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बदनसीब का भी नसीब होता है

बदनसीब कौन है? और नसीबवाला कौन है ? आखिर एक नसीबवाले और एक बदनसीब में बुनियादी फर्क क्या है? कोई शख्स नसीबवाला है या बदनसीब, ये तय करने का हक किसे है?

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नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल
नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल

बदनसीब कौन है? और नसीबवाला कौन है ? आखिर एक नसीबवाले और एक बदनसीब में बुनियादी फर्क क्या है? कोई शख्स नसीबवाला है या बदनसीब, ये तय करने का हक किसे है?
दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लिए खुद को नसीबवाला बताया था. द्वारका की चुनावी रैली में मोदी ने कहा था, 'पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम हुई हैं और जनता के कुछ पैसे बचने लगे हैं. मेरे विरोधी कहते हैं मोदी नसीबवाला है, इसलिए ऐसा हुआ. मान लीजिए अगर मेरे नसीब से दाम कम होते हैं तो बदनसीब को लाने की क्या जरूरत है? आप बताएं कि नसीबवाला चाहिए या बदनसीब.'

मोदी के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर खूब बहस हुई. लोगों ने अपने अपने तरीके से इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी. अपने भाषण में मोदी ने खुद को तो नसीबवाला बताया था लेकिन बदनसीब कौन है, इस बारे में उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया. 2014 के लोकसभा चुनाव में तो मोदी के निशाने पर हमेशा कांग्रेस नेता राहुल गांधी रहे, लेकिन दिल्ली चुनावों में उनके टारगेट पर आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ही रहे. यही वजह रही कि मोदी के बदनसीब वाली बात को केजरीवाल से ही जोड़ा गया.

मेरे मन में भी ये सवाल बार बार उठता रहा. क्या मैं नसीबवाला हूं?

बिलकुल. मैं नसीबवाला हूं, अगर मेरे होने से – अखबारों में किसी दिन रेप, ऑनर किलिंग या भ्रूण हत्या की खबरें नहीं आतीं. लड़कियां स्कूल जाती हैं. महिलाएं कहीं भी, कभी भी बेखौफ घूम फिर सकती हैं. दहेज के लिए उन्हें प्रताड़ित नहीं किया जाता. सड़क पर चलते उन्हें कुछ निगाहें लगातार घूर घूर कर नहीं देखतीं. दफ्तरों में प्रमोशन के लिए कोई अवांछित फेवर के लिए परेशान नहीं करता.

और फिर दूसरे क्षण एक सवाल और परेशान करता है. क्या मैं बदनसीब हूं?

आखिर मैं खुद को बदनसीब क्यों न समझूं - जब टीवी पर पांच साल की बच्ची से बलात्कार की खबर देखने को मिलती हो. जब अखबार में तीन साल के बच्चे के साथ अप्राकृतिक यौनाचार की खबर पढ़ने को मिले. एक के बाद एक किसान आत्महत्या कर रहे हों. आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूखे पेट सो रहा हो. इलाज के अभाव में हजारों महिलाएं प्रसव के वक्त ही दम तोड़ दे रही हों. पैदा होने के कुछ देर बाद ही शिशुओं की सांस थम जा रही हो.   

वाकई अगर मेरे होने से सूरज उगता और डूबता है. हवा चलती है. नदियों का बहाव जारी है. पेड़ पौधे बढ़ रहे हैं. फसलें लहलहा रही हैं, हर तरफ अमन और भाईचारे का माहौल है - तो मैं निश्चित रूप से नसीबवाला हूं.

लेकिन अगर मेरे होने से बड़े बड़े हादसे होते हैं, सूखा पड़ता है, बाढ़ बर्बादी लाती है, सुनामी तबाही लाती है, भूकंप जान माल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, तो मैं वाकई बदनसीब हूं.
अब जबकि दिल्ली चुनावों में एक तथाकथित बदनसीब सबसे बड़ा नसीबवाला बन कर उभरा है, फिर तो सवाल उठने लाजिमी हैं.

क्या एक बदनसीब किसी नसीबवाले के साथ मिलकर नसीबवाला हो सकता है? क्या एक नसीबवाला किसी बदनसीब के साथ होने से बदनसीब हो जाता है? शायद नहीं. अगर ऐसा होता तो दिल्ली के नतीजे कुछ और होते.

कहते हैं - नसीब, कर्म से बनता बिगड़ता है. कर्म से ही नसीब की दशा और दिशा तय होती है.
अब आप खुद को नसीबवाला मानते हैं या बदनसीब? ये सिर्फ आपको ही तय करना है. ये आपकी ड्यूटी भी है और हक भी.

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