22 दिसंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर जनता परिवार के बिखरे सदस्य एकीकृत रूप में नरेंद्र मोदी से चुनाव के दौरान किए गए उनके वादों का हिसाब मांगने के लिए इकट्ठा हो रहे हैं. लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद सपा, आरजेडी, INLD, जेडी (एस) और जेडीयू के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है. जंतर मंतर पर होने वाला प्रदर्शन इन दलों के साथ आने की शुरुआत है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि ये दल मिलकर एक नई एकीकृत पार्टी बना सकते हैं.
हालांकि जनता परिवार के सदस्य दलों के जुड़ने और बिखरने के इतिहास पर नजर डाले, तो नए ‘समाजवादी जनता दल’ का रास्ता मुश्किलों भरा दिखता है.
दिल्ली में हुई दो बैठकों के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को नए एकीकृत दल के प्रारुप का मसौदा तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नया दल मौजूदा केंद्र सरकार की बदली हुई विकास केंद्रित राजनीति के सामने चुनौती पेश कर पाएगा? क्या इन नेताओं के पास मौजूदा आर्थिक नीति का कोई वैकल्पिक मॉडल है. नए समाजवादी जनता दल की इन्हीं चुनौतियों पर एक नजर..
भरोसे की कमी
गैर कांग्रेसवाद की थिसिस पर बने जनता परिवार में कई बार टूटन आईं. फिर कई दल उभरे और फिर टूटे. ये सिलसिला इतनी बार हो चुका है कि अवाम के एक बड़े हिस्से को भी नहीं पता कि जनता परिवार वाले कितनी बार टूटे और बिखरे. लिहाजा मुलायम सिंह, नीतीश कुमार और लालू जैसे नेताओं के सामने जनता दल का एकीकरण करना बड़ा मसला नहीं है, उनके लिए बड़ी चुनौती एकीकृत नए दल के लिए जनता का भरोसा जुटाना होगा.
विकास पुरुष वाली छवि नहीं
बात चाहे मुलायम सिंह की हो या लालू यादव की या फिर नीतीश कुमार की, इनमें से कोई भी नरेंद्र मोदी के विकास पुरुष वाली छवि से बड़ी लकीर नहीं खींच पाया. बड़े बिजनेस घरानों से जितनी करीबी नरेंद्र मोदी की है, इनमें किसी नेता की भी नहीं. बिहार में लालू प्रसाद यादव के शासन के दिनों को जंगलराज के रूप में दोहराया जाता है. यूपी में कई बार शासन करने के बावजूद मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे की सरकार अपनी छवि कथित रूप से उद्योगपतियों के अनुकुल नहीं बना पाई है.
वहीं नरेंद्र मोदी से कई मुद्दों पर सीधे टकराने वाले नीतीश कुमार की छवि भी बिजली, सड़क और पानी के दायरे में सिमटी है. नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचार और संबोधनों में इतनी बार विकास-विकास दोहराया है कि आम आदमी भी अब विकास और आर्थिक प्रगति की बात पर जोर देने लगा है. इन नेताओं के सामने यह मुद्दा सबसे गंभीर चुनौतियों में से यह एक है.
सामाजिक न्याय और रचनात्मक विकास की बातें मेक इन इंडिया के आगे अब धुंधला गई हैं. नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया और बिजनेस घरानों के साथ अपने संबंधों को जोड़कर विकास पुरुष की अपनी छवि को बड़ा कर लिया है. आर्थिक मोर्चे पर अब नए समाजवादी जनता दल को मोदी से बड़ी लकीर खींचनी होगी और ये मुमकिन नहीं दिखता.
कौन करेगा नए दल की अगुवाई
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी लगातार राज्य चुनावों में अपनी विजय पताका फहराती जा रही है. महाराष्ट्र और हरियाणा में उसने अपने दम पर सरकार बनाई है और अन्य राज्यों में भी बढ़त हासिल करने की ओर है. सवाल यह भी है कि अगर नया एकीकृत समाजवादी जनता दल उभर कर सामने आता है, तो उसका नेतृत्व कौन करेगा. क्या मुलायम सिंह इसके नेता होंगे. क्या बाकी नेता मुलायम सिंह पर विश्वास कर पाएंगे. इन सभी दलों को मिलाकर देखा जाए तो लोकसभा में इनके सदस्यों की संख्या 15 है, जबकि राज्यसभा में इनकी स्थिति थोड़ी मजबूत दिखती है.
हालांकि सियासी गलियारों में मुलायम सिंह को सर्वाधिक गैर भरोसेमंद नेता बताया जाता है. 2014 के चुनावों से पहले मुलायम यूपीए सरकार के खिलाफ कई बार मुद्दों पर अलग गठजोड़ बनाने के बाद पलट गए थे, लेकिन अब केंद्र में यूपीए की सरकार नहीं है और इस बात की संभावना कम है कि मुलायम बीजेपी के साथ जाएंगे. इन सबके बीच मुलायम, नीतीश या किसी और नेता के नेतृत्व में काम करेंगे इसकी संभावना कम है, साथ ही यूपी और बिहार के बाहर इन नेताओं का प्रभाव भी.
अपने राज्यों की दशा नहीं बदल पाएं
जनता दल के अहम सदस्यों में से एक रहे लालू यादव ने बिहार में 15 साल शासन किया, लेकिन अपने राज्य की स्थिति बदल पाने में लालू नाकाम रहे. यादव-मुस्लिम समीकरण के दम पर लालू ने लंबे समय तक राज किया, लेकिन ये फॉर्मूले अब काम आएंगे ये कहना मुश्किल है. मुलायम सिंह यादव के बेटे यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार चला रहे हैं और इससे पहले मुलायम सिंह यादव भी यूपी पर शासन कर चुके हैं. लेकिन आज भी यूपी और बिहार में बिजली, पानी और सड़क की समस्याएं जस की तस हैं. हालांकि नीतीश कुमार ने इन सबके मुकाबले बेहतर काम किया, लेकिन एक सीमा से आगे वह भी नहीं जा पाए.
अपने अपने राज्यों में दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ों के दम पर राज करने वाले ये क्षेत्रीय नेता उम्र के ढलान पर (नीतीश को छोड़कर) हैं. उनकी राजनीति का सर्वश्रेष्ठ समय बीत चुका है और देश का मध्यम वर्ग बहुत आगे बढ़ चुका है. राजनीति में रोटी के बजाय जीडीपी के प्रभुत्व वाले समय में नई सोच और नीति के बिना इन दलों के लिए नरेंद्र मोदी का विकल्प हो पाना असंभव लगता है.