उन्नाव रेप केस की पीड़िता की मां की ओर से लिखी गई चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट में नहीं मिलने पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने रजिस्ट्रार से जवाब तलब किया है. साथ ही देश की शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के एनजीओ 'बचपन बचाओ आंदोलन' को भी पक्षकार बना कर इस मामले में उसकी मदद लेने का निर्देश दिया है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने फैसले में कहा कि कैलाश सत्यार्थी के एनजीओ 'बचपन बचाओ आंदोलन' को भी केस में पक्षकार बना कर इस मामले में उसकी मदद लिया जाए. तत्काल सुनवाई के लिए इस एनजीओ को एक पार्टी बनाया जाए.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने पूछा कि जब पीड़िता के परिवार की तरफ से चिट्ठी लिखी गई थी, तो 30 जुलाई तक जनहित याचिका के सेक्शन में यह चिट्ठी हमारे सामने क्यों नहीं आई. इस पर कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि हर महीने अदालत में 6000 से ज्यादा चिट्ठियां आती हैं. इस महीने करीब 6800 पत्र आए हैं.
सॉलिसिटर जनरल ने अपने जवाब में कहा कि जब उन्नाव से जुड़ा मामला सामने आया तो हमने तत्काल यह चिट्ठी कोर्ट के सामने पेश कर दी. हमें पहले पीड़िता का नाम और परिवार का नाम नहीं पता था, इसलिए हमें चिट्ठी को सामने रखने में दिक्कत हुई.
सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता की ओर से लिखी चिट्ठी के दबे रहने के मामले की जांच के लिए सेक्रेटरी जनरल को आदेश दिया और इसे 7 दिन में पूरा करने को कहा है. जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के एक जज को सौंपी जाएगी. जांच से यह पता चल जाएगा कि कोर्ट तक चिट्ठी नहीं मिलने के मामले के दोषी रजिस्ट्री वाले हैं या गलती और लापरवाही प्रशासनिक शाखा के अधिकारियों की ओर से की गई.
अदालत के नियमों के मुताबिक, जो भी चिट्ठी चीफ जस्टिस के लिए लिखी जाती है, उनकी स्क्रीनिंग की जाती है और फिर उसके बाद उन्हें संबंधित विभागों को सौंप दिया जाता है.
पूरा मामला तब सामने आया जब कुछ दिन पहले यह बात सामने आई थी कि उन्नाव रेप केस पीड़िता की मां ने 12 जुलाई को चीफ जस्टिस के नाम चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने लखनऊ से केस ट्रांसफर करने की मांग की थी. हालांकि, ये चिट्ठी चीफ जस्टिस तक नहीं पहुंच पाई थी.