद से अब तक रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. सरकार पहले से ही सस्ते कृषि पैदावार और नौकरियों में कम बढ़त को लेकर विपक्ष के निशाने पर है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा जारी आंकड़ों से यह बात सामने आई है.

फरवरी, 2019 के दौरान देश में बेरोजगारी की दर 7.2 फीसदी तक पहुंच गई है. यह सितंबर, 2016 के बाद का अब तक का रिकॉर्ड स्तर है. फरवरी, 2018 में बेरोजगारी दर 5.9 फीसदी थी.  सीएमआई निजी क्षेत्र का एक प्रतिष्ठित थिंक टैंक है, जिसके आंकड़े काफी विश्वसनीय माने जाते हैं.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, CMIE के यह आंकड़े देश भर के लाखों परिवारों में किए गए सर्वे पर आधारित होते हैं. CMIE के प्रमुख महेश व्यास ने एजेंसी को बताया कि नौकरी चाहने वालों की संख्या में गिरावट के बावजूद बेरोजगारी की दर में रिकॉर्ड बढ़त हुई है. उन्होंने कहा कि फरवरी में करीब 40 करोड़ लोगों के नौकरी में रहने का अनुमान है, जबकि पिछले साल फरवरी में यह संख्या 40.6 करोड़ के आसपास थी.

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गौरतलब है कि अप्रैल से मई के बीच देश में लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में यह आंकड़ा मोदी सरकार के लिए तकलीफदेह हो सकता है. हालांकि, सरकार बेरोजगारी की अपने स्तर पर आंकड़ा जारी करती है और सरकार ने बार-बार कहा है कि बेरोजगारी दर मापने के पुराने मापदंड में बदलाव की जरूरत है.

गत दिसंबर माह में एक अखबार की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि साल 2017-18 में बेरोजगारी का स्तर 45 साल के रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया है. अखबार में दावा किया गया था कि यह एनएसएसओ की लीक रिपोर्ट है.

CMIE की जनवरी में जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि 2018 में करीब 1.1 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए. इसके लिए 2016 में मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी और 2017 में लागू जीएसटी को जिम्मेदार बताया गया. सरकार ने पिछले महीने संसद में कहा था कि उसके पास यह आंकड़ा नहीं है कि नोटबंदी से नौकरियों पर क्या असर पड़ा है.

व्यास ने कहा कि फरवरी में श्रमिक भागीदारी दर 42.7 फीसदी रही, जबकि जनवरी में यह 43.2 फीसदी थी. फरवरी, 2018 में श्रमिक भागीदारी दर 43.8 फीसदी थी. श्रमिक भागीदारी कम होने का मतलब यह है कि नौकरी चाहने वालों की संख्या में भी गिरावट आई है. इसे और बेरोजगारी दर को जोड़ दिया जाए तो समस्या और गहरा जाती है.

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अखबार ने तब छापा था कि नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक साल 2017-18 में भारत में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी रही. इस रिपोर्ट के लीक होते ही काफी विवाद हुआ था और विपक्ष को हमला करने का मौका मिला था. हालांकि, अभी तक एनएसएसओ ने बेरोजगारी का आंकड़ा जारी नहीं किया है.

CMIE के अनुमान के अनुसार, भारत में वर्किंग एज वाली जनसंख्या हर साल करीब 2.3 करोड़ बढ़ जाती है. यदि इसके 42 से 43 फीसदी हिस्से को लेबर फोर्स में शामिल होने का अंदाजा लगाया जाए तो हर साल 96 लाख से 99 लाख नए लोग लेबर फोर्स में जुड़ जाते हैं.

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