उत्तर प्रदेश में महागठजोड़ को लेकर कांग्रेस की मुश्किल बढ़ी है. सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस नेताओं का एक तबका राहुल को बिहार के नीतीश फॉर्मूले की तर्ज पर यूपी में अखिलेश फार्मूला तो समझा रहा है, लेकिन उसके पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि समाजवादी पार्टी में बात किससे की जाएगी. क्योंकि, सीटों के बंटवारे में शिवपाल या मुलायम से राहुल बात नहीं करना चाहते और अखिलेश की सीट बंटवारे में अथॉरिटी पर शक सबको है.
दरअसल, अगर अखिलेश अपनी अलग पार्टी बना लेते तो कांग्रेस के लिए गठजोड़ करना आसान हो जाता, लेकिन शिवपाल की बढ़ी ताक़त और उनको मुलायम का साथ कांग्रेस को परेशांन कर रहा है. इसलिए कांग्रेस जल्दबाज़ी से बच रही है. हालांकि, गठजोड़ के समर्थक ये समझा रहे हैं कि, जैसे बिहार में कांग्रेस नीतीश के चेहरे के पीछे खड़ी थी. जबकि गठबंधन में लालू भी थे, ठीक वैसे ही अखिलेश के साथ कांग्रेस रिश्ता रखे.
लेकिन इन हालात में गठजोड़ के विरोधी खेमे का मानना है कि नीतीश और लालू की तुलना पिता-पुत्र मुलायम अखिलेश से करना बिलकुल जायज़ नहीं. ऐसे में अखिलेश के पास अथॉरिटी हो तभी कांग्रेस को आगे बढ़ना चाहिए. आखिर नीतीश खुद सीएम चेहरा थे और अलग-अलग कांग्रेस और लालू से बात कर रहे थे, लेकिन फिलहाल ये ताक़त अखिलेश के पास नहीं है.
वैसे भी कांग्रेस की बीजेपी को रोकने के लिए पहली पसंद बीएसपी है, जिससे वो गठजोड़ करना चाहती है. इसीलिए फ़िलहाल कांग्रेस सीधे किसी नतीजे पर पहुंचने के बजाय आहिस्ता आहिस्ता क़दम बढ़ाना चाहती है और फिलहाल खुलकर कुछ नहीं बोलना चाहती. आखिर एक बार उसने सपा की तरफ पींगे बढ़ा दीं, तो फिर बीएसपी के लिए उसके दरवाज़े बंद हो जाएंगे. ऐसे में कांग्रेस अंदरखाने रणनीति बना रही है लेकिन आधिकारिक तौर पर खामोश रहना चाहती है.
इसलिए शरद यादव से अपनी मुलाक़ात को यूपी के प्रभारी महासचिव और राज्यसभा में विपक्ष के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने गठबंधन से जोड़कर देखने को पूरी तरह गलत बता दिया. आज़ाद ने कहा कि, वो संसद के सत्र के बारे में बात करने गए थे, ना कि गठजोड़ के सिलसिले में. हम देश की सभी विरोधी पार्टियों से संपर्क में हैं, जिससे सरकार को संसद में घेरा जा सके.