उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही टीवी चैनलों पर सुर्खियां बटोरने में सपा और बीजेपी आगे हों, लेकिन बीएसपी को अपने शुद्ध जमीनी काम पर पूरा भरोसा है. दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न पाने के बाद से बीएसपी ने अपनी रणनीति बदली है. जानें बीएसपी के क्या है वो 7 कदम, जिनके बल पर वो इस बार अपने सिर पर ताज सजता देख रही है.
1. पार्टी ने सबसे पहले तो मोदी लहर में कुछ हद तक छितरा गए अपने दलित वोट बैंक को एक बार फिर मुट्ठी की तरह बांध लिया है.
2. जमीनी स्तर पर वोटरों को जोड़ने के लिए पार्टी ने हर मंडल पर दो कोऑर्डिनेटर तैनात किए हैं. पहले बीएसपी संगठन के जोनल कोऑर्डिनेटर के क्षेत्र में कई मंडल आते थे. अब हर मंडल को ही जोन में तब्दील कर दिया गया है. ये प्रभारी जिले में बीएसपी उम्मीदवार और संगठन के बीच लिंक का काम कर हर माह रिपोर्ट देते हैं.
3. बीएसपी सभी 85 सुरक्षित सीटों पर मुसलमान और ब्राह्मण भाईचारा रैलियों का आयोजन कर रही है. मुस्लिम भाईचारा रैलियां नसीमुद्दीन और ब्राह्मण रैलियों की जिम्मेदारी सतीश चंद्र मिश्र को सौंपी गई है.
4. बाकी पार्टियां नोटबंदी को लेकर जहां बयानबाजी और धरने प्रदर्शन तक सीमित रहीं, वहीं बीएसपी ने अपने कार्यकर्ताओं के जरिए गरीब मतदाता तक यह बात जोरदार तरीके से भेजी कि नोटबंदी से सिर्फ गरीब का अहित हुआ है. खासकर ऐसे वक्त में जब महानगरों से बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की नौकरी चली गई है और उन्हें वापस अपने गांव लौटना पड़ा है. तब बीएसपी कार्यकर्ताओं की ये बातें लोगों के गले आसानी से उतर रही हैं.
5. मायावती के एक करीबी नेता चुनावी अंकगणित का खुलासा करते हुए कहते हैं कि पार्टी ने सुरक्षित सीटों में से 60 और इतने ही मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है. इसके बाद बहुमत के लिए दूसरी जातियों के सहयोग से केवल 80 सीटें जीतना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा.
6. बीएसपी के एक प्रमुख कोऑर्डिनेटर कहते हैं ब्राह्मण ऐसी जाति है जो अपने साथ कम से कम पांच छोटी जातियों पर प्रभाव दिखाती है. इसी को ध्यान में रखते हुए बीएसपी ने अपना तानाबाना बुना है.
7. जाटव जाति से आने वाले बीएसपी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि पार्टी के कोर वोट बैंक जाटव की ठाकुर, जाट, यादव और मुसलमानों के साथ संघर्ष की घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में सामने आई हैं लेकिन ब्राह्मणों के साथ ऐसा कोई वाकया नहीं है. जाटव बहुल विधानसभा सीटों पर ब्राह्मणों के जरिए हाथी को मजबूत करने की रणनीति बनाई गई है.