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मुलायम-मोदी के लिए दोस्ती भली या वोटर ?

उत्तर प्रदेश में लगभग लुप्त हो चुकी कांग्रेस पार्टी के नेताओं को लगता है कि यूपी में कांग्रेस अपना खोया हुआ वजूद हासिल कर सकती है. अगर वह किसी तरह से यह साबित कर दे कि मोदी और मुलायम के बीच एक गुप्त सियासी सांठ-गांठ है.

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उत्तर प्रदेश में लगभग लुप्त हो चुकी कांग्रेस पार्टी के नेताओं को लगता है कि यूपी में कांग्रेस अपना खोया हुआ वजूद हासिल कर सकती है. अगर वह किसी तरह से यह साबित कर दे कि मोदी और मुलायम के बीच एक गुप्त सियासी सांठ-गांठ है. इसमें कोई शक नहीं है कि मुलायम सिंह यादव को अपना नेता मानने वाले मुस्लिम वोटरों को अगर ये पता चले कि मोदी-मुलायम के बीच नजदीकी बढ़ रही है, तो वे सपा से नाराज हो जाएंगे. गौर करने वाली बात है कि इस बात का खामियाजा बहुजन समाज पार्टी ने भी उस वक्त भुगता था जब उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था. उसका परम्परागत वोट बैंक कहलाने वाले दलित और मुस्लिम बसपा से खफा हो गए थे.

लोकसभा चुनाव 2009 में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था. उसकी वजह थी कल्याण सिंह का मुलायम सिंह यादव के साथ होना. कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं. जब 1992 में यह हादसा हुआ था, तब यूपी में बीजेपी की सरकार का नेतृत्व मुख्यमंत्री के तौर पर कल्याण सिंह ही कर रहे थे.

साल 2009 के चुनाव के बाद मुलायम सिंह यादव ने माफी मांगते हुए कहा था, 'यह केवल मेरी गलती थी. मैं अल्पसंख्यक समुदाय से यह वादा करता हूँ कि भविष्य में ऐसी गलती फिर नहीं होगी.'

अनजाने में ही सही, पर ऐसी गलती की पुनरावृत्ति 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की मदद कर सकती है. इसलिए कांग्रेस नेता राज्य में विधानसभा चुनाव से बहुत पहले ही मोदी-मुलायम की तथाकथित नजदीकी को मुद्दा बनाने की तैयारी में जुट गए हैं. इसी मकसद से उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्मल खत्री नें मुलायम सिंह यादव के गृह जनपद इटावा में लोगों को जागरुक करने के लिए जन जागरण यात्रा निकाली.

इस मौके पर कांग्रेस नेता खत्री ने कहा, '21 फरवरी को मोदी ने सैफई, इटावा जाकर मुलायम सिंह यादव के पोते की शादी में शिरकत की. क्योंकि उनके बीच बहुत अच्छी व्यक्तिगत और राजनीतिक घनिष्ठता हो गई है. जिस तरह से मोदी और मुलायम ने समारोह में एक दूसरे के हाथ पकड़े हुए थे वह इस बात का सबूत है कि दोनों एक-दूसरे के बहुत करीबी हैं.'

खत्री ने शायद स्थि‍ति का आंकलन करने में जल्दबाजी कर दी है. यह बात सही है कि सैफई में तिलक महोत्सव के दौरान मंच पर चढ़ते समय मुलायम सिंह यादव ने मोदी का हाथ पकड़ा हुआ था. लेकिन मोदी ने सपा प्रमुख को अपना हाथ पकड़ने का मौका नहीं दिया. उन्होंने केवल एकता की भावना जताने के लिए अपना हाथ हवा में उनके साथ लहराया था. तेज नजर वाले लोगों ने भांप लिया था कि मोदी ने कैसे तेजी से अपना हाथ पहले पीछे खींच लिया था क्योंकि वे बहुसंख्यकों को भ्रमित करने वाला कोई संकेत नहीं देना चाहते थे. मोदी ने खुद मुलायम सिंह यादव से मंच पर खासी दूरी बनाए रखी जो वहां मौजूद मेहमानों को भी दिख रही थी.

सपा प्रमुख देश के चतुर राजनेताओं में से एक माने जाते हैं. शायद वे अपने पुत्र और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मजबूत बनाने के लिए मोदी का समर्थन चाहते हों. शायद यही बात समझ कर मोदी भी उनसे दूरी बनाए रखना चाहते हों. लेकिन एक ही समय में उन्होंने संतुलन का परिचय देते हुए यह भी दर्शा दिया कि वह मुस्लिम मतदाताओं पर निर्भर हैं. मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर भूमि अधिग्रहण विधेयक और आम बजट के मामले में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का विरोध करके इस बात के संकेत दे दिए कि वे 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने मुस्लिम वोट बैंक को बरकरार रखने के लिए कैसे मोदी का विरोध जारी रखेंगे.

मोदी को सियासी तौर पर अस्थिर राज्यों मे होने वाले चुनावों की महत्ता का अहसास है. बनारस से सांसद होने के नाते वे किसी भी हाल में अपने उन बहुसंख्यक वोटरों की अनदेखी बर्दाश्त नहीं कर सकते, जिन्होंने उन्हें लोकसभा 2014 चुनाव में वोट दिया था.

जानकार कहते हैं कि इस समय मोदी अपनी स्ट्रांगमैन वाली छवि पर दोबारा ध्यान देना चाहते हैं, जो सभी भारतीयों को आकर्षित करती है.

दिल्ली में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों से निकलकर आया है कि ऐसे स्थानीय मजबूत नेताओं को पार्टी में लाया जाए जो प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत अभियान के अलावा भाजपा को मजबूत करने का काम कर सकें.

बिहार में भी बीजेपी का बड़ा इम्तिहान है. वहां ऐसे ही मजबूत नेताओं को भगवा पार्टी में लाने के लिए तैयार किया जा रहा है. जो एक बार फिर राज्य में 'मोदी लहर' के प्रति लोगों में भरोसा जगा सकें.

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