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अब पासवान को चाहिए उच्च न्यायपालिका में भी आरक्षण, दलित सम्मेलन में उठाई मांग

लोक जन शक्ति पार्टी के नेता और केंद्र सरकार में उपभोक्ता मामलों के मंत्री पासवान का कहना है कि कोर्ट के फैसलों की वजह से पहले भी बार-बार अनुसूचित जातियों को परेशानी झेलनी पड़ी है और पहले भी कई बार ऐसा हुआ है जब कोर्ट के फैसलों के बाद संविधान में संशोधन करके फैसलों को बदलना पड़ा.

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राम विलास पासवान (फाइल फोटो)
राम विलास पासवान (फाइल फोटो)

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अनुसूचित जाति और जनजाति कानून (SC/ST एक्ट) मे बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जिस तरह दलित समुदाय ने इस महीने के शुरू में सड़कों पर उतर कर आक्रोश जताया, फिर एक हफ्ते बाद बिहार में भी कुछ जगहों पर आरक्षण विरोधियों ने आरक्षण को लेकर गुस्से का इजहार किया, ये मामला अभी सुर्खियों से हटा भी नहीं था कि केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने उच्च न्यायपालिका में आरक्षण की मांग कर डाली.

लोक जन शक्ति पार्टी के नेता और केंद्र सरकार में उपभोक्ता मामलों के मंत्री पासवान का कहना है कि कोर्ट के फैसलों की वजह से पहले भी बार-बार अनुसूचित जातियों को परेशानी झेलनी पड़ी है और पहले भी कई बार ऐसा हुआ है जब कोर्ट के फैसलों के बाद संविधान में संशोधन करके फैसलों को बदलना पड़ा. रामविलास पासवान के अलावा एक और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी उच्च न्यायपालिका में आरक्षण की मांग कर चुके हैं.

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कई बार नहीं मिला दलितों को न्याय

पासवान ने ध्यान दिलाया कि मंडल आयोग के फैसले को लेकर कोर्ट ने कह दिया था कि प्रमोशन में आरक्षण नहीं हो सकता जिसके बाद संविधान में संशोधन करना पड़ा. उन्होंने कहा कि वो न्यायपालिका का बहुत आदर करते हैं, लेकिन इसके साथ यह बात भी सच है कि कई बार दलितों को न्याय नहीं मिल पाया. उदाहरण के तौर पर बिहार के बहुचर्चित लक्ष्मणपुर बाथे हत्याकांड के सभी आरोपी बरी हो गए जिसमें 58 लोगों का कत्लेआम हुआ था.

पासवान के मुताबिक चिंता की बात यह है कि इस वक्त भी सुप्रीम कोर्ट में कोई दलित जज नहीं है और हाईकोर्ट में भी उनकी संख्या बहुत कम है. उन्होंने कहा कि संविधान की धारा 312 में इस बात का प्रावधान है कि अगर सरकार चाहे तो ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विसेज का गठन करके उसके जरिए न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकती है. पासवान ने कहा कि अगर ऐसा होगा तो पारदर्शी तरीके से दलित वर्गों के लोग भी न्यायपालिका में पहुंच सकेंगे.

हालांकि पासवान ने इस बात का सीधा जवाब नहीं दिया कि क्या दलितों को न्याय दिलाने के लिए यह जरूरी है कि न्यायाधीश भी दलित हों? लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति का तरीका बदलना चाहिए और इसमें भी आरक्षण होना चाहिए. सिविल सर्विसेज की तरह न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए भी ज्यूडिशियल कमीशन ही सही तरीका होगा.

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कोर्ट के फैसले से लोगों में आक्रोश

पासवान ने कहा कि जब केजी बालाकृष्णन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे तब उनके ऊपर किसी जाति विशेष को लेकर कोई आरोप नहीं लगा. इसी तरह राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पूरे देश के राष्ट्रपति हैं, लेकिन उनके राष्ट्रपति बनने से दलितों के मन में संतुष्टि का भाव जरूर आया.

उन्होंने कहा कि हाल में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति को लेकर जो फैसला दिया उससे लोगों के मन में आक्रोश है और सरकार ने उसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दाखिल कर दी है. पासवान ने कहा कि हम लोगों को यह उम्मीद है कि कोर्ट लोगों की नाराजगी को समझते हुए अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो सरकार अध्यादेश लेकर आएगी और इसकी तैयारी भी हो रही है.

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