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ऑपरेशन ब्लूस्टार से जुड़े ये 5 तथ्य जरूर पढ़ें

ऑपरेशन ब्लूस्टार पहले इस अभि‍यान का नाम ऑपरेशन सनडाउन था. ऑपरेशन को यह नाम इसलिए दिया गया कि सारी कार्रवाई आधी रात के बाद होनी थी.

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इस ऑपरेशन के लिए सेना को 22 दिन तक ट्रेनिंग दी गई थी
इस ऑपरेशन के लिए सेना को 22 दिन तक ट्रेनिंग दी गई थी

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स्वतंत्र भारत में असैनिक संघर्ष के इतिहास में ऑपरेशन ब्लू स्टार सबसे खूनी लड़ाई थी. अमृतसर स्थि‍त स्वर्ण मंदिर के पास अपने हथियारबंद साथियों के घेरे में छिपे बैठे भिंडरावाले और उसकी छोटी-सी टुकड़ी को काबू करने के लिए सेना ने अभि‍यान चलाया था.

इस ऑपरेशन से जुड़े 5 बड़े तथ्य ये हैं.

1. ऑपरेशन ब्लूस्टार पहले इस अभि‍यान का नाम ऑपरेशन सनडाउन था. ऑपरेशन को यह नाम इसलिए दिया गया कि सारी कार्रवाई आधी रात के बाद होनी थी. ऑपरेशन सनडाउन असल में झपट्टा मारकर दबोचने की कार्रवाई थी. इसके तहत हेलिकॉप्टर में सवार कमांडो स्वर्ण मंदिर के पास गुरु नानक निवास गेस्ट हाउस में उतरते और भिंडरावाले को उठा लेते. लेकिन इंदिरा गांधी को जब इस ऑपरेशन में होने वाले आमजन से जुड़े नुकसान को लेकर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तो यह ऑपरेशन ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

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2. रॉ ने मोसाद के साथ मिलकर ऑपरेशन सनडाउन की योजना बनाई थी और इसे गुप्त रखा गया था, क्योंकि उस समय इजराइल के साथ भारत के राजनयिक संबंध नहीं थे और वह अपने अरब मित्रों को नाराज नहीं करना चाहता था. तेलअवीव के पास स्थित इस अड्डे पर इन सैनिक अधिकारियों को सड़कों, इमारतों और गाड़ियों के बड़ी सावधानी से बनाए गए मॉडलों के बीच आतंक से लड़ने की 22 दिन तक ट्रेनिंग दी गई.

3. सनडाउन में ट्रेनिंग ले चुके कई कमांडो ने ब्लूस्टार के दौरान पूरी तरह किलाबंद अकाल तख्त पर आत्मघाती हमले की अगुआई की और तीन दिन बाद आखिरी उग्रवादी को स्वर्ण मंदिर से निकाले जाने तक वहां डटे रहे. बाद में सिख आतंकियों ने इस ऑपरेशन में हिस्सा लेने वाले अफसरों को निशाना बनाया. यही वजह है कि रिटायर होने के वर्षों बाद भी ये अधिकारी अपनी पहचान नहीं बताते.

4. 1984 में 5 जून को सेना के कमांडो उग्रवादियों का सफाया करने के लिए स्वर्ण मंदिर में घुसे. सेना और उग्रवादियों के बीच जारी खूनी संघर्ष के दौरान भिंडरावाले का सैनिक सलाहकार शाबेग सिंह सूरज निकलने तक मुकाबला करना चाहता था ताकि सुबह जब लोगों को सैनिक कार्रवाई का पता लगेगा, तो वे मरने-मारने पर उतारू हो जाएंगे. ये वे मेजर जनरल शाबेग सिंह थे, जिन्होंने 1971 में मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों को ट्रेनिंग दी थी. लेकिन 1976 में रिटायरमेंट से ठीक पहले भ्रष्टाचार के आरोप में उनका कोर्ट-मार्शल किया गया और रैंक छीन लिया गया.

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5. ऑपरेशन खत्म होने के बाद इंदिरा गांधी की पहली प्रतिक्रिया के तौर पर उनके मुंह से 'हे भगवान' निकला था. दरअसल 6 जून, 1984 को सुबह छह बजे आर के धवन के दिल्ली स्थित गोल्फ लिंक निवास पर फोन की घंटी बजी. रक्षा राज्यमंत्री के पी सिंहदेव चाहते थे कि धवन तुरंत इंदिरा गांधी तक एक संदेश पहुंचा दें. ऑपरेशन कामयाब रहा, लेकिन बड़ी संख्या में सैनिक और असैनिक मारे गए हैं. खबर मिलते ही इंदिरा गांधी की पहली प्रतिक्रिया दुख भरी थी. उन्होंने धवन से कहा, 'हे भगवान, इन लोगों ने तो मुझे बताया था कि कोई हताहत नहीं होगा.'

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