यूपीए सरकार के जासूसी प्रकरण की जांच कराने के विवादास्पद आदेश को बंद किया जा सकता है और गृह मंत्रालय की ओर से इस योजना को त्याग देने के संबंध में केंद्रीय मंत्रिमंडल में पहल किये जाने की उम्मीद है. सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष 26 दिसंबर 2013 के आदेश को रद्द करने के लिए एक नोट पेश किया जाएगा जिसके तहत 2009 में गुजरात में एक युवती की निगरानी करने के आरोपों की जांच के लिए न्यायिक आयोग गठित किये जाने की बात कही गई थी.
गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू पहले ही संकेत दे चुके हैं कि जांच आयोग गठित करने के राजनीति से प्रेरित निर्णय की एनडीए सरकार समीक्षा करेगी. बीजेपी ने इस संबंध में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के विवादास्पद पहल का जबर्दस्त विरोध किया था और मांग की थी कि जांच बंद की जानी चाहिए क्योंकि गुजरात सरकार ने इस मामले की जांच के आदेश दिया हुआ है.
तत्कालीन यूपीए सरकार के जांच कराने के निर्णय से राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो गया था क्योंकि जासूसी प्रकरण से कथित तौर पर नरेंद्र मोदी का नाम जोड़ा गया जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे. यह घोषणा की गई कि इस आयोग का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश करेंगे और वह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा पूर्व की बीजेपी सरकार पर उनकी जासूसी करने के बारे में लगाये गए आरोपों के साथ ही अरुण जेटली के कॉल डाटा रिकॉर्ड लीक करने के मामले की भी जांच करेंगे.
उस समय केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जांच आयोग अधिनियम के तहत इन मामलों की जांच कराने का निर्णय किया था जिसका उपयोग गुजरात सरकार ने ऐसा ही पैनल गठित करने के लिए किया था. ऐसी खबरें आई थी कि कोई भी सेवानिवृत न्यायाधीश आयोग का नेतृत्व करने के लिए इच्छुक नहीं था.