यूनिटेक के फ्लैट खरीदारों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. यूनिटेक को टेकओवर करने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है. हरियाणा कैडर के पूर्व IAS अधिकारी युद्धवीर सिंह मलिक को यूनिटेक का नया सीएमडी बनाया गया है. इससे कंपनी के अटके पड़े प्रोजेक्ट का काम तेजी से चल सकता है.
सात सदस्यों का नया बोर्ड
सुप्रीम कोर्ट ने यूनिटेक के लिए 7 सदस्यों का नया बोर्ड बनाया है. बोर्ड ने तुरंत कार्यभार संभाल लिया. कोर्ट अब नई व्यवस्था को मौका देते हुए यूनिटेक बायर्स मामले में 2 महीने तक सुनवाई नहीं करेगा. सर्वोच्च अदालत ने ये भी साफ कर दिया कि नई व्यवस्था प्रोजेक्ट पूरे करने की रफ्तार बढ़ाने की मंशा से की गई है. लेकिन यूनिटेक के खिलाफ चल रही जांच बंद नहीं होगी. वो पहले की तरह जारी रहेगी, बल्कि उसमें भी तेजी लाई जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने 2 महीने के लिए यूनिटेक के खिलाफ कोई भी ताजा मामला दर्ज करने पर रोक लगा दी है. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी के खिलाफ पुराने आदेश / प्रवर्तन को भी दो महीने के लिए निलंबित कर दिया है.
दरअसल केंद्र सरकार ने यूनिटेक के प्रबंधन को टेकओवर करने का प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट में सौंपा था. कोर्ट ने केंद्र की पेशकश पर मुहर लगा दी है. यूनिटेक के प्रमोटर अभी जेल में हैं. कोर्ट ने करीब 30 हजार घर खरीदारों के हितों को ध्यान रखते हुए केंद्र सरकार को कंपनी का प्रबंधन अपने हाथ में लेने को कहा था.
निदेशकों को जमानत से इनकार
साथ ही कोर्ट ने फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट में भी यूनिटेक व उसके निदेशकों द्वारा फ्लैट खरीदारों के हजारों करोड़ रुपये डायवर्ट करने की बात सामने आने के बाद सरकार को प्रवर्तन निदेशालय समेत तमाम एजेंसियों से इस मामले की जांच कराने का निर्देश दिया था. पीठ ने यूनिटेक के निदेशकों चंद्रा बंधुओं को जमानत देने से भी इनकार कर दिया है.
क्या है मामला?
29,800 घर खरीदारों ने कंपनी के पास करीब 14,270 करोड़ रुपये जमा किए थे. साथ ही परियोजनाओं के नाम पर बैंक से लिए लोन में से करीब 40 फीसदी रकम का ही इस्तेमाल परियोजनाओं के लिए हुआ.
कंपनी प्रबंधकों ने 60 फीसदी रकम को डायवर्ट कर दिया. इस पर पीठ ने सरकार से कहा कि वह प्रवर्तन निदेशालय समेत तमाम एजेंसी को इसकी जांच करने के लिए कहे. तब से जांच जारी है.
सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर 2019 को केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या वह 2017 के अपने प्रस्ताव पर विचार करने के लिये तैयार है. कोर्ट के मुताबिक कर्ज में डूबी यूनिटेक लिमिटेड की प्रोजेक्ट्स को किसी विशिष्ट एजेंसी द्वारा अपने हाथों में लेने की तत्काल जरूरत है, ताकि घर खरीदारों के हित में अटकी परियोजनाओं को तय समय के भीतर पूरा किया जा सके.
5,800 करोड़ की रकम का इस्तेमाल ही नहीं
सुप्रीम कोर्ट के इसी सवाल पर केंद्र सरकार ने अब जवाब दिया है. बता दें कि यूनिटेक लिमिटेड के बारे में फोरेंसिक ऑडिटर द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2006 से 2014 के दौरान 29,800 घर खरीदारों से करीब 14,270 करोड़ रुपये और छह वित्तीय संस्थानों से करीब 1,805 करोड़ रुपये जुटाने का पता चला है. इस रकम में से 5,800 करोड़ रुपये से अधिक का इस्तेमाल नहीं किया गया.
कई तरह की पाई गई थीं गड़बड़ियां
यही नहीं, साल 2007 से 2010 के दौरान कंपनी द्वारा कर चोरी के लिहाज से पनाहगाह माने जाने वाले देशों में बड़ा निवेश किये जाने का पता चलता है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यूनिटेक लिमिटेड के प्रमोटर्स के खिलाफ मनी लॉड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर जांच करने का आदेश दिया. यूनिटेक के प्रमोटर संजय चंद्रा और उनके भाई अजय चंद्रा घर खरीदारों से प्राप्त धन की हेरा-फेरी के आरोप में फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद हैं.