'जहां सोच, वहीं शौचालय'... स्वच्छ भारत अभियान के तहत टीवी पर आपने यह विज्ञापन कई बार देखा होगा और इसने शायद आपको सोचने को भी मजबूर किया होगा. लेकिन यूपी के एटा जनपद में स्थिति इससे उलट है.
जिला प्रशासन को केंद्र की सोच से कोई वास्ता नहीं है और न ही वह कुछ सुनना चाहता है. तभी तो शौचालय की मांग को लेकर कई वर्षों से अधिकारियों के चक्कर लगा-लगाकर थक चुकी 30 वर्षीय युवती पिछले 15 दिनों से धरने पर बैठी है. सोच की पक्की इस युवती ने हार नहीं मानी है. इसका कहना है कि वह अपना हक लेकर रहेगी, चाहे कितने ही दिन धरना देना पड़े.
सकीट विकास खंड के नगला इंदी गांव की 30 वर्षीय सत्यवती अपने परिवार के साथ आर्थिक तंगी में जीवन गुजार रही है. केंद्र के स्वच्छ भारत अभियान से प्रभावित सत्यवती ने करीब एक वर्ष पहले पंचायती राज विभाग में एक शौचालय के लिए आवेदन किया, मगर कोई सुनवाई नहीं हुई.
पिछले एक साल में अर्जी पर अर्जी देकर थक चुकी सत्यवती घर और गांव की दहलीज लांघकर जिला मुख्यालय पर अपनी मांग को लेकर धरने पर बैठ गईं. लेकिन किसी भी अधिकारी ने उसकी समस्या जानने में रुचि नहीं दिखाई.
सत्यवती ने भी प्रण कर लिया है कि वह अपना हक लेकर रहेगी, चाहे इसके लिए कितने ही दिन क्यों न लग जाएं. सत्यवती ने कहा, 'मेरी मांग एक शौचालय की है. मैं शौच के लिए जाती हूं, तो शर्म लगती है. आने-जाने में दिक्कत होती है मुझे. मैं अकेली लड़ाई लड़ रही हूं. मैं पंद्रह दिनों से धरना पर बैठी हूं और एक साल से चक्कर काट रही हूं. किसी भी अधिकारी ने मेरी सुनवाई नहीं की.'
मीडिया में मामला आने के बाद अधिकारी जल्द ही मामले को संज्ञान लेकर शौचालय बनवाने की बात कहने लगे हैं. हालांकि अभी तक किसी अधिकारी ने सत्यवती से मिलने की जरूरत नहीं समझी है.
एटा के एसडीएम सुनील यादव ने कहा, 'महिला को डीपीआरओ साहब की तरफ से कल से काम कराने के लिए कह दिया गया है. महिला की इसमें अब कोई समस्या नहीं है. काम अब जल्द ही शुरू करा दिया जाएगा.'
अपने हक के साथ समाज में जागरुकता की बयार बहाने की सोच के साथ बैठी सत्यवती को अभी और कितनी रातें खुले आसमान के नीचे गुजारनी पड़ेंगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन सोए प्रशासन को जगाने के लिए सत्यवती की सोच और उसका निश्चय मील का पत्थर साबित होगा.