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अमेरिकी मीडिया का रुख, 'मोदी राज में अभी नहीं आए अच्छे दिन, कारोबारियों को इंतजार'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने मंगलवार को अपना एक साल पूरा कर लिया. देश में टीम मोदी अपनी उपलब्धियों के बखान में लगी हुई है, लेकिन अमेरिकी मीडिया ने मोदी सरकार के काम-काज की आलोचना की है.

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PM Narendra Modi
PM Narendra Modi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने मंगलवार को अपना एक साल पूरा कर लिया. देश में टीम मोदी अपनी उपलब्धियों के बखान में लगी हुई है, लेकिन अमेरिकी मीडिया ने मोदी सरकार के काम-काज की आलोचना की है.

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अमेरिकी मीडिया ने लिखा है कि मोदी का महत्वाकांक्षी 'मेक इन इंडिया' अभियान अब तक सुखिर्यों में ही रहा है और भारी उम्मीदों के बीच रोजगार में बढ़ोतरी धीमी बनी हुई है.

मोदी के भारतीय प्रधानमंत्री के तौर पर एक साल पूरा होने पर वॉल स्ट्रीट जर्नल में एक लेख छपा है. इस लेख का शीर्षक है- 'इंडियाज मोदी एट वन ईयर: ‘यूफोरिया फेज’ इज ओवर, चैलेंजेस लूम'.

'मेक इन इंडिया पर हो रही है सिर्फ चर्चा'
वॉल स्ट्रीट जर्नल की खबर में कहा गया है, 'बदलाव और आर्थिक पुनर्जीवन के लिए पूर्ण बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी को जनादेश मिलने के बाद भी हकीकत लगभग वहीं की वहीं हैं.' इसमें कहा गया है कि मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में तेजी से विकास के मकसद से शुरू किया गया मोदी का 'मेक इन इंडिया' अभियान अब तक ज्यादातर चर्चाओं में ही रहा है.

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लेख में कहा गया है कि निर्यात जैसे आर्थिक मानक बताते हैं कि अर्थव्यवस्था अब भी लड़खड़ा रही है. वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा है कि पिछले साल पूंजीगत निवेश के लिए मुद्रास्फीति समायोजित उधारी 2004 के बाद के सबसे निचले स्तर पर आ गई और निर्यात अप्रैल में लगातार पांचवे माह गिरा है. वहीं कंपनियों की आमदनी मामूली रही है और विदेशी संस्थागत निवेशकों ने मई में अभी तक भारतीय शेयर और बॉन्ड बाजारों से करीब 2 अरब डॉलर की निकासी की है.

कारोबारियों का रुख 'वेट एंड वॉच'
न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक समाचार विश्लेषण में लिखा है, 'विदेश से देखें तो भारत उभरता हुआ सितारा नजर आ रहा है और इस साल इसके चीन से भी आगे निकलकर दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है. लेकिन भारत में रोजगार की बढ़ोतरी सुस्त बनी हुई है, कारोबारी 'वेट एंड वॉच' का रख अपना रहे हैं.'

अखबार ने लिखा है, 'मोदी को राजनीतिक जोखिम का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि विपक्षी दलों के नेताओं ने उनके दो प्रमुख सुधारों को रोक दिया है और उन पर ‘गरीब विरोधी व किसान विरोधी’ होने का आरोप लगा रहे हैं.'

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