यूपीए के महत्वपूर्ण सहयोगी दल एनसीपी के प्रमुख शरद पवार ने कहा है कि डीएमके के समर्थन वापस लेने के बाद केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन कमजोर हो गया है. पवार ने कहा कि अब चुनाव निकट है.
केंद्रीय कृषि मंत्री पवार ने यह भी कहा कि चूंकि कांग्रेस यूपीए में बड़ा दल है, इसलिए उनकी पार्टी गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उसकी राय का सम्मान करेगी.
शरद पवार ने संवाददाताओं से कहा, ‘डीएमके के समर्थन वापस लेने के बाद से यूपीए की स्थिति कमजोर हो गई है. हमें चुनाव की योजना बनानी है और तैयारियां करनी हैं. मैंने इसपर चर्चा के लिए यूपीए अध्यक्ष को एक बैठक बुलाने का सुझाव दिया है और उनकी भी यही राय है.’
प्रधानमंत्री पद के लिए यूपीए के उम्मीदवार पर विरोधाभासी स्वरों के बीच पवार ने कहा कि गठबंधन के अगुवा कांग्रेस को इसपर फैसला करना है. उन्होंने कहा, ‘पिछली बार की तुलना में यूपीए सिकुड़ गई है. सिर्फ कांग्रेस, एनसीपी और नेशनल कान्फ्रेंस हैं. बड़े दल को फैसला करना है. हम बड़ी पार्टी की राय का सम्मान करेंगे.’
पवार का बयान समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की तर्ज पर है. मुलायम ने पिछले महीने एक गोपनीय रिपोर्ट का हवाला देते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं से समय पूर्व चुनाव के लिए तैयार रहने को कहा था. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को लखनऊ में संबोधित करते हुए कहा था, ‘मुझे एक गोपनीय रिपोर्ट की जानकारी मिली है जिसमें कहा गया है कि चुनाव नवंबर में होंगे. आप उसके लिए तैयारी शुरू कर दें.’
समाजवादी पार्टी के 22 सांसद और बीएसपी के 21 सांसद सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे हैं और संकट के समय में उसकी नैया पार लगा रहे हैं. पवार ने यह भी कहा कि वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी के दावे के संबंध में पूछे जाने पर पवार ने कहा, ‘एनसीपी के सिर्फ 9 सांसद हैं और केंद्र सरकार को 9 सांसदों के समर्थन वापस लेने से गिराया नहीं जा सकता है.’
हाल ही में बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने दावा किया था कि यूपीए के एक बड़े नेता ने केंद्र सरकार को गिराने में मदद के लिए उनसे संपर्क किया था. कुछ मीडिया रिपोर्ट में गडकरी ने जिस व्यक्ति का उल्लेख किया था, उसके लिए पवार की ओर इशारा किया था. दोनों के अलग-अलग दल में होने के बावजूद दोनों के अच्छे संबंध हैं.
शरद पवार ने इस आरोप को खारिज कर दिया कि वे यूपीए के महत्वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा विधेयक के खिलाफ थे. उन्होंने कहा, ‘मेरी राय है कि गरीबों को खाद्य सुरक्षा अधिनियम से लाभान्वित होना चाहिए. अगर योजना आयोग कहता है कि कुल आबादी का 34 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे है तो कैसे 70 फीसदी लाभार्थी हो सकते हैं. सिर्फ इस शंका को मैंने उठाया था.’